पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४२४

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| | अविभाग । अविवुध अविवाद || विवर-सुद्धा पु० अमुर। दैत्य । राक्षम । " अविरहित-वि० [म०] वियोग न होना । अवियुक्त । अलग न होना अविभक्त-वि० [सं०] १ जो अलग न किया गया हो । मिला हुप्रा । (को०)। २ जो वाँटा न गया हो । विभागरहित । शापिलाती । ३ अविराम-वि० [ स० ] १ विना विश्राम लिए हुए । अविश्रात । || अन्न । एक । उ०—सुत तुम्हारे भाव ये अविभकन, मैं स्वय उ०—घनना है अविर में तुम्हें उद्वेग ।-कानन०. पृ० १३ । उन पर कलंगी व्यक्त |-माकेत, पृ० १८६ ।। अविराम-क्रि० दि० लगातार । निरतर । अविभाग-f० [सं०] जिसके टुकडे न हो । जो अलग अलग न हो । अविराम-सज्ञा पुं० विरामाभाव । निरत रता । नैरतर्य किो०] । जो एक ही किया । अविरुद्ध- वि० [सं०] १. जो विरुद्ध न हो। अप्रतिकून । उ०--- अविभाज्य'—संज्ञा पुं॰ [सं०] गणित में वह राशि जिसका किमी स्थायी दशा को विरुद्ध या अविरुद्ध कोई भाब से चारी रूप में गुणक के द्वारा भाग न किया जा सके । निश्छेद । आकर तिरोहित नहीं कर सकता । -रेस०, पृ० १६२ । २. अविभाज्य–वि० जिसका बँटवारा न किया जा सके। जिसके भाग अनुकूल । मुवाफिक । ३०-प्रेजी श्रीज कुछ और सोचती जो या खड़े न हो सकें। अव तक अविरुद्ध रही ।-कामायनी, पृ०, १७५ । । अविभावन-सद्मा पु० [स०] [जी० अविभावना] [वि० अभिमाननीय, अविरेचन—सज्ञा पु० [म०] [वि० अविरेचनीय, अविरेत्य] विरेचन अविभाव्य] १ पहचान का अभाव । २ अदर्शन ! लोप [को॰] । क्रिया में बाधा उत्पन्न करनेवाली वस्तु । कब्ज करनेवानी अविमान--सज्ञा पुं० [सं०] १ आदर। समान। ३ अपमान का । वस्तु । [को॰] । | अभाव कि॰] । अविरोध-सज्ञा पुं० [सं०] १ साधर्म्य । समानता । २ विरोध का अविमुक्त--वि० [स०] जो विमुक्त न हो। वद्ध । अभाव । अनुकून्नता । ३ मेन । संगति । मुवाफिरत । उ०- अवि मुक्त-सज्ञा पु० १ कनपटी । जावाल उपनिपद् के अनुसार ब्रह्म समय समाज धर्म अविरोध।। बोले तब रघुब शपुरोधा ।-- | का स्थान । २ काशी । तुलसी (शब्द०)। अविमुक्तेश्वर-संज्ञा पुं० [सं०] काशी में स्थापित एक शिवलिंग को]। अविरोधी-वि० [सं० प्रविधिन् ] [वि॰ स्त्री० अविरोधिनी] १ जो अवियुक्त-वि० जो बियुक्त न हो । जो अलग अलग न हो। मिला हुआ विरोधी न हो । अनुकूल । २ मित्र । हित । [को०)। अविलधन-सज्ञा पुं॰ [ सं० अविलङ्कन ] [ वि० अविलघनीय 1 न अवियोग-सज्ञा पुं॰ [स०1 १ वियोग का अभाव । उपस्थित ॥२ लाँघना। मर्यादा को न पार करना [को०] ।। संयोग । मिलाप । अविलब?--क्रि० वि० [ स० अविलम्व ] विना विलव । तुरत । अवियोग-वि० १ वियोगशून्य । जिमका वियोग न हो । २ सयुक्त उ०-रथ रुका, उतरे उभय अविलव ।-साकेत, पृ० १७४। समिलित । एकीभूत । अविलव—सझा पुं० विलब का अभाव । शीघ्रता [को॰] । ' यौ०-अवियोगव्रत=कल्कि पुराण के अनुसार एक व्रत जो अगहन अविलक्ष्य- वि० [ म०] १ विना वाला ! २, ईमानदार । शुक्ल तृतीया को पडता है। इस दिन स्त्रियाँ स्नान कर निक । ३ असाध्य ( रोग या रोगी ) जिसकी चिकित्सा चंद्र दर्शन करके रात को दूध पीती हैं । यह व्रत सौभाग्यप्रद कठिन हो । ४ जिसका विरोध कठिन हो [को०] । माना जाता है। अविला--सज्ञा स्त्री० [स०] भेड [को०)। अविरत'–वि० [स०] १ विराम शून्य । निरतर । २ अनिवृत्त । अविलास--वि० [सं०] विलास से मुक्त रहनेवाला । विश्वसनीय । लगा हुआ । स्थिर [को०] । ।। १९ क्रि० वि० १ निरतर । लगातार । २ सतत । नित्य । अविलास-संज्ञा पु० विलास का अभाव । | हमेशा । । अविलिख-वि० [सं०] १ न लिखनेवाला अथवा निखना न जानने अविरत-सुज्ञा पुं० विराम का अभाव । नैरतर्य । | वाला। २. बुरी लिखनेवाला । ३ लिखने वाले में भिन्न या विरति-सझा स्त्री० [सं०] १. निवृत्ति का अभाव । लीनता । २ व्यतिरिक्त (को॰] । विपयादि में तृप्णा का होना । विषयाशक्ति । ३ विराम का अवलोकन--संज्ञा पुं॰ [ सै० अवलोकन ] ६०' 'अवलोकन' । अमाव । आशाति । ४ जैन शास्त्रानुसार धर्मशास्त्र की मर्यादा अवलोकना - क्रि० स० [हिं०] ६० अवलोकना' । । • से रहित वर्ताव करना । अविलोडित--वि० [ सं० अ= नहीं +विलोडित= मथा हुआ ] न विशेष—यह बधन के चार हेतुप्रो में से हैं और बारह प्रकार का । । मथा हुआ । अमथित । उ०-अविलोडित था जमा दही --- |' है । पाँच प्रकार की इद्रियाविरत, एक मनोविरति और छह साकेत, पृ० ३४८ ।। । ' प्रकार की कायाविरति । अविवक्षा–सज्ञा स्त्री॰ [सं०] विवक्ष अर्यात् कहने, बोलने ग्रादि की विरथा-- क्रि० वि० [ स ० वया, हि विरथा ] दे॰ 'वृथा । अनिच्छा । । भावरल--वि० [सं०] १ जो विरल या भिन्न न हो । मिला हुआ । अविवक्षित--वि० [सं०] १ बिना उद्देश्य या' अभिप्राय की । २. २. घना । अत्यवछिन्न । सघन । ल6-अचल अनिकेत अविरल जिसके विपय मे कहना या बोलना न हो (कौ। । अनामय अनारम अबोदनाघ्न व यो —तुलसी ग्र० पृ० ४६७। अविवाद-वि० [सं०] विवादरहित । निविवाद । उ० , पामूहिक यी-अविरलभारासार= अनवरत होनेवाली मूसलाधार वृदि। जीवन विकास की साम्य योजना है झविवाद -युग०, पृ०११