पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४१४

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अमूर्घश्य ३४५ अवरेखना -- अवमर्धशय-वि०, संज्ञा पुं० [म०] मिर नीचे करके लेटनेवाचा फो]। अव रति--सज्ञा, स्त्री० [मि ०] १. विरम् । २ निवत्ति । छुटकारा । अवमन्यन--संज्ञा पुं० [सं० ] [ अ० ढिवैल्युएशन ] किसी देश की अवरर्वणभिनिवेश--मजा पुं० [१०] छोटी जातियों ने धम्या है प्रा | सरकार द्वारा दूसरे देशों की अपेक्षा अपने देश की मुद्रा का । - उपनिवेश । - - विनिमय मूल्य गिरा देना । अवरव्रत-मज्ञा पुं० [म ०] १ सूर्य । २ अाक । मदार। अवमोचनसंज्ञा पुं० [स०] निबंध करना । बधनविहीन करना । मुक्त अवरव्रत--वि० हीनद्रत । अधम ।। करना को०] । अवरशैल-सज्ञा पुं० [म ०] पश्चिम का पहाड जिसके पीछे मुर्य प्रस्त अवमोदरिका--संज्ञा स्त्री० [ म० अवम+उदरिका] एक वृत्ति | होता है (को०)। 7 जिसमें क्रमश भोजन में निवृत्ति प्राप्त करते हैं ।हिंदु० । अवरहस--वि० [सं०] जनशून्य । निर्जन को ।। सभ्यता पृ० २३३ ।। अवरा---सज्ञा स्त्री०म०] १ दुर्गा। २. दिशा । ३ हाथी का पिछला अवय--मज्ञा पुं० [सं० अवयव] दे० 'अवयव'। उ०—देवि के वरि , 'माग को०)। | अमृत अवय । 'रजित है अति लाज ---पृ० रा०, २५॥१७७ ।। अवयव सुज्ञा पु० [सं०] १. अश । भाग । हिम्मा । २ शरीर का एक | अवरोधक -वि० [स० आराधन] अाराधना करनेत्राता । पूजने- देश। अग । ३. न्यायशास्त्रानुसार वाक्प्र का एक अंश या भेद । वाला । सेवक । उ०—-ए सब रामभगति के वाधक । केहह विशेष--ये पांच हैं--(१) प्रतिज्ञा, (२) हेतु, (३) उदाहरण, सत नव पद अवरोधक [----मानम, ४।७। (४) उपनय, और (५) निगमन 1 किमी किमी के मत से यह अवराधन)---मज्ञा पुं० [म० श्रारार्थन] अाराधना। उपासना । पूजा । दस प्रकार का है--(१) प्रतिज्ञा, (२) हेतु, (३) उदाहरण, सेवा । उ०----प्रवमि होइ निधि, साहम फनै मुमाधन । कोटि (४) उपनय, (५) निगमन, (६) जिज्ञासा, (.) मशय (८) । कल्पतरु सरिम मनु अवराधन !---तुलसी ग्र०, पृ० ३० । शक्यप्राप्ति, (६) प्रयोजन और (१०) मशव्युदामे । । अवरावना-क्रि० स० [सं० श्रारार्थना] उपासना करना । पूजना । | ४ उपकरण । माघन [को०] । ५. शरीर (को॰] । सेवा करना। उ० ---(क) केहि अवराध का तुम चहुँ । हम यो०--प्रवर्यबसूत = अंगभूत । अशभूल । अवयवबर्म । अवयवरूपक सन सत्य मरमु, सव कइहू --मानस, १७८ । (ख) हरि | =पक का एक भेद ।। हरि हरि हरि सुमिरन करो। हरि चरणारविद उर घरो । अवयवार्थ--मज्ञा पुं० [म ०] पब्दि की प्रकृति र प्रत्यय में निकलने- नै चरणोदक निज व्रत माधो। ऐसी विधि हरि को अब राधो । बाला अर्थ (को०] । -सूर (शब्द०)। अवयवी'- वि०[स० सवयविन्] १. जिसके और बहुत से अवयव हो। अवराधी--वि० [हिं० अपरावना] आराधना करनेवाला । उपा-

