पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४१०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अवतरित अवदान ११५ प्रवतरित--वि० [हिं० अवतरना]१.नीचे आया हुआ । उतरा हुअा। अवतारना--क्रि० सं० [सं० अवतारेण] १ उत्पन्न करना । उ०—अवतरित हुग्रा मैं, अपि उच्चफल जैसा ।—साकेत, पृ० रचना । उ०----चाँद जैस सग विवि अवतारा । दीन्ह कलक २१८ । २ जन्म हुआ। शरीर ग्रहण किया हुआ । ३ किमी कीन्ह उजियारा ।--जायसी (शब्द०)। २. उतारना । जन्म दूसरे स्थल से लिया हुया । ४ अवतीर्ण । देना । उ०—(क) सिंध नदीप राजघरबारी । महा स्वरूप दई अवतर्पण--सन्ना पु० [सं०] शाति प्रदान करनेवा ना साधन । अनुकूल अबतारी ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) वन्य कोख जिहि तोकौं उपचार को] । २) धनि घरि जिहि अवतारी । धन्य पिता माता तेरे छवि अवतान--सज्ञा पुं० [सं० अवताडन] १ रौंद देना । कुचल देना। २ निरखति हरि महतारी ।—मूर०, १०॥७०३ । ग्राघात करना या चोट देना [को॰] । अवतारवाद–सच्चा पु०म० अवतार +वाद] भगवान् का मनुष्य प्रादि प्रवतात—सझा पुं० [सं०] १ अाच्छादन 1 वरण । १ लटका हुग्रा का शरीर धारण करने का सिद्धात । चेहरा । ३ धनुष की प्रत्यचा ढीभी करना । ४ तानना । अवतारी--वि० [सं० अवतारिन्] १ उतरनेवाला । अवतार ग्रहण कैलाना। ५ लाशो का फै वाव । ६ प्रातपत्र । चॅदवा (को०] । करनेवाला । उ०—-धनि यशुमति जिन बस किये अविनाशी अवतापी- वि० [सं० प्रबंतापिन्] १ ताप देनेवा वा । तपानेवाना। अवतार । धनि गोपी जिनके सदन माखन खात मुरारि ।--- || २ (स्थान) जो अधिक तप्त हो [को०] । सूर (शब्द॰) । २. देवाशधारी । अलौकिक । उ०—-कहत अवतार--सज्ञा पुं० [सं०] १ उतरना। नीचे अना। २ ज म ।। ग्वाल जसुमति घन मैया । वडो पूत ते जायौ । यह को 3 माहि शरीरग्रहण । उ०--(क) नव अवतार दीन्ह विधि आजू । पुरुप अवतारी भाग हमारे अयौ ।--सूर०, १०।२००६ । रही छार भइ मानुष माजू !-—जायसी (शब्द॰) । (ख) प्रथम अवतारी-सज्ञा पुं० २४ मात्राम्रो का एक छद जिसके ७५०२५ देच्छ गृह तव अवतारा। सतो नाम तव रहा तुम्हारी । प्रस्तार हैं । रोला, दिपाल, शोभा और लीला आदि इसके तुलसी (शब्द०)। ३ पुराण के अनुसार किसी देवता का मनुष्यादि समारी प्राणियों का शरीर धारण करना । ४ विष्णु अवतीर्ण --वि०म०] १ उतरा हुमा । अवनति । २ अ नूदित को]। को संसार में शरीर च्चारण करना । ३ व्यतीत, जैसे रात्रि [को॰] । ४ पार किया हुआ। कि०] । विशेप-पुराणानुमार विष्णु भगवान् के २४ अवतार हैं-ब्रह्मा, ५ स्नात (को०] । ६ अवतार ग्रहण किया हुआ (को॰) । वाराह, नारद, नरनारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ, ऋषभ, ७ उदाहृतं । उद्धृत ।। पृथ, मत्स्य, कर्म, धन्वनरि, मोहिनी, नृमि, वामन, पशुराम, अवतोकामज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्त्री या गाय जिसका गर्भपात किसी वेदव्याम, राम, बलराम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि, हम ग्री' हुयेग्नीव, दुर्घटनावश हो गया हो किो०] । इनमे मे १० अर्थात् मल्य, कच्छप, बराह, नृसिंह, वामन, परशु- अवथ्थ--वि० [सं० अवन्तु] निरर्थक । व्यर्थ । अवस्तु । उ०-- राम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि प्रधान माने जाते हैं । तुम चित्त छडि हुम घर चलहि । इह अवथ्य पत्रग ।-पृ० रा०, ६६३५६ । ५ सृष्टि । शरीररचना। उ०---कीन्हेसि धरती सरग अवदश-सज्ञा पुं० [सं०]मद्य रान के समय जो कंबाव, बड़े प्रादि खाए पतरू । कीन्हेमि वरन वरन अवता |--जा यमी (शब्द॰) । " | जाते हैं । गजक । चाट । ६ अवतरण भूमि। उतरने का स्थान [को०)। ७ ता नाव [को०] अवदस---मक्षा पु० [हिं०] दे॰ 'अवदश' । ८ अनुवाद किौe] । ६ विषय प्रवेश । प्रमुख । भूमिका को०] । अवदग्ध--वि० [सं०] जला हुआ (को०] । १० तीर्थ को । ११ विशिष्ट व्यक्ति [को॰] । १२ उत्पत्ति । अव दमन—सझा पुं० [सं० अपद नन] अच्छी तरह दबाना । दमन विकास [को०] । | करना । मुहा०--अवतार लेना= शरीर ग्रहण करना । जन्म लेना। उ० अवदरण-सद्मा पं० [सं०] तोड ना फोड ना'। अछी तरह दरना या मन्ह सहित मनुज अवतारा । लेइ3 दिनकर बम-उदारा ।- पीसना [को०] । तुलमी'(शब्द०)। अवतार घरना = जन्म प्रहण करना । उ०-- अवदाघ--ससा पुं० [सं०] १ तपन । जलन । २ ग्रीष्म ऋतु [को०] । भुव की रक्षा करन ज का वरि वराह अवतार । पीछे कपि न अवदात--वि० [मं०] १ शुभ्र । उज्वल । श्वेत 1 उ0--हेमी रानी रूप हरि धारयो कीन्हो साख विचार !-—सूर (शब्द०) ५ मुनकर वह बात, उठी अनु म अ भा अवदात |----साकेत, १० अवतार करना(५) = शरीर धारण करना । उ०—प्ररुन असित २७ । २ ] द्ध । स्वच्छ । विमल । निर्मल । उ०—ोच अति सित वपु उनहार । करत जगत में तुम अवतार !• सूर (शब्द॰) । पोच उर मोच दुखदानिए मानु यह बान प्रवदात मम मानिए । या अवतारकथा । अवतारमत्र = भगवान् से अवतार ग्रहण -रामच०, पृ० ७४ । ३ शुक्ल वर्ण का। गौर । ४ पीत करने के लिये की गई प्रार्थना । अवतारवाद । वणं का। पीला ५ खूर्वसूरत । सुदर [को॰] । ६ उत्तम् । 11ण-सझा पुं० [सं०] [स्त्री० अवतारा] १ उतारना । नीचे पुण्यशील (को०)। जाना । उ०—कुर कर्मों की अवतारगी से भी एक बार सदमे अवदान–सच्चा पु० [सं०] १ प्रशस्त कर्म । २ झाद' के उठाने की प्राकाक्षा थी।--स्कद०, १० ८४ । २. उतारनी है फाम । २ खहन । तोडना । ३ पराक्रम । शक्ति बल । ४. १०] ।६ पूजा । अच [को०)। ७. पोशाक का छोर या अतिक्रम। उल्लन । ५ शुद्ध करना। पवत्रि करना । नाफ किनारा (कौ] । करना । ६. वीरणमूल । पसे । उशीर । गुडिरे । जई.