पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४०४

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| अवकृपा ३३७ अवगारला । अवकृपा-मझा " [स०] कृपा का अभाव । नाखुशी । उदासीनता । अवखडन-नशा पु० स० प्रयखण्डन ? १. नष्ट करना । तोड फोड | प्रवकृप्ट–वि०म०]१ दूर किया हुआ । निकाला हुआ । २ निग | करना । २. खडे खड या अलग अलग तोडना [को॰] । लित । नीचे उतारा हुा । ३. नीच । नीच जाति का । अवखात--संज्ञा पुं० [म ०] गहरा गड्ढा । अवकृप्ट---सज्ञा पु० घर में झाड लगानेवाला । दास । अवखाद--सज्ञा पुं० [सं०] अपवित्र या खराब भोजन । २ अनुपयुक्त || अवन-वि० [सं०] लटकते हुए वालोवाला कौ । नैवेद्य [को॰] ।। अवकेशी-वि० [सं० अबकेशिन्] १. फन न देनेवाला। २ लघ या अवगड--सच्चा पु० [ स० अवगष्ट ] चेहरे या गालों पर होनेवाली अल्प वान्तावाला [को० । | फुडिया या फू सी । मुहांसो को०] । || अबकेगी-संज्ञा पु० फनहीन वृक्ष (को०] । अवण-वि० [२०]१ स्वजनो से अलग रहनेवाला । एकातवासी [को०] || अबकोकिल-वि० [सं०] कोयन की आवाज में कपित (को०)। अवगणन-सज्ञा पु० मि०] [वि० अवगणित] १ निदा । तिरस्कार । अक्व न-भज्ञा पुं० [=० अवेक्षण] देव ना अपमान । २ नीचा देखना। परामव । पराजय । हार । प्रवक्तव्य-वि० [२०] १ न कहने योग्य । २ नि पिद्ध । ३ अश्लीन् । ३ गिनती । ४ मिथ्या । झूठ । अवगणना--सज्ञा स्त्री० [न०] २० 'अत्रगणन' । | प्रवक्त्र-दि० [न] जो खुला न हो । विना मुह का—जैसे, बरतन अवगणित--वि० [सं०] १ निंदित। तिरस्कृत। अपमानित । २. या फोडा [को०] । | नीचा देन्बा हुआ । पराजित । ३ गिना हुआ । । अवक्र द-वि० [म० अबक्रन्द] दे० 'अवरुदन' । अवगत--वि० म०] १ विदित 1 ज्ञात ! जाना हुआ। उ०--."वह अवक्र दन--सज्ञा पुं० [न० अत्रकन्दन] ऊंचे स्वर में रोना [को०] । मुझे मनी माँनि अवगत है" ।चद्र०, पृ० २१५ । अवक्रम--पुझा पु० [सं०] १ उतराव | नीचे की अोर उतरना । क्रि० प्र०----होना= मालूम होना । जान पडना ।। अवक्रमग--संवा मुं० [२] नीचे की तरफ उतरना । २ वौद्ध अौर ३ नीचे गया हुआ । गिरा हुआ। ३ वादा किया हुग्रा [को०] । जैन धर्म के मतानुसार गर्न में ग्राना (०) । अवगतना--क्रि० स० [म० अवगत + हि० ना (प्रत्य॰)] [१० रूप, अवक्रय-झिा ० [सं०] १. बदली । २ मूल्य । दाम । ३. भाड़ा। अवगताना] सोचना । नमझना । विवारना । उ०—माम |" किया } ४ कर।। मास नहिं करि सकै छठ मास अलबत्ति |--- या ढोग्न न | अक्राति सहा बी० [ मं० प्रबक्रान्नि 1 १. अधोगमन । उतार। कीजिये कवीर अवगति ----कवीर (शब्द॰) । निरव । २ झुकाव । अवगति-मज्ञा स्त्री॰ [म ०] १ बुद्रि । धारणा । समझा २ कुगनि । ग्रेवकीदक'- वि० न०] माँगकर लिया हुआ ! मैंगनी लिया हुआ । नीच गति । ३ निश्चयात्मक ज्ञान । | विपि-प्रवक्रीतक बम्नु न लौटानेवाले के लिये याचितक के । अवगय–वि० [स०] प्रातस्नात । तड़के नहाया हुअा (को॰] । | समान ही दडवियान था। अवगनना --कि० अ० [न० अवगणन] १ निंदा करना । तिर- अवकोतक’---सज्ञा पु० किराए या भाड़े पर लिया हुआ मान्ने ! स्कार करना । २ तुच्छ समझना । कम या घटिया समझना। शैव-शि--मज्ञा पुं० [न०] १ कर्कश स्वर। असह्य वही वो नी । २ ३ कम मूल्य यो महत्व प्रकिना या जगाना । | कोना । मानी । ३. निदा । अवगम--सज्ञा पुं० [म०] दे॰ अवगमन' को०] । अवगमन-सज्ञा पु० [८०] देख सुनकर किसी बात का अभिप्राय अवविन्न--वि० वि०] आई । गला । तर | मांगा हुा । जान लेना 1 जानना ममझना । २ दे० 'अवगति' । अवक्लेद-सुज्ञ: उ० [म०] जनस्राव (को०] । अवगरG)---वि० [सं० अवग्रह-ज्ञान] [वि० सी० अघगरी] भान या अवक्ष-ज्ञा पु० [२०] क्षय | नाश । हानि [को॰] ।। समझत्रुझवा वा । अवक्षिप्त--वि० [१०]१ गिग हुग्रा । ३ जिसकी निंदा की गई हो। अवगलित----वि० [१०] नीचे गिरा हुआ (को॰] । जिमपर नाछन नगाया गया हो । अवगहना----क्रि० न० [म० अवगाहन] थाना । थाह लेना। ग्रेवहुत--वि० [5] जिनपर ठीक पड गई हो । अवगाढ-- -वि० [म० अबगाढ] १ निविड । छिपा हुआ । २ प्रविष्ट । अवक्षेप--मज्ञा पु० [म०] १ आत्ति । २, अारोप (को०] 1 . बसा हुअा । निमग्न् । ३ नीचा | गहरा को०] } ४ जमता या अवक्षेपग--नज्ञा पुं० [२०] [वि० अवक्षिप्त) १ गिराना ! अष्ठ.पात गाढा होता हुआ- जैन, खून [को०] ।। | करना। नीचे फेंकना । अवगाद---मज्ञा पुं० [सं०] नाव से पानी उलीचने के लिये काठ का विशेय--वैशेषिक शास्त्र में वह अपक्षेपण, प्राकृचन अादि पाँच । एक छोटा पात्र [को॰] । के म या क्रिया में ने एक है। अवगाधना--क्रि० [हिं०] दे॰ 'अवगाहना' । ३ अाधुनिक विज्ञान के अनुसार प्रकाश, तेज या शब्द की गति में अवगीरना----क्रि० स० [ स० अय + ] म मझाना । बुझान । इ3 किमी पदार्य मे होकर जाने में वक्रता को होना । ३। जताना । उ०—कहा कहूत रे मधु मतवारे । म जान्यो यह निदा रन: अब्द०)।४ पराभूत | करना या पछाड़ना (को० ! श्याम मना है उह तो प्रौरे न्यारे। र पहा या मुख अवक्षेपणी--नश ० न०) वाग । जगाम (को०] । नागत कौन वाहि अवगरे । --- (गन्द॰) ।