पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३९७

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अलगगीर ३२५ मतरता । | २ बेलाग बचा हुआ । रक्षित, जैसे-घबराम्रो मत, तुम्हारा अलच्छि--सझा ली० [स० असश्मी] दरिद्रता । गरीवी । उ०--- । वच्चा अलग है । । - माया वह्म जीव जगदीसा । लछि अलच्छि रक मनीसा यौ॰—अलग अलग = दूर दूर । जुदा जुदा । । मानस, १।६।। अलगगीर-सज्ञा पुं० [अ० अरक फा० गीर]कवल या नमदा जिसे धोडे अलजसज्ञा पुं॰ [सं॰] एक प्रकार का पक्षों का०] - । की पीट पर रखकर ऊपर से जीन या चारजामा कसते हैं। डामा कसने हैं। अलज-वि० [हिं०] दे॰ 'अलज्ज' । । अलगनी--संज्ञा स्त्री॰ [स० अलग्न ] अाडी रस्सी या बस जो कपड़े अलजी-संवा स्त्री॰ [मं०] अखिो में होनेवाली एक प्रकार की लाल | लटकाने या फैलाने के लिये घर में वाँधा जाता है । डारा । . या, काली फूसी जो वहुत पीडा देती है । अलगरज-वि० [अ० अल् + गुरज] ६० ‘अलगरजी, । । अलज्ज–वि [सं०] निर्लज्ज । वेहया । उ०—म अलज्ज से क्यो अलगरजी –वि० ] अ०] बेगरज । बेपरवाह । । यहाँ अढे ।-साकेत, पृ० ३१३ । । अलगरजी (संज्ञा स्त्री० वेपरबाही । बेगरजी। उ०—ासिक अरु अलटविलट-सज्ञा पुं० [देश॰] उलट पुलट' । हेर फेर । गडवडी । महबूव विच आप तमासा कीन । ह्वाँ ह्व अलगरजी कर हाँ उ०—वात व्यौहार में कही कुछ, अलटविलट हो तो अपने ह्व होइ अधीन --स० सप्तक, पृ० १७६ । • नौगछिया की जगहँसाई होगी।-नई०, पृ० ३१ : - अलगदं--संज्ञा पु०स०]एक तरह का जल में रहनेवाला साँप [को०]। अलटा-संज्ञा पुं० [सं० अलक्तक, प्रा० अतत्तय, राज० असता] १. अलगद-संज्ञा पुं० [सं०] एक तरह की लवी जहरीली जोक [को०1। । वह लाल रग जो स्त्रियाँ पैरो मे लगाती हैं । २ खेमी की अलग -वि० [हिं० प्रलपाता अलग करनेवाला । अझ ३. २२ मूत्रं द्रिय, जैसे—अलते की चोटी । वाला ।। । अलत्ता -सज्ञा पु० [सं० प्रसक्तक, प्रा० पसराय] दे॰ 'मलता'। अलगाना... क्रि० स० [हिं० अलग+गना ,( प्रत्य० ) J१" अलग उ०—सुदरि, सोवन वर्ण तसे अहर अलत्ता रगि । केसरिलंकी करना । छाँटना । विनेगाना । पृथक् करना । जुदा करना । खीण कटि, कोमल नेत्र कुरंगि।-डोला०, दू० ८७ । २ दूर करना । पानी। | - अलप--वि० [हिं०] दे० 'अल्प'। उ०—ताते अनुमानौं अव जीवन अलगाना- क्रि० अ० अलग होना । पृथक् होना । उ०---बदरिका- -- प्रलप है ।-भिखारी० ग्र०, भा० १, पृ० १५८। सरम दोउ मिलि ग्राइ। तीरथ करत दो अलगाई । अलपाका-सा पुं० [स्पे० एलपका] १ ऊँट की तरह का एक जान- सूर०, ३।४ । | बर जो दक्षिण अमेरिका के पेरू नामक प्रात में होता है । । । । यौ9-अलगगुजारी = अलगाव। इसके बाल लंबे और ऊन की तरह मुलायम होते हैं । २ अलगार ---वि० [हिं०] दे० 'अलग' । उ०-..-चामडराय.. दिल्ली अलपका का ऊन । ३ एक पतला कपडा जो रेशम या सूत के , धरह गढ़ पति करि गढमार दिय । अलगार राज प्रविराज तव ।। साथ अलपाका जतु के ऊनी वालों को मिलाकर बनाया जाता पूरब दिसि तव गमन किय ।—पृ० रा०, २०३६ ।। है। यह कई रगो का बनता है, पर विशेषकर काला होता है । अलगाव-सज्ञा पु० [हिं० अलग +आव (प्रत्य॰)] पृथक्करण ।। अलफ--संज्ञा पुं० [अ० अलिफ १ घोडे का आगे के दोनो पाँवं उठा- अनग रहने का भाव । विलगाव । उ॰—होली, सावन, झनै | कर पिछी टाँगो के बल खडा होना । ' विशेष--अरवी वर्णमाला का पहला अक्षर अलिफ खडा होता है । वा झेलुए की गीत आदि का अलगाव यी ठहराव हुप्रा । होगा |--प्रेमघन॰, भा०, २, पृ॰ ३५१ । । इसी से यह शब्द इस अर्थ मे व्यवहृत होने लगा। अलगोजा----संज्ञा पुं० [अ० अलगोजह 1 एक प्रकार की बाँसुरी। २ हरा चारा। हरी घास (को०] । उ०---अलगोजे वज्जत छिति पर छज्जत सुनि-धुनि नज्जत अलफा–सज्ञा पुं० [अ०अलफा][स्त्री॰ अलफी] एक प्रकार का ढीला कोइ रहैं----पद्माकर ग्र, पृ० २८५ । । । । ढाला बिना बाँह का बहुत लवा कुन्ता जिसे अधिकतर मुसल- विशेष—इसका मुह कलम की तरह कटा होता है और जिसकी मान फकीर गले में डाले रहते हैं। उ०--अद्धी को टोपी दूसरी छोर पर स्वर निकालने के लिये सात समानांतर छेद होते- लगाए सुकेशधारी अलफी पहने लँगडाता हुआ चिल्लाने हैं । इसको मुह मे सीधा रखकर-उँगलियो को छेदी पर रखते लगी ।-श्यामा०, पृ० १५० । । और उठाते हुए जाते हैं । ।

