पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४१७

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३४६ अगशीर्ष अलुठन अनलु ठन -संज्ञा पुं० [सं० अवलुण्ठन] १ लोटना। नुकना। २ उ----फिरत वृथा भोजन अवलोकत मूने मदन अजान [--- । लूटना (को॰) । मूर०, १५१०३ ।। अगलु ठित--वि० [सं० अवलुण्ठित] १. जो लुढ़क गया हो । लोटा अवलोकनियु-: संज्ञा स्त्री॰ [म० अबलोकन]प्रख । दृष्टि । चितवन । | , हुआ । २ लूट लिया गया हो (को॰) । उ०—अवलोकन वोन नि मिच्न नि प्रीति परसपर हास । 'मायप अगलुपन–सहा पुं० [सं० अवलुम्पन] अचानक लपके पड़ना। टूट भलि चहू बधु की जल माधुरी मुवम |-- मानेम, १॥४२।। पडना । झपट्टा मारना (को॰) । अवलोकनीय–वि० [सं०] देखने योग्य । दर्शनीय । अगलेख-सज्ञा पुं० [सं०] १ कोई खरोची हुई या चिह्नित वस्तु । अवलोकित--वि० [स०] देखा हुआ । दृष्ट ।। | २ खुरचना, चिह्नित करना वा तोड ना को०)। अवलोकितेश्वर-- सच्चा पु० [सं०] एक बोधिसत्व का नाम । अगलेखन--मज्ञा पुं० [स०]१ बुरुण या कंघी करना । २ चिह्न करना अवलोक्य–वि० [सं०] देखने योग्य । अवलोकनीय [को०] । या लकीर खीचना ।। अवलोचना--क्रि० स० [म० अवलोचन, शालोचन] दूर करना । अगलेखना--क्रि० स० [स० अवलेखन] १ खोदनः । खरचना। २. ३०–मोचे अनागम कारण कत को मोच उसासनि गहू चिह्न डालना । लकीर खीचना । उ०—गह विरद की लाज मोचे । मोची न हेरि हुरा हिय को पदमाकर मोचि मकै न दीन हित करि सुदृष्टि व्रज देखी। मोम बात कहत किन से कोच । कोत की इह चाँदनी चैते अलि, याहि निवाहि बिया सन्मुख कहा अवनि अवलेखौ ।--सूर०, १०। ४१५४ ।। अवलोचे । लोचे पी सी परी परजक प बीती घरी न घरी अगलेखनी सज्ञा स्त्री० [सं०] १ लेखनी । २ वाल झाडने की कधी घरी मोचे ---पद्माकर ग्र०, पृ० १२१ । । या ब्रश [को०] । अवलोप-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ काटना । काटकर दूर करना। विगा- अगलेखा--संज्ञा, स्त्री० [सं०] १ रगडना । २ चित्रांकन करना । ३ | इना। २ अधर को दाँत से दात करना । अधर चूमना [को०] । शृगार करना । सजावट करना (को०) । अवलोभन--संज्ञा पु० [स०] विषयवासना [को०] ।। अालेप--सच्चा पुं० [सं०] १ उबटन । लेप उ०---कुच कुकुम अव- १ उवदन । लेप उ०—कुच कुकुम अव- अवलोम--वि० [सं०] १ अपनी तरफदारी करनेवाला । अपना लेप तरुनि किये सोभित स्यामल गात । गत पतग, राका ससि पक्ष लेनेवाला । २ उपयुक्त (को०)। विय सँग, घटा सघन सोभात ।--सूर०, १० । २७३४ । २ अनल्गज--सज्ञा पुं० [सं०] मोमाजी नामक पौधा (को०] । गव । ३ भूपण (को०)। ४ मलहम (फो०)। अाल्गुज.--बि० जिसका मूल अच्छा न हो (को०] । ५ सँग । मिलन (को०)। ६ अाक्रमण । हिंसा (को०)। ७ । अननद-संज्ञा पुं॰ [सं०] निद। अपवाद (को०] । अपमान (को॰) । अगवदन----सज्ञा पुं॰ [सं०] दै० 'अवेवद’ फो] । यौ०-बलावलेप = बल का गर्व । अगदित-वि० [स०] सिखलाया हुप्रा । समझाया हुग्रा [को०] ।। अगलेपन-मज्ञा पुं० [सं०] १ लगाना । पोतना । छोपना । २ वह अगदिता--वि० [स० अवयदितृ] निर्णायक ढंग से वो ननेवाला। वस्तु जो लगाई या छोपी जाय । लेप । उबटन । ३ धमछ। [को०)। | अभिमान । अहकार । ४ दूषण । ५ चदन का वृक्ष (को॰) । अवगरक-सज्ञा पुं० [सं०] १. छेद । २ खिडकी [को॰] । अगलेह--संज्ञा पुं० [सं०] १ लेई जो न अधिक गाढी और न अधिक। अगवाद-सज्ञा पुं० [म०] १ निदा। बुराई । २ विश्वास । ३. पतली हो और चाटी जाय । चटनी । माजून (वैद्यक )। २ अनादर। अवज्ञा । ४. सहारा। भरोमा । ५ आदेश । ६ सूचना औपच्च जो चाटा जाय । ३ नियसि । सत्त। अरक—जैसे, | -: [को०] । | सोम [को॰] । अगलेहन--सज्ञा पुं० [स०] १ जीभ की नोक लगाकर खाना । अगश--वि० [म०] १ विवश । परवग। लाचार । २ स्वतत्र । । भक्त को) । ३ अनियंत्रित [को०) ४ जरूरी । अावश्यक | चाटना । २ चटनी । अवलेह्य-- वि० [सं०] चाटने योग्य । । (को॰) । अगलोक-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अवोकन' [को०] । यौ०--अवशेग = स्वतत्र । अवशीभूत = अनियत्रितृ । अवजेंद्रिय- अवलोकक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १.देखनेवाला ।' अवलोकन करने । . ' चित= जिसका मन और मस्तिष्क वश में न किया जा सके । | वालो । १ सोद्दश्य किसी वस्तु को देखनेवाला, जैसे-जासूस अाशप्त--वि० [सं०] अभिशप्त [को०] । ' (को॰] । अशा--संज्ञा स्त्री० [सं०] मरकही या बुरी गाय (को०)। अनलोकन–सज्ञा पुं० [सं०] [ वि० अर्वलोकित, अवलोकनीय'१ अवशिष्ट-वि० [सं०] बचा हुआ । मेष । बाकी । बचा खुवा । |, देखना । उ०-देव कहैं अपनी अपनी अवलोकन तीरथराज बचा बचाया। चलो रे ।--तुलसी अ ०, पृ० २३४ । २ देख लि। जांच अगशीन--संज्ञा पुं॰ [सं०] बिच्छू [को०)। । । । पडताल । निरीक्षण । ३ नेत्र । अाँख [को०] । अशीण---वि० [सं०] टूटा फूटा । नष्ट [को०] । । । अवलोकना--क्रि० स० [स० अवलोकन] १ देखना । ३०-- अगशीर्षक्रिया--संज्ञा स्त्री० [सं०] विरक्त भित्र या राज्यापराध के ' गिरा अनि मुख पकज रोको । प्रगट न लाज निशा अव- कारण बहिष्कृत व्यक्ति के साथ फिर सधि करना । लोकी ।--मानस, १२५६ । २ जाँचना । अनुसंधान करना। अगशीर्ष ---वि० [सं०] जिसका सिर झुका हो ।