पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४०६

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|| अवकृपा अवारना । अवकृपा-सज्ञा स्त्री॰ [म०] कृया का प्रभाव । नाखुशी । उदासीनता । अवखडन--संज्ञा पु० [ १० अयसण्डन ] १ नष्ट करना । तोड फोड । अवकृप्ट–चि ०म०]१ दूर किया हुआ । निकाला हुआ । २ निग | करना । २. खडे खड या अलग अलग तोदना (को०] । || लित । नीचे उतारा हुआ । ३ नीच । नीच जाति का । अवखात-मज्ञा पुं० [स०] गहरा गड्ढी ! || अवकृष्ट-सज्ञा पुं० घर में झाड लगानेवाला । दास । अवखाद---सा पु० [सं०] अपवित्र या खराव भोजन । २ अनुपयुक्त ।। अवकेश-वि० [म०] लटकते हुए बालोवाला (को०] । | नैवेद्य [को॰] । अवकेशी–वि० [म० प्रवकेशिन्] १ फल न देनेवाला । २ लघ या अवगड--संज्ञा पुं॰ [ स० अवगण्ड ] चेहरे या गालो पर होनेवाली । अल्प वानवाला को०] । | फुडिया या फुसी । मुहाँमा [को०] । || अवकेगी--सज्ञा पु० फलहीन वृक्ष (को०] । अवण–वि० [सं०]१ स्वजनों से अलग रहनेवाला । एकातवामी [को०] अवकोकिल--वि० [सं०] कोयन की आवाज में कपित [को०)। अवगणन--सज्ञा पुं० [म०] [वि॰ अवगणित] १ निंदा । तिरस्कार । अवक्षन--संज्ञा पुं० [सं० अवेक्षण] देखना । अपमान । २ नीचा देखना । पराभव । पराजय । हार । अवक्तव्य-वि[सं०] १ न कहने योग्य । २ निषिद्ध । ३ अश्लील । ३ गिनती ।। । ४ मिथ्या 1 झूठ । अवगणना--संज्ञा स्त्री० [स०] २० 'अवगणन'। अवक्त्र---वि० [सं०] जो खुला न हो । विना मुह को-जैसे, धरतन अवगणित----वि० [सं०] १ निदित। तिरस्कृत। अपमानित । २. ' या फोडा (को०] । | नीचा देबा हुन्न । पराजित । ३ मिना हुया । । अदक्रद---वि० [सं० अबक्रन्द] दे॰ 'अवंदन'। अवगत--वि० [म०] १ विदित । ज्ञात ! जाना हुया । उ०-- -"वह || अवक्र दन-सा पुं० [सं० अबक्रन्दन] ऊँचे स्वर मे रोना कौ०] । | मुझे भी भाँति अवगत हैं”।--चद्र०, पृ० २१५ । अवकम--मज्ञा पुं० [मं०] १ उनाव । नीचे की ओर उतरना । क्रि० प्र०.--होना = मालूम होना । जान पडना । अवक्रम--संज्ञा पुं० [सं०] नीचे की तरफ उतरना । २ बौद्ध और २ नीचे गया हुग्रा 1 गिरा हुआ। ३. वादा किया हुआ [को०] । जैन धर्म के मतानुसार गर्भ में ग्राना को०) । - अवगतना--क्रि० स० [म० अवगत +हिं० ना (प्रत्ये०)] [१० रूप, | अवय--संज्ञा पुं० [मं०] १ वदना । २ मूल्य । दाम । ३ भाडा ! अवगताना] मोचनी । नमझना। विचारना । उ०—-मास । । किवा । ४. कर ।। मास नहिं करि मकै छठे माम अलवत्ति |-- यामैं ढील न । अदक्राति-स) झी० [ म० अबक्रान्ति ] १ अधोग मन । उतार । कीजिये यावर अवगति ।- --कवीर (शब्द॰) । निरव । ३ झकाई । अवगति--सज्ञा स्त्री० [स०] १ बुद्धि । धारणा । समझा २ फुगनि। अँक्रोक- वि० [सं०] माँगकर लिया हुआ । मॅगनी लिया हुआ । नीच गति । ३ निश्चयात्मक ज्ञान । अवगथ-वि० [सं०] प्रात न्नात । तऽके नहाया हुआ [को०] । विशंप-प्रवक्रीतक वस्तु न लौटानेवाले के लिये याचितक के । | नमान ही दइविधान थी। अवगनना -कि० अ० [स० अवगणन] १ निदा करना । तिर- विक्रीतक’--मज्ञा पुं० किए या 'भाड़े पर लिर्या हुशा माल । स्कार करना । २ तुच्छ समझना । कम या घटिया समझना। अवकोश--संज्ञा पुं० [म०] १ कर्कश स्वर। असह्य डी बोनी । ३ ३ कम मूल्य या महत्व प्रकिना या नगाना । कोमन । गाली । ३ निंदा । अवगम--सज्ञा पु० मि०] ३० वगमन' क्रिो०] । अवगमन--सज्ञा पु० [म०] देख सुन कर किसी बात का अभिप्राय प्रवक्तन--वि० [म०] आई । गीला । तर । भीगा हुा । जान लेना । जानना ममझना । २ ० 'अवगनि'। अवक्लेद-ज्ञा उ० [म०] जलस्राव (को॰] । अवगर----वि० [स० अवग्नह=ज्ञान] [वि० जी० अवगरी] ज्ञान या अवक्षत्र--संज्ञा पु० [सं०] क्षय । नाश । हानि [को०)। समझवझवावा ।। अवक्षिप्त--वि० [२०]१ गिर इ । २ जिसकी निंदा की गई हो। अवगलित---वि० [म०] नीचे गिरा हुआ [को०] । | जिमगर लाठन लगाया गया हो । अवगहना----क्रि० स० [न० अवगाहन] यहाना । याह लेना। प्रवक्षुत--वि० [सं०] जिनपर धीक पई गई हो। अवगढ---वि० [सं० अगाढ] १ निविड । छिपा हुआ । २ प्रविष्ट । अवक्षेप-मज्ञा पुं० [सं०] १ आपत्ति । १, अारोप को]। घसा हुआ । निमग्न । ३ नीचा । गहरा (को०] । ४. जमता या अवक्षपण--मज्ञा पुं० [म॰] [वि० श्रवक्षिप्त) १. गिराना। अध पात गाढ़ा होता हुआ जैम, दून (को०] । करना ! नीचे फेंकना ! होता है । अवगाद---संज्ञा पुं० [सं०] नाव में पानी उलीचने के लिये काठ का विशेष--शेपक शास्त्र में यह प्रक्षेपण, आकुचन अादि पांच एक छोटा पान [को०] । कर्मों या क्रियायों में से एक है। अवगाधना)---क्रि० [हिं०] २० 'अवगाहना' । २ अाधुनिक विज्ञान के अनुसार प्रकाश, तेज या पाद की गति में अवगारना-क्रि० स० [ म ० स्रव +7 ] समझाना बुझाना । उके किसी पदार्य मे होकर जाने में वक्रता का होना । ३। जतान। उ०----कहा कहत रे मधु मतवारे । हम जान्यो यह निदा नरना(ब्द०)।४ पराभून। करना या पछाडना [को०] । श्याम मखर है वह तो औरे न्यारे । नर पाहा यावेः भु अवक्षेपणी--मज्ञा स्त्री० (न०) वाग 1 लगाम कि०] । नाग कौन याहि अगा! ---उ० (जन्द०)।।