पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४२०

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अग १ । अपसेरना में फँसना 1-मे फैनना= दुख में पड़ना । अवसेरन मरना= जैनशास्त्रानुसार लाभ की प्राप्ति के पूर्व की स्थिति । यह पांच प्रकार की है---व्यक्त, अव्यक्त, जप, दान अौर निष्ठा । दुद से तंग आना । ११ योनि । भग (को०)। १२.प्राकृत । य [को०] । प्रवसेरना --क्रि० न० [ हिं० अबसेर ] नग करना। दु ख देना। यौ०--अवस्यातर=एक अदम्या मे दूगरी अदम्या को पहुचना । उ०-पियं पागे परोसिन के रस में ब्रम मे न कहें बम मेरे हावत' का बदलना । दशापरिवर्तन । अवस्थाद्वय = मुख र रहै । पदमाकर पानी मी ननदी निस नीद तजे अवसेरे। दु से जीवन की दो अवस्थाएँ । रहै ।- पद्माकर (शब्द०)। अस्थिान-सज्ञा पुं० [सं०] १ स्थिति । भत्ता । २.स्थान ! जगह । अवसेय - वि० [हिं०] दे० 'अवशेप' । " - वास। ३. निवामम्यान [को०)।४ रहना। ठहरना [को०] । अवसेपित-- वि० [हिं०] दे० 'अवशे पित' । ५ रुकने या ठहरने का कान्न किो०] । अवसेम -वि० [हिं० ] दे॰ 'अवशेप' । ०--करि भोजन अवमेस जज्ञ को त्रिभुवन भूलू हरी ।—सूर , १ । १६ । | अगस्थापन--संज्ञा पु०[सं०]१ निवेशन ! रखना । स्थापन करना । । २ निवास (को॰) । अनस्कद-संज्ञा पु० मि० अवस्कन्द] १. मैना के ठहरने की जगह । अगस्थापरिणाम---संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'परिणाम' (योग)। शिविर ।-डेरा । २ जनवासा । ३ अाक्रमण । हेमन्ना (को०)। अवस्थित---वि० [सं०]९ उपस्थित । विद्यमान । मौजूद । २ निश्चेष्ट अगस्कदक-सज्ञा पु० [ म० अवएवन्देक ] जो रास्ते चलते लोगों को ।। (को०)। ३ तैयार । तत्पर (को०)। ४ अच्छी तरह मयोजित मारे पीटे ।। अगस्कदित--वि० [सं०, अवस्कन्दित] १ जिमपर आक्रमण किया। या लग्न (को०) । ५ टिका हुया । निर्भर (को०)। अवस्थिति--सज्ञा ली० [म०] वर्तमानता। स्थिति । सत्ता । अव- गया हो । २ नीचे गया हुआ 1 2 अशुद्ध गलन । ४ नहाया हुआ। स्नात [को॰) । स्थान । अनस्कदितश्रम-सच्चा पु० [ मं० अवस्कन्दितश्रमी ] मजदूरी या अस्नात–वि० [सं०] (जल) जिम में स्नान किया गया हो [को॰] । नाबाह लेकर भाग जानेवाड़ा मजदूर ।। अगस्फूर्ज-सज्ञा पुं० [अ०] वादो की ध्वनि । गर्जन । नगाट मनमूत्र द्रिय । ३ कूडा वस्कर-मझा पुं० [मु.] १ म नम्र । २ [को०] । अवस्यदन--सज्ञा पु० [म० अवस्यन्दन] टपकना। चूना। गिरना । कर्कट । ४ कतवारवाना। जहां कूडा कर्क: एकत्र रहना अगम्य)---क्रि० वि० [म० अवश्य] दे० 'अवश्य' । ३०-ौर श्रीरन- अबस्करक–वि० [म०] गदगी में उत्पन्न होनेवाला (०] । । छोर जी तो श्रीप्राचाय जी के माने हैं, ताते वहां अबस्य जानो ।—दो सौ बावन ०, पृ० १८ ।। अस्करक–वज्ञा पुं० १ मेहतर । २ गोवरैला । ३ झाड को॰] । अवस्करभ्रम-मझा पु० [मु.] वह नल जिसमें पाखाना वह कर अबस्यक(gl--वि० [सं० घश्य क] दे० 'अावश्यक' । उ०-वनुर , बाहर जाता हो । । मेनपहिं नित न अवम्यक वल दिखावन ।--रत्नाकर, भा० १, पृ० २६ । अवस्कार--- संज्ञा पुं० [म०] हायी के मुखं का वह भाग जो धोनी अखि के ठीक बीच में है कौ०) । अगह--संज्ञा पुं० [म०] १ वह दिशा जिनमें नदी नाले न हो। २ वह वायु जो आकाश के तृतीय स्कध पर है । ईथर । अगस्तार सय पु० नि०1१ पद। ३ खेमे के चारो शोरगाया गया कपडा ! कनात । ३ चटाई (को०] । अगह-वि० १ जो बहन न किया जा भके । जो ढोया न जा सके । अवस्तु-वि० [सं०] १ जो कोई वस्तु न हो । शून्य । २ तुच्छ । हीन। ३ विना नदी या सोनेवाली ोि०] । अबस्था-सच्चा झी० [सं०] १ दशा । हालत ! उ०—सुनता है परम अदहनन—संज्ञा पु० [सं०] १ कूटना (जैसे धान)। २. पछोरना । भट्र क की अवम्या अत्यंत शोचनीय है ।-स्कद०, पृ० ३२ ।। फटकना । ३ धान कूटकर बावने ग्रनग करना । ४ फुकुम । २ समय । काल । उ०--मरन अदम्या क नृप जानँ । ती हूँ फेफडा [को०] । घरे ने मन में जाने ।-मूर०, ४,१२ । ३ अायु । उम्र । ४ । अगहरण--सज्ञा पुं० [सं०] १ चुरा लेना । जवरदम्नी ले लेना । २ स्यिति । उ०—'भाव के इस प्रकार प्रकृनिस्थ हो जाने की अन्यत्र जाना या ने जाना । ३ युट्य मे शिविर को वापस अवस्या को हम शीन दशा कहेगे' -रम०, पृ० १८३ 1 ।। होना [को०] । वेदात दर्शन के अनुसार मनुष्य की चार अवम्याएँ-जागृन, ,

