पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४२३

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अविद्धकर्णी अविबु अविद्धकर्णी- सज्ञा स्त्री० [सं०] पाढा नामे की लता अविनय-संज्ञा पुं॰ [सं०] १. विनय का अमाव । ढिठाई । उ डता । अविद्य –वि० [म० अविद्यमान्] नष्ट । नेस्त नाबूद । उ०--- उ०--अविनय विनय जथारुचि - बानी । छमहि, देव अति - विद्या घरनि अविद्य क्रौं विन सिद्ध सिद्धि सव ।---रामच०, प्रारति जानी 1--तुलसी (शब्द॰) । २ घमड.1 अभिमान - पृ० १२ । । [को०] । ३, अपराध। दोप [को०] । । । । अविद्य–वि० [स०] १ प्रशिक्षित । विद्याविहीन । अपढ । वेवकफ अविनय-वि० जद्द छ । धृष्ट । प्रणिप्ट । घमडी (को०] । - २ जो शिक्षा सवधी न हो [को०] । | - अविनयी--वि० [सं० श्रबिनयन्] विनय रहित । उद्दड [को०] । विद्यमान-वि० [म०] १ जो विद्यमान या उपस्थित न हो। अनुप अविनश्वर-वि० [सं०] जो नष्ट न हो । जो बिगड़े नही । चिरस्थायी । स्थिति । २. जो न हो । असत् । उ०-अर्थ अविद्यमान जानिय | शाश्वत । उ०—-दर्शन से जीवन पर बरसे अविनश्वर स्वर ।- संसृति नहि जाइ गोमाई 1 विनु बाँके निज हठ मठ परवम परयो अपरा, वृ० १८६ । कीर की नाई ।—तुलमी ग्र०, पृ० ५१७/३ मिथ्या 1 अमत्य । अविनाभावे-पक्का पुं० [म०] १ माघ । २ ३पार क स । झूठा । । जैसे अग्नि और घूम का । अविद्या--- संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ विरुद्ध ज्ञान । मिथ्या ज्ञान । अज्ञान । अविनाश-सज्ञा पुं० [म०] विनाश का अभाव । अक्षय । मोह । उ०—(क) जिन्हहि सोक ते कहीं वखानी । प्रथम अविनाशी--वि० पुं० [सं० अविनाशिन्] [वि॰ स्त्री० अविनाशिनी।' अविद्या निसा नसानी |--मान, ७ । ३१ (ख) विपम भई जिसका विनाश न हो। प्रक्षः । अक्षर । २' नित्य । शाश्वत । संकल्प जव तदाकार सो रूप 1 महाँ अँधेरो काल सो परे अविनासी -वि० [सं० अविनाशी ] दे॰ 'अविनाशी' । उ०-दादू अविद्या कूप ।—कबीर (शब्द॰) । २ माया । उ०—हरि अविहढे आप हैं अमर उपजीवनहार । अविनामी अपिइ रह्इ सेबकहि न व्याप अविद्या । प्रभु प्रेरित ब्यापै तेहि विद्या -- विन सइ सव संसार -दादू (शब्द॰) । तुलसी (शब्द॰) । ३ माया का भेद। उ०—तेहि कर भेद अविनासो-सज्ञा पुं॰ [स० अविनाशिन् ] ईश्वर । ब्रह्म । उ०---(क) मुनहू तुम सोक । विद्या अपर अविद्या दोऊ ।-तु नसी (शब्द० । राम नाम छडों न ही सेनगु रु सीख दई । अविनासी सो परसि ४ कर्मकांड । ५ साम्यशास्त्रानुसार प्रकृति । अव्यक्त । अचित् । के अात्मा अमर भई । कबीर (शब्द०) । (ख) दादू अानद जह । ६ योगशास्त्रानुसार पाँच क्लेशो में पहला । विपरीत प्रातमा अविनासी के साथ । प्राननाथ हिरदै धसइ सकल ज्ञान । अनित्य में नित्य, अशुचि में शुचि, दु ख में सुख शौर। पदारथ हाथ --दादू (शब्द॰) । अनात्मा (जड) मे अात्मा (चेतन) को भाव करना । ७ अविनीत--वि० [सं०] [वि॰ स्त्री अवनीता] १ जो विनीत न हो। वैशेषिकशास्त्रानुसार इद्रियों के दोप तथा संस्कार के दोष से उद्धत 1 उ०---जो मेरी है' सृष्टि उसी मे भीत रहू मैं, क्या उत्पन्न दुष्ट ज्ञान । ६ वेदातशास्त्रानुसार माया । अधिकार नहीं कि कभी अविनीत रहू मैं ।