पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४०९

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अवजित अवतरणी। अवजित-वि० [सं०] हारा हुआ । विजित । तिरस्कृत [को०]। अवदुज--- सज्ञा पुं० [सं०] गिर के पिछ? मग का वात [को०)। अवज्जि--- सझा पु० [फा० आवाज] १ पुकार । अावाज । २ शोर- अवडग----संज्ञा पुं० [स० प्रवदङ्ग] हाट । बनार (ौ० । गुल । उ०----पुनी धाङ्ग जसवत नृप, अायो सेन मुमज्जि । अवडीन--- मज्ञा पुं० [म०]पी की उड़ान । पक्षियों का ऊपर से नीचे ढल कि ढाल बद्दल मिनिय, पुत्र झा उ अवज्नि । की तरफ लाना [को०] । पृ० ०, ४।२५।। अवडेर--सज्ञा पुं० [स० प्रय+हि० रार । राड]झमे T। झझट। अवज्ञा--सज्ञा पुं० [सं०] [वि० अधज्ञात, अवज्ञ य] १ अपमान । प्राना- बखेड।। दर । २ प्रज्ञा का उल्लघन । प्रज्ञा न मानना । अवहे ना । ३ प्रवडेरना --क्रि० स० [म० उतन या हि० अ डेर] १ न बनने पराजय । हरि ११ वह काव्यालकार जिम में एक वस्तु के गुण | देना । न रहने देना। उ०--भोगनाथ भोरे ही सुप होत या दोप से दूसरी वस्तु का गुण या दोष न प्राप्त करना दिख थोरै दोप, पोपि तोपि यानि प्रायने न अपडेरिये 1--नारसी लाया जाय, जैसे,— करि वेदात विचार हू शठहि विराग ने ग्र २, पृ० २५६ । २ चक्कर में डाउनः । फेर में होना । होय । रच न मृदु भेनाक 'भो निशि दिन जन में सोय ।-- उ०—(क) पच फहे मित्र गती विही । पुनि अवडेरि मर- (शब्द॰) । एन्हि ताही --नाम, १५७९ । अवज्ञात--वि० [सं०] अपमानित । तिरस्कृत ।। अवडेरा -वि० [हिं० अबढेर १ घुमाव फि पाना । चक्कर- अवज्ञान--सज्ञा पुं० [सं०] अनादर । अप्रतिष्ठा [को०]। दार । २ वेढब । कुडव । उ०—-जननी जनक तज्यो जनमि अवज्ञेय--वि [म०] अपमान के योग्य । तिरम्कार के योग्य ।। करम विनु बिहि सृज्यो अपरे ।---तुन मी ग्र०, पृ० १७२। अव झरि--सज्ञा स्त्री० [प्रा० श्रोझरी] दे० 'प्रोझ' । उ०--झr- अढर--वि० [सं० अब+हिं० डरना] ० 'द्रौदर' । उ०--(क) झोरी तोरि अवझरि उजरि । गहि हमे न हम्मीर त्रिय -- सुतोप तुम्ह अबढर दानी । प्रारनि हुरहू दीन जनु जानी।- पृ० रा०, ६४।३३५ ।। मानरा, २।४४ । (ख) लच्छ नी रह पच्छ दीन्हो दान प्रवढर अवझोरा---सज्ञा स्त्री० [प्रा० श्रोरुज्झ T] उलझन । झैझट । गाँठ। ढुरन । ---सूर०, १२०२।। उ०—चित्र बचित्र इहै अवझोरा। तजि चित्र चितु राखि अवतक्षण-- -सज्ञा पुं० [म ०] टुकड़े में काटी गई कोई वस्तु (को०] । चितेरा --कवीर ग्र ०, पृ० ३१० ।। अवतत- वि० [अ०] १ ढेका हुन्न। ग्रावृत । २ फैला हुआ । विस्तृत अवट-सज्ञा पुं० [स०] १ गड्ढा । कुड़ । २ हाथियो के फैमाने के [को०] । लिये गड्ढा जिसे तृणादि से आच्छादित कर देते हैं । खाँड ।। अवतमस---सज्ञा पुं॰ [सं०] १ साधारण अवकार । क्षीण अधार । माला । ३ गले के नीचे कधे शौर कख अादि का गड्ढा । ४ । २ अधकार । ३ अस्पप्टना । गुहयता [को॰] । एक नरक का नाम । ५ दति का गड्ढा । दतकोटर (को॰] । अवतण--.