पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४००

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! अति अलि लात--संज्ञा पुं० [सं०] १ अगार । ३ जनती हुई लकडी । लु ग्राठी। अलार्म घडी-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० एलार्म + १० घटी 1 जागरन घढी । | अलार्तचक्र-सुज्ञा पुं० [सं०] १ ज नती हुई नकडी या लुक को जल्दी जगानेवाली घडी । | जल्दी धुमाने में बना हुआ मडले । उ०—मनु फिर रहे अलाज- अलाल--वि० [सं० अलप्त] १ अलसी । सुम्त । काहिन । २ अक- चक्र से उम घन तम में ।-कामायनी, पृ० २०० | २ बनेठी । र्मण्य । निकम्मा । उ०- ऐसे अधम अलात को कीन्हो प्राप ३ गतिभेदानुसार एक प्रकार का नृत्य या नाच । । निहाल ।-रघराज (शब्द०) ।। अलान-संज्ञा पुं० [म० लान] [स्त्री॰ अलानी] १ हया वाधन अलाव --सज्ञा पुं० (म० अलात = अगारं ] अाग की ढेर । जाड़े के का खुदा । २ हाथी बांधने का मिक्क । उ०-नवग्यदु रघु- दिनों में पास, फूस, मूबी पत्तियो और कडो से जलाई हुई आग वीर मनु राजु अलान समान १-मानस, २१५१ । ३. बधन । जिमके चारों ओर बैठकर गाँव के नौग तापते हैं । कोडा। वेडी । ४. लता या वेल चढ़ाने के लिये गाडी हुई -लकड़ी ।। । अलाना-क्रि० अ० [स०अरबोलना] चिल्लाना । गा फाटेकर अलावज---सझा पुं० [सं० आलाप+बाद्य] १. एक प्रकार का पुराना बोलना । अललाना । बाजा जो चमडा मढकर बनाया जाता था। अलानाहक–अन्य [फा० नाहक] विना मत नब । वेमबब । | अलावनी--संज्ञा स्त्री० [स० अलापिनी] एक पुराना बाजा जो तार से | अनानिया--क्रि० वि० [अ० अलानियह.] उन्मुक्त रूप से । प्रकट रूप बनाया जाता था। | से । खुल्लम खुल्ला ! मदके मामने को॰] ।। अलावलसाही–वि० [हिं० अलावल= अलाउद्दीन+साही अनाद्दीन । । मलाप -भज्ञा पुं० [हिं०] १० ‘मालाप" । उ०—प्रादर -अलाप | शाह सवधी । ।। छडि अागे ते अनखि उठी, मेरे मुहे एक वोल आकरो सो । अलावा-~-क्रि० वि० [अ० अलावह, 1 मिवाय । अतिरिक्त । आइगो । गग ग्र०, पृ० ७३ । । अलाम--संज्ञा पुं० [सं०] एक रोग जिसमे जीभ के नीचे का 'भाग मूज || अपना--क्रि० अ० [सं० लायन] १ बोरा । बात चीत करना । कर पक जाता है और दाढ तन जाती है । २ मुर खींचना ! तान लगाना । उ०-अधर अनूर मुरलि अलास्य–वि० [भ] नृत्य न करनेवाला । मुस्त (को०] । मुर मूरत गौरी राग अनापि वजावत ।--सूर०, १०११३६८ ।। अलाहरी–वि० जी० [हिं०] दे० 'अलहदा' । उ०-कवि ठाकुर देखौ ३, गाना । विचार हिये, कुछ ऐसी अलाहदी राह सी है ।-ठाकुर०,१०१०॥ श्रतापी-दि० [सं० लापिन] बौलनेवाला । शब्द निकालनेवाला। अलिग'--वि० [स० अलिङ्ग] १ लिंगरहित । बिना चिह्न का । उ०-नृत्यत क नापी भिल्ली विक हैं अलापो बिरहीशन बिलामी जिसका कोई लक्षण न हो । २ जिसका ठीक ठीक लक्षण है मिलाप रसरात में --भिखारी० ग्र०, भा॰ २, पृ॰ २८ । निर्धारित न हो सके । जिसकी कोई पहचान बनाई न जा अलावू-सच्चा सौ० [सं०] १ लौकी । कद्द, । २. तुवा ।। सके । ३. बुरे लक्षण या चिह्नवाला [को॰] । अताभ- संज्ञा पुं० [अ०] लाभ का अभाव | नुकसान । उ०—दुख सुख, अलग--सधा पुं० १. व्याकरण में वह शब्द जो दोनो लिगों में व्यव लाम अनी म ममृझि तुम, कतहि मरत हौ रोइ ।--सूर०, हृत हो, जैसे हम, तुम, मैं, वह, मित्र । २ वेदात ! ईश्वर । १२६२। ब्रह्म । ३ चिह्न या लक्षण का अभाव [को॰] । , अलाम -वि० [अ० अल्लामह, चतुर] जिसकी बात का कोई अलिगन--संज्ञा पुं० [स० अालङ्गिन] ६० ‘अलि गन' । उ०—कठ ठिकाना न हो। बात बनानेवाला । मिथ्यावादी । लगाइ लेत पुनि ताहीं । देत अलिंगन रीझन' जाही |-- अलामत--सज्ञा पु० [अ०] १ लक्षण । निशान । चिह्न । उ०- सूर०, १०1९१६४ । वहृत रोने रुसवा कर दिखाया । न चाहत की छुपी हमसे अलि गी'-सज्ञा पुं० [अलिङ्गिन्] लिग या परिचायक चिल्लो में रहित अलामत ।--ौर०, भा० १, पृ० ११६ । ३. पहचान । साधु [को०] । अलामत मला मत- सच्चा सौ० [अ०मलामत] डाँट हपृट। 'मत्संन । अलि गो-वि० विना लिग या पहचान का । क्रि० प्र०—करना । अलिजर-सज्ञा पुं॰ [स० अलिञ्जर] पानी रखने के लिये मिट्टी का अलायक- संज्ञा पुं० [सं० अ=नहीं +अ० लायक ] नालायक । । घरतन । झझर । घडी । अयोग्य । उ०—(क) अगुन अलायकु आलसी जन अघन अनेरो ।- अलिंद-सज्ञा पुं० [से अलिन्द] १. मकान के बाहरी द्वार के स्वागे तुमसी (पब्दि॰) । (ख) सुर स्वारथी अतीस अलायक निठुर का चबूतरा या छज्जा । २. एक पुराना जनपद [को०]। या चित नाही ।—तुलसी ई० पृ० ५२२ । " ' , अलि दq--संज्ञा पुं० [ से अलीन्च ] रा । उ-कौन जाने कहाँ अलार'सी पुं० [सं०] कपट ! किवाई। । ' भयो सुदर सवल स्याम दूटे गुन घनुप नुनीर तीर झरिगो । मेलार ---[सं० अलात] अनाव । अग का ढेर । शैव । भट्ठी । "'नीलकैन मुद्रित निहारि विद्यमान भानु सिंधु मकरदहि उ०—ान अनि परी कान वृपैमानु नंदिनी के तो वर प्रश्न अलिद पान करिगो (शब्द॰) । पपो विरह अलार है ।-रंघुनाथ० (शब्द॰) । अलिपक--संज्ञा पुं० [सं० अलिम्पक] १. मेढक । २. कोकिल । ३, अलार्म-सा पुं० [अ० एलार्म ] खतरे की सूचना । खतरे के भौंरा । ४, मधुमक्खी । ५, महुवे का पेड (फो०) । बिगुल कि । अलि -संज्ञा पुं॰ [ ][डी० अलिनी] १. भौं । अमर । ३०-३ मुहा०—-अलार्म जना = खतरे की घंटी या बिगुल बजना । अलि चन, मोद रस लुपद कहि कत के काज सुर