  • अगी । २ कुन । सपूर्ण । समष्टि । समूचा।

सक। पूजक । उ०—कहाँ वैठि प्रभु माधि समाधी। प्राजु होव अवयवी- सुज्ञा पुं० १. वह वस्तु जिसके बहुत से अवयव हो । २. हम हरि अवराधी ।---रधूराजे (शब्द०)। देह । शरीर। ३ न्याय में एक तर्क कि०] । अवरार्ध-सज्ञा पुं० [अ०] १ लघुतम भाग । कम से कम । २ उत्त- अवयस्क- वि० [सं०] जो वयम्क न हो [को०] । रार्ध । ३ नीचे या पीछे की प्राधा भोग [को०] । अवसान-मज्ञा पु० [सं०]१ विपथगामी होना । पीछे की अोर आइ । अवरापतन--सझा पुं० [सं०] गर्भपतन [को॰] । २ किसी को मतुष्ट करना 1 ? प्रायश्चित करना [को०] । अवरावर-वि० [सं०] निम्नतम । मबमे निकृष्ट । सबमे बुरा को॰] । अवर'-वि० [सं०] १ अन्य ! दूमर । और उ०---गम दुर्गम । अवरु -अव्य० [हिं०] दे॰ 'और'। | गढ देहु छुटाई । अवरो वात मुनो कछु भई ।-कवीर(शब्द०)। अवरुद्ध-वि०म०]१. ९धा हुआ। २ अाच्छादित । गुप्त । छिf २. अथेष्ठ । अधम । नीच । ३ पिछली (माग)। ४ अतिम अवरुद्धा-सच्चा भी० [सं०] १ अननै बर्ण की वह दामी या म्यो जिमे (को०) । ५ पश्चिमी (को०)। ६ निकटतम । दूसरा [क] । कोई अपने घर में डाल ले । रखनी। मुरैनन । २ वह स्त्री ७ अत्यत श्रेष्ठ [को०) । । जिसे कोई रख ले । उढरी । रघुई। दर-वि० [म० श्र+दल] निर्बल 1 बलहीन । अवरूढ़-वि० [म० अवरूद्ध] १ ऊपर से नीचे आया हुअा । उनरा अवर’---संज्ञा पुं० १ अतीन कान्। २ हाथी का पिछला भाग। हुम्रा । घारूढ़ का उनटा । २ टूटा हुआ।। छिन्नमून (को०)। ग्रेवरक्षक–वि० [म०] पात्रक । रक्षक । अवरूप-वि० [सं०] १ भद्दी प्राकृतिवाला। विरूर । २ पतित । अवरज-मज्ञा पुं० [सं०] [जी० अवरजा] १. छोटा भाई । २ नीच जिसका पतन हो गया हो (को०] । कुनोत्पन्न । न च । अवेरेवना --क्रि० म० [सं० अबलेखन, अयरेखन या झालेखन ] १ अवर(५) र सत्ता पुं० [हिं० | १ ४० 'अवर्ण'। २ ० 'आवरण' । - उरेहूनी । लिम्बना। नित्रित कर ना। उ०--(क)-प्रा में तन देखि । अवेरत'---वि० [२०]१ जो रत न हो । विरत । निवृत्त । ३ हो । शापु तन देबि । 'मीनि जौ होई तो चित्र अवधि 1-मूर०, ) । स्थिर । ३ अन्नग । पृथक् ।। १०॥३०७ । (ख) मवि रघुवीर मुम्ब छवि देबू । चित्ता भीति अवरत ७----संज्ञा पु० [म ० अन्त] ३० श्रावन'। गुप्रीति र भुरूपता अवरे-तुनी (शब्द०)। २ देना। उ०—(क) ऐसे कहते गए अपने पुर नवहि विलक्षण देख्यो ।