—कामायनी, यौ०-- अविद्याकृत = अविद्या से उत्पन्न । अविद्याजन्य = अविद्या पृ० १६० ।। से उत्पन्न । अविद्याच्छन्न = अविद्या या अज्ञान से प्रवृत्त । अविनीता-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] कुलटा नारी। अमती स्त्री । दुराचारिणी अविद्यामार्ग = प्रेम । वह मार्ग जो ससार मे मनुष्यो को अंनुरक्त । या बदचलन स्त्री ।। करता है। अविद्याश्रध-अज्ञान (वौद्ध ) । अविनेय---वि० [सं०] अनियत्रण शील । अवाघ्य । बेकहा कि]। . अविद्वत्ता- सच्चा स्त्री॰ [म०] मूर्खता । अज्ञानता । । अविपक्व–वि० [म०] १ न पका हुप्रा । अपक्व । २ जिसका ज्ञान अविद्वान्--वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० अविदुषी] जो विद्वान् न हो। ग्रौढ न हो को०) ।, शास्त्रानभिज्ञ । मूर्ख ।। अविपट-~-सच्चा पुं० [स०] भेड के ऊन का वस्त्र ऊनी वस्त्र [को०] । अविद्वेषसज्ञा पुं० [सं०] विद्वेष, का अभाव । अनुराग । प्रेम ।' । । । अविपद्--संज्ञा स्त्री० [सं०] कष्ट, दु अादि का अमावे । मुख । अविधवा-वि० [म०] मघवा । सौभाग्यवती । सुहागिन । समृद्धि को०] । ... अविपन्न-वि० [सं०] १ स्वस्य । नीरोग । २ जो क्षत न हुग्रा हो । अविधान -सज्ञा पुं० [सं० अभियान] दे॰ 'अभिधान । उ० ;, जिसे आघात या चोट न लगी हो । ३. शुद्ध । पवित्र ! | व्याक्रन्न कथा नाटक्क छद । अभिधान दास अलकार बध । अविपर्यय---संज्ञा पुं० [सं०] विपर्यय या विकार का न होनी । क्रम के । पृ० रा०, ११ ७३६ ।। विरुद्ध न होना । ... . .. अविघान-सज्ञा पुं० [सं०] १ विधि के विरुद्ध कार्य करना । २ अविपाक-सज्ञा पुं॰ [सं०] अजीर्ण रोग (को०] । - विधान का अभाव । अविपाक-वि० अजीण रोग से ग्रस्त । अजीर्ण, (को०] । अविधान--वि० विधिविरुद्ध १२ उजटा,' ' | | अविपाल–मचा पु० [सं०].गडेरिया (उ०=पशुयो की रक्षा करने के प्रविधि-वि० [म०] विधिविरुद्ध । नियम के विपरीत । - ... कारण उसे गोपालक, अ जापाल वा अविचल -कहते थे ।- प्रविधि–सज्ञा पुं० १ विधान के विरुद्ध कार्य अविधान । ग्रनिय- हिंदु सभ्यता, प० २९२ । । मितता । उ०—-वे हैं अविद्या के पुरोहित अविधि के प्राचार्य अविपित्तक–सज्ञा पुं॰ [सं०] एक चुण, जो अम्लपित्त रोग, में दिश हैं ।-मारत०, पृ० १२७ } २, अपरिभाषेप । जिसकी परिभाषा : जाता है । ने की जा सके को०] । पविबुध' वि० [सं०] १., अज्ञानी ! नादान । २. बुद्धिहीन । बेमक्ले । मनुष्यो को अनु अविनेय-वि• १ न पका है