पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४११

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अवेदान्य ३४२ अवधूत' अवदान्य --वि० [सं०] १. पराक्रमी । बली । २ अतिक्रमणकारी । अवघावित--वि० [सं०] १ पीछा किया हुअा ! जितका पीछा किया सीमा का अतिक्रमण कर नैवात्रा । ३ व्यय न करके वैनसे चय गया हो । २ माफ किया हुअा [को०] । करनेवाला । कजूम। अवधि--सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ सीमा । हृद। पराकाष्ठा । उ०—- अवदारक-वि० [सं०] विदारण करनेवाला। विभाग करनेवाला । जिन्हहि विरचि ब्रड भयेउ विधाता । महिमा श्राधि राम अवदारक- सज्ञा पु० मिट्टी खोदने के लिये लोहे का एक मोटा डडा। पितु नात --उगी (शब्द॰)! २ निर्धारित समय । खता । रेभा । मीयाद । उ०—रहयौ ऐचि, अनु न ल हे अवधि दुमाउनि अवदारण - सज्ञा पुं० [सं०] १ विदारण करना । विभाग करना । बीरु । पानी वाढ तु विरहू ज्यौं भवानी को वीर ----विहारी २ ताडना । फोइन।। ३ मिट्टी खोदने का शौजार । र०, दो० ४००। ३ गड्डा । गर्न को०)। ४ प्रमाण को] । रभा । खता। ५ उपजनपद। पडोग कि०] । ६ अन ममय । अतिम अव दारित-धि [सं० [विदारण किया हुस । विदीर्ण । टुटा फूटा । काल । उ०--(क) ग्राजु अवधिमा पहुच गए जाउँ मुखरात । अव दाह-संज्ञा पुं० [सं०] १ अत्यधिक गर्मी । भीषण ताप । २ अाग बैंनि रोहु गहि मारहु जनि चा है यह बात |-जायसी । लगाना। जलना। ३ कुश की जडे । खेम [को०] । (ग) 1 (3) तेरी अवधि कहत मे कोऊ नाते कहियत अवदीर्ण-- वि० [सं०] १ विभक्त । टूटा हु। २ घबराया हुआ । बात । विनु विश्वास गरिहै तो ो मनु न के प्रान --- | उदास । ३ पिघला या घुना हुग्रा [को०] ।। सूर (शब्द०)। अवदोह–संज्ञा पुं० [सं०] १ दूध। दुग्ध । २ दूध दुहना । दोहन । मुहा०--प्रवधि देना=भ मय निर्धारित करना । अपधि बदना= अव द्य--वि० [सं०] १ अघम । पापी । २ गहत । निद्य । । समय निवन फरना। उ०—याज दिनु प्रानैद के मुव तेरो । त्याज्य ।४ कुत्सित । निकृष्ट। निनि बनिये की अवधि व मो, साँझ गए कहि श्रावन । अवद्य--व्रज्ञा पु० १ दोप । २ पाप । ३ निदा ४ लज्जा [को०)। मूरश्याम अनतहि कहुँ नुवधे नैन गए दो सावने ।---सूर अवध--संज्ञा पुं० [सं० अयोध्या]१ कोशल । साकेत एक देश जिसकी (शब्द॰) । प्रधान नगरी अयोध्या थी । २ अयोध्या नगरी । अधि:--अव्य ०[स० [तक । पर्यत । उ०---तोनो हीं फिर फिर हित अवध -सज्ञा स्त्री० [सं० अवधि] दे० 'अवधि' । प्रिय पुनीत सत्य वचन कहत। विधि लगि लघु कोटि अवधि अवध-वि० [सं०] अवध्य । न मारने योग्य [को०] । सुद मुवी दुख दहत ।