  • अलफाज-सज्ञा पुं० [अ० लफ्ज़ का बहुव० अलफ़ाज] शब्दसमूह ।

। । ' 'उ'- विना अरवी के अलफाज मिनाए ।----प्रण०, ९५,६ । अलगौझा---सज्ञा पुं० [हिं० अलग + औझा (प्रत्य॰)] [ली अल- अलबत--प्रव्य० [हिं०] दे० 'शाबत्ता। उ०—क्थ्यो का आरोप गौझी] पृथक्करण, अलगाव । विलगावः। | या संभावना अलवत वे कभी कभी किया करते हैं अलग्ग---वि० [स० अलग्न] ममीप:नही दूर । उ०—ो नइ, चित्त - रस० क०, पृ० १४।। |; विमासियउ, मारू देस अलग्ग ।–डोला०, ८० ३०७ । अलबत्ता-अव्य० [अ० अलबत्तह 1 १ निस्संदेह । निसाय । अलघु--वि०म०][वि० सी०अलव्यो]१ जो लघु न हो । वडा। वजनी। बेशक, जैसे---'अव अलबत्ता यह काम होगा। २ हो । बहुत | २ गभीर । ३ जो छोटा न हो । लबी 1४ उग्र । भय कर [को०] । ।। ठीक । दुरुस्त । जैसे—अल वत्ता, बहादुरी इसका नाम है अलच्छ----वि० [हिं] दे॰ 'अ नष्ट ।' । उ०----- मग धन अलच्छ । -(शब्द०)। ३ लेकिन । परतु, जैसे-हम रोज नही आ सकते, 5। जात अधरहि जनु पर्छ ।---रत्नाकर, भा॰ १, पृ० ११२। अलबत्ता कहो तो कभी कभी भी जाया करें (शब्द॰) ।