-मज्ञा पुं० [सं०] १ उतारना । पार होना। २ उतार २ ६ बाजीगर । ऐंद्रजानिक [को०) ।। शरीर धारण करना। जन्म ग्रहण वरना । ३ नफन । प्रति- यौ०--अवटनिरोधन, अवटविरोधन = नरकविशप का नाम । कृति । ४ किसी पुस्तक या लेख का ज्या का त्यो उतारा या अवटकच्छप---सज्ञा पुं० [सं०] १ गड्ढे के भीतर रहनैथाना कच्छप नकन किया हा अश। उद्धरण । ३०---ऊपर दिए अवतरण अर्थात् अज्ञानी मनुष्य [को०] । में हम स्पष्ट देखने हैं कि किसी उक्ति की तह में काव्य की अवटना'५----क्रि० स० [सं० श्रावन, प्रा० प्रापट्टन, माटुन] १ सरसता बराबर पाई जायगी ---रस०, पृ० ३६ । ५ मथना । अालोडन करना। २ किसी द्रव पदार्थ को आग पर प्रादुभव । ६ मीढ़ी जिनमे उतरे । घाट की साढो । ७ घाट। रखकर चलाकर गाढा करना । उ०—-(क) परम धर्ममय पय । ८ तीर्थ को] । ६ परिचय । उपोद्घात । [क]। दुहि भाई। अवटै अनल अकाम वनाई ।--मानस, ७/११७ । यौ॰--अवतरणचिह्न। अवतरणमगल । (ख) कान्ह माखन खाहु हम सु देखें । सद्य दधि दूघ अवतरणचिह्न---संज्ञा पुं० [सं०] उल्टे नगे हुए विराम चिह्न ल्याई अवटि हम, खहु तुम सफल करि जनम लेखे ।--सूर०, जिनके बीच किमी का कयन उदधृत किया गया हो, जैने- '। १०1१५६६ । अवतरणमगल--सज्ञा पुं० [स० अवतरण मङ्गल] श्रद्धापूर्वक किया मुहा०--अर्वटि मरना= भ्रमना । मारे मारे फिरना । चक्कर गया स्वागत [को॰] । खाना । दुख उठाना। उ०—जा चरन बिचारहु मेरी कलप अव तरणिका–संज्ञा स्त्री॰ [सं०]१ ग्र थ की प्रस्तावना । उभौघात। कोटि लगि अवटि मरौं । तुलसिदास प्रभु-कृपा-बिलोकनि गोपद अवतरणी । २ परिपाटी । रीति । ज्यो भवसिंधु तरौ ।--तुलसी ग्र ०, पृ० ५२९ । अवतरना----क्रि० प्र० (स० अवतरण) प्रष्ट होना । उपजना-।- अवटना –क्रि० अ० [सं० अटन] घूमना फिरना । जन्मना । उ०—(क) इच्छा रूप नारि अवतरी। तामु नाम अवटी-सज्ञा स्त्री० [स०] १ गड्ढा । २ कु । ३ छेद [को०] । गायत्री धरी ।---कबीर (शब्द॰) । (ख) बहुरि हिमाचल के अवटीट--वि० [सं०] चपटी नाकवाला । नकन्चिपटा ।। अवत। समय पाइ सिव बहुरो वरी ।---सुर०, ४५५ । " अवटू----सज्ञा पुं० १ विल । २ फुय । ३ गले का पिछला अवतरणी --- सज्ञा क्षी० [स०] १ ग य की प्रस्तावून के 1िये भूमिका हिस्सा । १ शरीर को दबा हमी भ[ग । ५ एक प्रकार जो इम अभिप्राय से लिखी जाती है कि विपत्र की संगति भिT को वृक्ष। जाय ! उपोद्घात । २. रीति । परिपाटी ।