पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३९८

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| असम अलस - - - अलवम-सज्ञा पुं० [अ', एलबम] तस्वीरें रखने को किताव । अलमारी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ पुर्त ० अलमारियो ] वह वहा सेटूक जिममै अलवल-वि० [ अनु० ] अटपट । जल्दी जल्दी । उ०—अपने चीजें रखने के लिये रवाने या दर बने रहते हैं और बद करने अपराधन कवहू वैठि विचारै हुव मिलन मनोरय प्रल दल वैन के लिये पल्ले होते हैं। कभी कभी दीवार खोदकर और नीचे उचारे ।-भारतेंदु ग्र०, मा० २, पृ० २६३ । | ऊपर तख्ते जोडकर भी अलमारी वना दी जाती है । बडी अलवीतलवी---[अ०] अरबी, फोरमी प्रादि विदेशी भाषाएँ अथवा भंडरिया । । बहुत कठिन उर्दू, जैसे--माप अपनी अलवी तनत्र छोड़कर अलमास-सज्ञा पुं० [फा०] ही ।। सीधी तरह से हिंदी में बातें कीजिए। अलय–वि० [सं०] विना घरवाला । चलता फिरता है जिसका नाश अलबेला'-वि० [सं० अलभ्य +हि० ला (प्रत्य०) J[ो० अलबेली] न हो (को० । । | १ वाँका । बन ठन । छैन । २ अनोखा । अनूठा । सुदर, अलय-सज्ञा पु० १ नये न होने का भाव । अनित्यता । २ जन्म। जैसे-'तुमने तो यह बड़ी अलवेली चीज निकाली।' ३ अल्हड । उत्पत्ति (को०] । वैयरवाह । मनमी । जैसे--यह वडा अलबेला है। अलर्क--संज्ञा पुं० [म०] १. पागल कुत्ता । २ सफेद आक या मदार । अलबेला- सझा पुं० [ म० अलभ्य ] नारियल का बना हुआ हुक्का । । ३ एक प्राचीन राजा जिसने एक अधे ब्राह्मण के मांगने पर उ०---खायके पान विदोरत होठ हैं वैठि समा में पिएँ अपनी दोनों आँखें निकालकर दे दी थी। ४ शूकर जैसा एक अलबेला --वगगोपाल (शब्द॰) । अाठ पैरोबा ना जतु (को०] । ५ एक तरह का कीड़ा (को०] । अलबेलापन-मज्ञा पुं० [ हि० अलबेला+पन (प्रत्य॰)] १ प्रलल -क्रि० वि० [अ० लामाला ] इधर उधर । उ०---- वाँकापन । सजधज । छैलापन । २. अनोखापन । अनूठापन ।। सेभ नत धवलमर सहुलि से मलि । अालूदा ठाकुर अलन । नु ददता । ३ अन्ड न देपरवाही। - बेनि०, दू० ११३ ।। अनन्छ--वि० [स०] जिसकी प्राप्ति न हो नको हो । जी हस्तगत न प्रललटप्पू-वि० [देश॰] अटक नपच्चू । वेठिकाने का । अडबड । हुए ही [] । ग्रललबछेडा--- सज्ञा पुं० [हिं० अन्हुड+बडा ] १ घोडे का जवान यौ०-अलव्धनाय = बिना स (क्षक । स्वामीविहीन अलव्ध बच्चा। अल्हड अादमी । वह व्यक्ति जिसे कुछ अनुभव न हो। निद्र=जिमे नीद न अाई हो !.. . अललहिसात्र--क्रि० वि० [अ०] विना हिसाव किए हुए [को०] । अलव्धभूमिकत्व-मुज्ञा पु० [सं०] समाधि का न जुडना। समाधि क्रि० प्र०----देना ।। | को अप्राप्ति । | अललाना--क्रि० अ० [ सू० अर्= बोलना 1 तेज चिल्लाना । गला अलैव्यव्यायामाभूमि--संज्ञा स्त्री० [ मं० ] कौटिल्य के अनुसार ऐसी | भूमि जिसमें सैन्यसग्रह न हो सके ! फाडकर बोलना । अलभ -वि० [हिं०] दे० 'अनभ्य' ।। अलल्ल -सज्ञा पुं॰ [देश॰] दे० 'अलल्ल' । अनन्य-वि० [सं०] १ न मिलने योग्य । अप्राप्त । उ०—रम पिया अलल्ल५)-सञ्ज्ञा पुं॰ [दश०] दे० 'अलल्ल' । सखि नित्य जहाँ नया अव अनभ्य वहाँ विप हो गया ।-- अलल्ला--संज्ञा पुं॰ [देश॰] घोडा (हिं०) । सकिन, पृ० ३ ०७] २ जो कठिनता में मिल सके । दुर्लभ । अलवांत--वि० स्त्री० [हिं०1 दे० 'अलवती' ।। , उ०-मुनिहूँ मनोरथ को ग्रगम अलभ्य लाम मुगम सो राम अलवॉली-वि० स्त्री० [म० बालबती] (म्त्री) जिसके बच्चा या घु १ौगनि को करिगे ।—तुनमी ग्रं॰, पृ० ३३६ । ३ अमूल्ये प्रसूता । जच्चा । अनमोल । ३०- -जीवन मौभाग्य है जीवन अलभ्य है ।-नहर, अलवाई--वि० स्त्री० [ ऋ० बालवती, हि० अलवांती 1 (गाय या भैम) पृ० १७० | जिमको बच्चा जने एक दो महीने हुए हो । 'बाखरी अलम्-ग्रव्य० [सं०] यथेष्ट । पर्याप्त । पूर्ण । काफी । उ०---कृपा का उलटा । कटाक्ष अलम् है केवल, कोरदार या कोमल हो । झरना, अलवान--सझा पु० [अ०] पश्मीने की चादर । ऊनी चादर । पृ० ८१ । अलवाल-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] ३० ‘प्रा नवान' । अनम-संज्ञा पुं० [अ०] १ ज । दु ख । उ०—अलम हैं दर्द हसरत अलविदा-अव्य० [अ० अल+विदाय ] विदा होने ममय कहा है फना हैं ग्राहोजारी हैं |--शेर, पृ० ३७७ । झडा । जानेवाला शव्दै । अलमनक-ज्ञा पुं० [अ०] अँगरेजी ढग की जशी या पेशी । अलमनाक-वि० [अ०] १ दु:खपूर्ण । २ अतिदुखदाई [को॰] । अलावदा सझा ० रमजान के महीने का प्रतिमें शुक्रवार । अलमवरदार--संज्ञा पुं० [अ०1१ वह जो झडा उठाता है । २ वह अलम'५---संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'आलस्य'। उ०—-वारि जाम में जो प्रादोलन ग्रादि में आगे रहता है [को०] । । । निर्मि उनीदे, अलस बसहि जम्हात |--मूर०, १०:२६७६ ।। अलमर--संज्ञा पुं० [३०] एक प्रकार का पौधा । - अलस-वि०म०] मालस्ययुक्त । अालमी। मुम्न। मद । निरुद्योगी । अन्नमम्त -वि० [फा०] १ मतदाना। बदहोश। बेहोश । २ बेगम ।। ३०-~चदन मिटाए तन अनिही अनम मन नागरी की पीक | वे फिक्र । निर्दई । नक लगी है कपोनौ ।--मुर०, १०॥२५०७ }