  • अगहस्त-मज्ञा पुं० [सं०] हाथ था गदेली या पृष्ठभाग ।
  • वप्न, सुषुप्ति और तुरीय । ६ स्मृति के अनुसार मनुष्य जीवन

उलटा हाथ । की झाठ अवम्याएँ-कौमार, पौगड, कैशौर, यौवन, वाल, अाहार-मज्ञा पु० [सं०] १ जलहस्ति । सून। २ चर। तम्बर तरुण, वृद्ध और वर्षीयान् । ७ साप के अनुसार पदार्थों की (को०) । ३ ग्राम ण । ४ युद्धक्षेत्र में वापस होना (को०)। तीन अवस्याएँ-नागनावम्या, व्यकामिक्तावम्या अौर ५ मधि । शम्ध विराम 1 (को०) ६ धर्मत्याग । ५ ममी तिरोमाव । ६ निरुक्त के अनुसार छह प्रकार की अवस्थाएँ- लाने के योग्य या अनुकून (को०) ! ६, अपहरण (को०)। ६ जन्म, म्यि ति, वर्धन, विपरिणमन, अपक्षय प्रौर नान । ६ वापस करना (को०) । कामशास्त्रानुसार दम अवस्याएँ-अभिलाप, चिता, स्मृति, गुण- अगहारक-संज्ञा पु० सं०] स स नामक जलजतु (को॰) । कयन, उद्वेग, सलाप, उन्माद, व्याधि, जड़ता और मरण । १०, - - ११ बुद्ध दुर्मरबान !,१०) । - - ---