पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३९९

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अलस अागलागि नामा हसत अलस’--मज्ञा पुं० [म०] १ पाँव का एक रोग जिसमे पानी से भीगे अलसेट--संक्षापुं० [ मं० अलस+हि० एट ( प्रत्य० )] [ वि० 'रहने या गदे कीचड़ में पड़े रहने के कारण उँगलियों के बीच अलसेटियो ] १. ढिलाई। व्यर्थ की देर। २ टालमटून । का चमडा सडकर सफेद हो जाता हैं और उसमे खाज और । । भुलावा । चकमा । उ०—-महरि गोद लैवे लगी करि बातन पीड़ा होती है । खरवात । कदरी । २ एक जहरीला छोटी अलसेट |--व्यास (शब्द॰) । ३. वाघा । अडचन । जतु [को०] । ३ एक तरह का पौधा ोि०] । क्रि० प्र०—करना ।—लगाना । अलसई-मज्ञा स्त्री॰ [ स० आलस्य ] अनसता । उ०---कुभकरन अलसेटिया -वि० [ हि० अलसेट +4 इया (प्रत्य॰)] १ ढिलाई को रन हुयो गह्मो अल सई ग्राइ । सिर चढि थति नामा हसत करनेवाला । व्यर्थ की देर करनेवाला। २ ,डचन डालने- जुन रोक्यो हरिराइ ।-भिखारी० ग्र ०, भा० १, पृ० ७५ । वाना । बाधा उपस्थित करनेवाल।। टान्न मटूल करनेवाला । अलसक--संज्ञा पु० [सं०] अजीर्ण रोग का एक भेद । अलसाँहा -वि० [ म० अलस+हि० औहां (प्रत्य॰) ] [ श्री० अलसा--मज्ञा स्त्री॰ [भ] हसपदी लता । लज्जालू । लाल फूल की अलमही ] अनित्ययुक्त। क्लति । शियल । उ०—सही | लज्जावती ।। रंगीले रति जगे, जगी पगी सुख चैन । अन सोहैं सौंहे किएँ, अलसाई---सज्ञा स्त्री० [हिं० अलस ] अलमता । मुस्ती । उ०— कहैं हंसौंहें नैन ।—बिहारी २०, दो० ५११ ।। लटपटी पाग, अलक जो विथुरी, वात कहत आवत अलमाई । अलह-सज्ञा पुं० [अ० अल्लाह अल्लाह । ईश्वर खुदा । उ०-- ---मूर०, १०।२६४० । । मुलतान जलाल मिकदर जाया । मुलतान । नहिवदीन अल अलसान -सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'अलसानि' । । | उपाया । पृ० १०, ६६।१४० ।' क्र० अ [म० अलस] अालय में पड़ना । वलात होना । अलह -वि० [म० अ+लम् ] व्यर्थ । घृया । अनम्य । उ०-गाजे शिथिलता अनुभव करना 1 उ०—(क) वन मोहन दोऊ अल- जलहर गयण में जाय अनह ने जोह !---बाँकीदाम ग्र०, साने -सूर०, १०॥२३० । (ख) कबहु नैन अलमति जानि के, भा० १, पृ० ३० । जल ले पुनि पुनि धोवति ।--मूर०, १०।२४६८।। अलसानिए—सुज्ञा स्त्री० [म० आलस्य आलम । मुस्ती । उ०— _ अलहदगी--सज्ञा स्त्री० । अ० अलाहदह, +फा० गी (प्रत्य॰) ] अलग होने का भाव । अनगाव । विलगाय ।। (क) अखिन में अलसानि, चितौन मे मजु विलासन की। अलहदा-वि० [अ० अलाहद] जुदा । अलग । पृथक । से रसोई 1--मतिराम (शब्द॰) । उ०—-(ख) चिता जू भ । अलहदी–ज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अहो' । उ०—'कर्तव्यशून्य स्वभाव उनीदता विहदन्नता अलसानि । लह्यो अभागिनि