पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४२२

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अवस "वही जिममे याददाश्त के लिये नोट किया जाय । ४ सक्षिप्त भवाच्य-वि०म०]१ जो कहने योग्य न हो । प्रतिदिन विशुद्ध । वृत्तात । गौशवारा। खतियौनी । मक्षिप्न लेखा। ३०-साँचो मो २ जिसमे बात करना उचित न हो। नीच । निदिन । ३ । ! निबार कहावै । कायो ग्राम ममाहत करि जमावधि 1 , स्पष्टतारहित । अस्पष्ट [को०] १४ दक्षिण सवधी । दक्षिणी अवारजा प्रेम प्रीति को असल तहां बुनियादै । [को॰] । - - अवाच्य-सज्ञा पुं० कुवाच्य । बुरी बात । गाली,, दूजी करे दूरि करि दाई तनक न तामे प्राधे !---सूर (शब्द०)। • यौ०-अवाक्यदेश = वह स्थान जिसकी ववित कुछ कहना ठीक अवारण-वि० [म०]१ जिमका निषेध न हो मके । सुनिश्चि। २. • न हो----योनि । * : जिसकी रोक न हो सके । बेरोक 1 अनिवार्य । अवाज -सज्ञा स्त्री० [फा० आवाज] ध्वनि । शब्द । अावाज । उ०-- । अवारणीय---वि० [सं०] १. जो रोका न जा सके । धेरोक । कहियत पतित वहुत तुम तारे स्रवननि मुनी अावाज। दई न अनिवार्य । २ जिसको अवरोध न हो सके । दूर न हो सके। जात खार उतराई चाहत चढ्यो जहाज 1--सूर०, १। १०८ । | ३ जो प्राराम न हो । अमाध्य । अवाजी-वि० [फा० अावाज शव्द करनेवाला । चिल्लाने- अवारणोय-सज्ञा पु० सुश्रुत के अनुसार रोग का वह भेद जो अच्छा वाला। उ०--यदपि आबाजी परम तदपि वाजी सो । | न हो । असाध्य रोग । छाजत --गोपाल (शब्द॰) । । विशेष--यह आठ प्रकार का है-वात, प्रमेह, कुष्ठ, अर्श, मगदर, अवाडू--वि० [सं० अपवून अथवा देशी] विपरीत । उलटा ।। अश्मरी, मूढगर्म और उदर रोग । उ०—पोखडियाँ ई किऊँ नही, दैव अवाडू ज्यांह। चकवीकइ अवारना —क्रि० स० [सं० अ+वारण १ रोकना । मना करना इह पखडी, रमणि न मे नउ त्याँह !--डोला० दू० ७१ । २ वारना 1 न्यौछावर करना। अवात–वि० [म०] वातशून्य । जहाँ वायु न लगे । निर्वात । २ । अवारपार--सज्ञा पुं० [सं०] ममुद्र । | अवाफात [को०] । अवारा--वि० [हिं०] दे॰ 'आवारा' अवादादै० -वि० पुं० [हिं० वादा] दे० 'वादा'। अवार---वि० [हिं० अना+वार ( प्रा० )] अानेवाले । अवादी--वि० [सं० अवादिन] १. न दोननेवाला 1 श्रवक्ता । २. जो " प्रागनुक। परदेशी । उ०—-मिसिर मिरान्यो ग्राम अवनि | 'कोई वाद-उपस्थित नहीं करता । शातिप्रिय [को०] । अबारे की !--प्रेमघन०, पृ० २२९ । अवान--दि० [सं०] सूखा हुआ । शुष्क [को॰] । अवारिका-सशी खी० [सं०] घनिया । अवापित--वि० [सं०] १ जो वोया न गया हो । रोपा हुआ । २. अनारिजा--सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अवारजा'। (केश) जो काटा हुअा न हो [को०]। अशारित--वि० [म०] जिसपर रोक न हो। रोक या प्रतिबंध अवाप्त–वि० [म०] प्राप्त । लन्छ ।' मुक्त क्रिो०] । अवाप्ति--संज्ञा स्त्री० [सं०] १.प्राप्ति । २. (गणित मे) उद्धरण। यौ॰—अयारित द्वार= जिसका द्वार बद न हो बुना हो । को०) । अवाप्य–वि० [सं०] १ प्राप्त करने योग्य । २ (केश) न काटने अगारी*--सज्ञा स्त्री० [सं० वारण] वाग । लगाम । योग् [को०) ।। अवारी--संज्ञा स्त्री० [सं० नेवार] १. किनारा । मोड । अवमि--सा पुं० [अ० ग्राम' का बहूव० ] साधारणजन । क्रि०प्र०—देना= नाव फेरना । । सर्वसाधारण। ग्राम लोग । उ०—करे तृप्त' किमि तुमहि २ मुखविवर । मुह का छेद । अवाम --प्रेमध०, पृ० १४१ । । अवारीण-वि० [सं०] नदी पार गया हुआ किो०] । ग्रेवाय' -वि० [स० अवर्या अनिवार्य । 'उच्छ खुले । उद्धत ।। अवारो---सज्ञा पुं० [सं० अ = दूषित+प्रा० घार = वे] अवेर । ३०--दीनदयाल पनित पावन प्रभु विरद भुन्नावत कैसे । कहा देर । विलवे । अतिका । उ०--तब अवारी सो ये मेवा सो भयो गज गनिका तारी जो जन तारी ऐसे । अकरम अबुध पहोचता ।—दो मौ वावन०, पृ० २१० । अज्ञान अवाया अन मारग ग्रनरीति। जाको नाम लेत अध उपज | अवर्स--वि०म०]० 'अवाग्णय'। उ०--उस पहले के ही मलवे में। नो में करी अनीति ।-नूर (शब्द॰) । | जिसका जलना गिरना अवार्य ।—दैनिकी, पृ० २१ । अवायसी पुं० [मं०] हाथ में पहनने का-मूपण 1 का ।--डि०।- प्रवावर्ट-सच्चा पुं० [सं०] दूसरे सवर्ण पनि से उन पुन, जैसे अवार- सुज्ञा पुं० [म०] नदी के इस पर का किनारा । सामने का कूद और गोलक ।। किनारा । 'पार' का उलटा । ३०--उठ अवार् न पार जाकर | मी गई । अवास---मज्ञा पुं० [लाभायात्र]नीवामम्यान । घर । उ०---कविरा म है, में इन भवार्णव की नई-।- साकेत, कहा गर ब्विया ऊँचा देखि अवाम् । कान परे 'भुई नोटना बार जमिह घारा ।—कथीर (गव्द०)। ब) वाजति नद अवारजा----सज्ञा पुं० [फा०] १.वह वहीं जिसमें प्रत्येक अमामी की अवनि प्रधाई । वैठे पेलत द्वार अपने, मात वग्न के कुवर जोत अादि लिखी जाती है । २ जमार्च को बही । ३ वह कन्हाई ।-सूर०, १० । ८१८ । ४५ ... : -, ।