पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४०८

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अजय प्रवडण-संज्ञा पुं० [सं०] १ अनादर। अवमान 1 अपमान । २ अवचार-वि०म०]तीचे यी ऊपर की और जाना जाता हुप्रा [को०] रोक । वाधा [को०] । ३ ज्ञान को०)।। अवचार’-- सज्ञा पुं० १ । राम्त । सडक । २ कार्यक्षेत्र [को०] । | अवग्राह---संज्ञा पुं० [स०] १ सबधविच्छे । अगाव । २.बाधा अवचित----वि०म० ]१ चु । हुन । बटोर हुप्रा । २ अावादको]। [को०)। ३ कोसना को०)। दे० 'अवह' ।। अवचूड-- -सच्चा f० [स० अव वूड] ध्वजा के प्रगने माग मे नीचे झूलता अवघट(पु–वि० [स० अव +घट्ट= घाट] कुघाट । अटपट । अडवट ! हुप्रा वस्त्र को०] । विकट। दुर्गम । कठिन । दुर्धट । उ०—(क) सरिता वन गिरि । अवचूडा---पच्ची झी० [सं० अरबूडा] माना को०]। अवघट घाटा । पति पहिचानि देहि बरे वादा 1---मानम, अवचूटिका --संज्ञा स्त्री० [सं०] टिप्पणी । नघु व्याख्या [को०) । ३१७ (१क) । (ख) घाट वाट अवघट यमुना तट बातें कहत अवचूरो-- -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०प्रदूरि ] टीका ! टिप्पणी । बनाय । कोऊ ऐसो दान लेन है कौने सिख पठाय 1- सूर । अगणित--- वि० [सं०] १ विचूर्ण किया हुआ । भली भाँति पीसा | हुआ । २ मिश्रित किया हृा। मिनाया हुश्रा [को०] । । अवघटू--संज्ञा पुं० [सं०] १ विल । गुफा । २. पीसने की चक्की । ३ । अवचुल-सा पुं० [सं०] अत्रचूड [को०] । । हिवाना (को०] । अवचूलक----सज्ञा पुं॰ [स]चंवरी गाय की पूछ के बाल या मोरपंख अवघट्टन--सझा पु० [म०] १ पीमना । मर्दन । २ दो वस्तुओं का का बना हुआ सँवर को॰] । | परस्पर संपक । मिलन कि०) । अवचेतन---वि० [सं०] अवचेतना सवधी 1 आशिक चेतनाबाला ।' || अवधर्पण--सज्ञा पुं० [सं०] घसना । भजन । रगडना (को०] । अव चेतन--संज्ञा पुं॰ [सं०] मनोविज्ञान के अनुसार मन का बह माग || अवघाटक --संज्ञा पु० [म.] एक प्रकार का हार [को०)। जो चेतन मन में न होने पर ग थोडा प्रयास करने में चेतना में अवघात-सच्चा पु० [सं०] १.चोट । ताडन । घन। प्रहार । २. लाया जा सके। इसका स्थान अह तथा अचेतन के बीच माना कूटना [को०) । ३.अकाल मृत्यु । अस्वाभाविक मृत्यु [को०] । गया है । । अवघाती--वि० [सं० अवघातिन् | अवधान करनेवाला [को०] । अवचेतना----सज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'अवचेतन' । अवघूर्ण'-- संज्ञा पुं० [सं०] ववडर [को०] । अवच्छद-- -सज्ञा पुं० [स०] ढकना । मरपोश । अवघूर्ण-वि० क्षुब्ध (को०)। अवच्छाद-सज्ञा पुं० [स०] ढकना । अवच्छद (को॰] । अवघूर्णन----संज्ञा पुं० [सं०] चक्कर काटना ! बवडर [को॰] । अवच्छिन्न-वि० [सं०]१ जिसका किसी प्रवच्छेदक पदार्थ में अवच्छेद || अवघोरित--वि० [सं०] चारो ग्रोर से ढंका या मढा हुआ (को०)। किया गया हो । ॐ उग किया हुअा। पृथक । २ विशेपणयुक्त । ३ सीमित ।। अवघोपक-संज्ञा पुं० [सं०] झूठी खबरें उडानेवाला व्यक्ति । विशेष-- चद्रगुप्त मौर्य के समय में ऐसे लोगो को फांसी पर चढाने अवच्छरित'---संज्ञा पुं० [सं०] कठोर' या कर्क र हास्य [को०] । का दंड दिया जाता था। अवच्छरित-वि० मिला जुला । मिश्रित (को॰] । अवघोपणा----संज्ञा स्त्री० [सं०] घोषणा [को०] ! अवच्छेद--संज्ञा पुं॰ [सं०][वि॰ अवच्छेद्य, अवछिन] १ अलगाव । अवच- -क्रि० वि० [स०] नीचे को०]। भेद । २ इयत्ता ! हृद। सीमा । ३ अरवार । निश् च । अवचट '*---सज्ञा पुं०० अव नहीं + हि० घट= जल्दी अथवा स० छानवीन । ४ स गीत में मृदग के बारह व 7 मे में एक । ५ अव= थोडा+हि० चित]अनजान । अचक्का उ०----पानि परिच्छेद । विभाग । ६ किवी वस्तु का वह गु गु या धर्म सरोज सोह जयमाला । अवचट चितए सुकल भुम्राली !---- जिसमे अन्य पदार्य पृथक् प्रतीत हो [को०] । व्यानि [को०] । मानस, १॥२४८ । अवच्छेदक-वि० [स०] १ छेदक । भेदकारी । अनमें करनेवाना। अवचट’---सज्ञा पुं० [हिं०1 कठिनाई । अवघट । अडस । चपळुलिस ।। २. इयत्ताकार । हुद बाँधनेवाला । ३ अवधारक । निश्चय जैसे---प्रवचट में पड़ कर मनुष्य क्या नहीं करता । करनेवाला । प्रवचन-सा पुं० [सं०] १ वचन का अभाव । मौन ! २ बुरा वचन । निदा । दुर्वचन ।। अवच्छेदक---संज्ञा पुं० १ विशेपण । ३ भीमा । इयत्ता (को०)। अपचनयि----वि सि०] १. जो कहने योग्य नहीं । ३.अश्लील । अवच्छेदकता-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. अवच्छेद करने का भाव । | पृथक् करने का धर्म । अलग करने का धर्म । २ हद या सीमा बाँधने का भाव परिमिति । नवचय ---सज्ञा पुं० [सं०] चुनकर इकट्ठा करना । फूल या फल तोड- फर वेटोरना । उ०—-नया नया उल्लास कुसुम अवचय का अवच्छेदन-- संज्ञा पुं० [सं०]१.काटना । विभाजन । खडे करना। ३. | मन में उठता था !---प्रेम०, पृ० १७ ।। सीमा निर्धारण करना कि०] । चल---वि० [सं० अविचल अचल --उ०-पुहमी जोड़ अव अवच्छेद्य-~-वि० सं०) अलगाव के योग्य ।। भल प्रेम |•-रघु० ० पृ० १२४ । अवच्छेपणी --संज्ञा पुं० (सं० अबक्षपणी) दहन । दाँत । लंगम । प्रवचस्कर----वि० [सं०] मन । चुप [फौ] । अवछग : -संज्ञा पुं०० उत्प) ३० उ87] । घाम-सी पुं० [सं०] फुल फूल शादि मून ना को । अवजय-संशा जी० (सं०) द्वार। परजन (को०] । । विशेष