हाँ अली, तह गई सु बानि 1-भिखारी० ग्र०, भा॰ २, पृ० १४ । अलहदीं बन गया' 1 प्रेमघन॰, भा० २, पृ॰ ४१ । अलसिपु)---वि० [हिं०] दे० 'आलस्य' । उ०---वढे अलसि जिय , अलहन संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अलभन्] अभाग्य के अलहन-सज्ञा स्त्री॰ [म० अलभन] अभाग्य का उदय । विपति । | माँहि वैर में कहा जु पात्रो --हम्मीर रा०, पृ० ५६ 1 उ०—एकहि रितु सौं अत दुहुनि की अलहन प्राई ।-रत्नाकर अलसी- सज्ञा स्त्री॰ [म० अतसी] एक पौधा और उमका फल या मा० २, पृ॰ ४६ ।। अलहना –वि० [सं० अ +लभन] न पानेवा'ता। उ०--जे | वीज 1 तीसी । विशेष--यह पौधा प्राय दो ढाई फुट ऊंचा होता है । इसमे गुणमता अलहदा गौरव 'नई भूजन ।--कीनि०, पृ० ३४ । डालियाँ बहुत कम होती हैं, केवल दो या तीन लवी, कोमल अलहनियाँ--सज्ञा पुं० [हिं० अलहन] जो कोई काम के कर सकता और सीधी टहनियाँ छोटी छोटी पत्तियों से गुठी हुई निकलती। हो। अकर्मण्य । अहदी। हैं । इसमें नीले और वहूत सुदर फून निकलते हैं जिनके झड़ने | मु०-अपने अलहनियाँ आन के गडा पूरे = अपना काम न नै मान- कर दूसरे का काम करनेवाला । पर छोटी चूडियां बँधती हैं। इन्ही चूडियो में बीज रहते हैं। | अलहा–वि० [म० अलभ्य] अलभ्य ) जो प्राप्त न हो। उ०—-अगही जिनमें तेल निकलता है । यह तेन प्राय जलाने और रगसाजी | गहणा, अकहा कहणा, अलह लहणा तहँ भिनि रहणा --- तथा नीथों के छावे की स्याही बनाने के काम में आता है। । द्वाद दादू॰, पृ॰ ५१६। बहन से स्थानों पर माम,मजी अादि में भी इसका प्रयोग होतो अलहिया--संज्ञा स्त्री० [हिं० प्रल्हा] एक रागिनी जिममे मवे कमल है । छापने की म्याही भी इसकी मिलावट से बनती है। इसको स्वर लगते हैं । हिडोन राग की स्त्री प्रौः दी कि को पुत्रवधू । पकाकर गाढ़ा करके एक प्रकार का वारनिश भी बनता है । इसका व्यवहार करुण रेम प्रकट करने में अधिक होता है । तेल निकालने के बाद अल मी की जो सीठी वचती हैं उसे खरी, अहेरी-मज्ञा पुं० [अ०] एक जानि का अरबी ऊँ: जिस के एक है। खली कहते हैं। यह खुली गाय को बहुत प्रिय हैं । अलसीय कबड होता है और जो चलने में बहुत तेज होना है। नसों की खन्नी को पीसकर इसकी पुलटिम बांधने में सूजन झलाई१–बि०[सं० अलम][वि० सी० अलाइन] मानसी । काहिला दैठ जाती है, कच्चा फोडा मीत्र पककर बह जाता हैं तया अाईर–वि० [हिं०] अलाउद्दीन मनी । प्रनाउद्दीन का, जसे उसकी पीडा शान हो जाती है । अलाई दरवाजा, अलाई मोहर (शब्द॰) । अलसी’ –वि० [हिं०] दै० अन मी' । उ०—राम मुभाव मुने अलाई-संज्ञा पुं० [देश अलन] धोई की एक जाति ।। तुलनी हुलमे अन सी हम मे गनगाजे ।—तुलसी ग्र०, पृ० अागलाग–सच्ची पु० [हिं० नगि = नगाव नृत्य या नाचने का १६८ । एक ढग !