-तुन मी (शब्द॰) । अवधान'—सद्मा पु० [सं०] १ मन का योग । चित्त का लगाव । यौ०---अद्यावधि = 7व त क । समुद्रायधि= समुद्र तक। मनोयोग । २ चित की वृत्ति का निरोध करके उसे एक और अनधिज्ञान--सज्ञा पुं० [सं०] जैन शास्त्रानुनार वह ज्ञान जिसके द्वारा लगाना। समाधि । ३ पाने । सावधानी। चौकमी। पृथ्वी, जल, अग्नि, पवन, अबकार और छाया ग्रादि में व्यवहित अवधान ---संज्ञा पुं॰ [सं० आघात] गर्भ । गर्भाधान । पेट । उ०-- द्रव्यों का भी प्रत्यक्ष हो और आत्मा का भी ज्ञान हो । जैस अवघान पर होइ मासू । दिन दिन हिये होइ परगासू ।- अवधिदर्शन । जायसी ग्र०, पृ० १६ । अवविदर्शन--संज्ञा पुं० [सं०] जैन शास्त्रानुसार पृथ्वी, जल, वनादि अवधानी–वि० पुं० [स०अवधानिन]ध्यान रखनेवाला । ध्यानी (को०] । से व्यवति पदार्थों को यथावत् देवन: । अवधिज्ञान। अवधार-संज्ञा पुं॰ [सं०] निश्चय । सीमा [को०) । अगविमानसशा पु० [सं०] नमूद्र । उ०--प्राची जाय अथर्व अवधारक-वि० [स०] अवधारण करनेवाला । किसी एक विपय प्रतीची के उदित गातु मानुमान सीस चूम लेवे भूमि मित को । | पर अपने को केंद्रित करनेवाला [को०) लाँघि कै अवधि जो पै इमर्ग अवधिमान बांधे यह चाल जो पे कालहू के गत को --चरण (शब्द॰) । अवधारण-संज्ञा पुं० [सं०] [वि० अवघारित, अवधारणीय] १ , अवधी--वि० [हिं० अवघ+ई (प्रत्य०)] अवध नवधी । अवध को । विचारपूर्वक निर्धारण करना। निश्चय । २ प्राब्दार्थ की जैसे—'अवधी धोक' २ ।. अवध की भापा । इयत्ता स्थिर करना [को०] । ३ शब्द अादि पर वेरा देना (को०]। अनधी- सच्चा झी० दे० 'अवधि" । ४ केवल विपय पर ध्यानस्थ होना [को०] । अवघीरण----संज्ञा पुं० [सं०] पवमान या तिरस्कार करना [को०] । अवधारणीय--वि० [सं०] विचार करने योग्य । निश्चय योग्य ।। अनघोरणा-सज्ञा स्त्री० [सं०] तिरस्कार । अवज्ञा । अवधारना —क्रि० स० [सं० अवधारण 1१ धारण करना । ग्रहण अवधीरित--वि० [स०] अपमानित । तिरस्कृत । करना । उ०- विप्र असीम विनित अवघारी। सुवा जीव अवधू--संज्ञा पुं० ]हिं०] दे० 'अवधूत' । उ०--अवधू ऐसा ज्ञान नहि करौ निरारा। जायसी (शब्द०)। २ निश्चय करना। | विचारी, ज्यू वहुरि न ससारी |--कवीर ग्र०, पृ० १५६ । समझना । अनघूक-वि० [सं०] विना पत्नी का को०] । अवैधारित–वि० [सं०] निश्चित । निर्धारित । ' अवधूत---सज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० अवधूतिन्] १. सन्यासी । साधु । अवधार्य–वि० [सं०] निश्चय करने योग्य । श्रावधारण करने योग्य । योगी । उ०—(क) घूत कहौ, अवधूत कही, रजपूत कहीं। अवघवन-सज्ञा पुं० [सं०] १. पीछा करना। २. साफ करना। धोना जोलह कह को 1--पुलसी ग्र०, पृ० २२३ । (३) यह की । सूरत यह मुद्रा हुम न देख अवधूत । जाने होहिं ने योगी कोड