पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३९६

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' अलग अलक्ष्यलिंग-सनी सी० [सं०] अज्ञात । (प्रत्य०) ] [वि०० अलकनंदा-संज्ञा स्त्री॰ [सं० अकलनन्दा] १ हिमानय (गढ़वाल) को अलक्ष्य–वि० [सं०] १ अदृश्य । जो न देख पडे । गायव । २ जिसका । । । । एक नदी जो गंगोत्री के आगे भागीरथी (गया) की धारा से लक्षण न कहा जा सके। ३ छलविहीन । छलरहित (को०] । ।। मिल जाती है । २ आठ से दस वर्ष उम्र तक की कन्या (को०] । ४ अचिह्नित कि०] । । अलकप्रभा-संज्ञा स्त्री० [सं०] अलकापुरी । कुत्रे पुरी। अलक्ष्यगति--वि० अदृश्य रूप से गमन करनेवाला [को०] । । अलकप्रिय---मज्ञा पुं० [१०] 'पीतमाल नाम का एक पैड [को०] । अलक्ष्यजन्मता--सज्ञा स्त्री॰ [स०] अज्ञात जन्म या उत्पत्ति (को०] । अलकलडे ता -वि० [न bpचक्र:= वाले+लाड= दुलार या अ० अलक्ष्यलग--वि०, [ स० अलक्ष्यलिग ] अपने को छिपाए रखने- अलक= प्यार+हि० लाड -+ऐता (प्रत्य०} } {वि०ी० अस वाला [को०] । । 'कलड ती] दुना। लाडला । उ०---सूर पथिक (मुनि मोहि अलख-वि ० [स० पलक्ष्य] १ जो दिखाई न पड़े। जो, नजर न 'रैनि दिन, व इयौ रहत दुई सोच'। मेरो अलकलीत मोहन ह्व अाए । अदृश्य 1 अप्रत्यक्ष । उ०—बुधि, अनुमान, प्रमान स्रति है करत संकोच ।-रूर०, १०३७६३ ।। किएँ नीढि ठहराय । सूछम कटि परब्रह्म की, अलख, लखी नहि अलकसहति--सज्ञा स्त्री० [सं०] घंघराले बालों की कतार [को॰] । जाय ।—बिहारी र ०, दो०, ६४६ । २ अगोचर । इद्रियातीत । अलकसलोरा-वि० [सं० : अलक=वाल या अ० अलक= प्यार + उ०-ने उपमा पटतर ले दीजे ते सब उनहि न लायक । जौ | हसलोना=अच्छा ] [स्त्री॰ अलकसलोरी]: नाडिला । दुनोरा । । १ अलख रही चाहत तौ वादि भए ब्रजनायक ई-पूर०, । । । । उ०---हम तुम्हें नितही प्रति प्रावति सुनहु राधिका गोरी। ।' २०४६४५। ३ ईश्वर का एक विशेपण । उ०--अलख रूप ऐसी अादर कवन कीन्ही मेरी अलकसो ?–सूर०, अबरन सो करती 1. वह सब स सर्व वहि' सो वरता 1-जायसी १० २८२८! ; " । (शब्द॰) । अलका- सञ्चा, स्त्री० [अ०] १' कुवेर की पू । यक्षो की पुरी । उ० । मुहा०—अलख जगाना=(१) पुकारकर परमात्मा का स्मरण हल्का छुदतः मोर अलका परत हैं 1-गग०, पृ० १०५ । २ करना या कराना । (२) परमात्माके नाम पर भिक्षा माँगना। ।। न्नाठि से दस वर्ष उम्र तक की इ इ [को॰] । । । । यौ----'अलखघारी । अलखनामी । अलखनिरजन । अलखपुरुष = अलकाउरि५ - संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'अन्नकावनि' । उ०--प्रधर ईपवर। अलखमय= निर्गुण , स त स प्रदाय मे ईश्वर मत्र । • । अधरःमो 'मीज तोरी । अलकाङरि मुरि भुरिगा मोरी:- अलख-सज्ञा पुं० ब्रह्म । ईश्वर को०] । !! ---जायसी अ० -(गुप्न), पृ० ३४२ । - अलखधारी---सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अलखनामी । अलंकाधिप-सज्ञा पुं० [म०] अलकापुरी के स्वामी । कुबेर [को०)। अलखनामी--मज्ञा पुं० [स० अलक्ष्यसनाम #हि० ई (प्रत्य०) ] एक अलंकापति--सज्ञा, पु० [सं०]- कुवे।। - ; प्रकार के साघु जो गोरख नाथ के अनुयायियो में से हैं। अलकाव-सच्चा पै० [अ० लव-का वहुव ०] १ प्रशस्ति । २ उपाधि विशेष-अलखिया । ये लोग सिर पर जटा रखते हैं, गेरुश्रावस्त्र । । , यान्विताब [को०)।...: । - । धारण करते हैं, भस्म लगाते हैं और कमर में ऊन की सेली । : अलकावती-मुझ स्त्री० [हिं०] दे० 'अलका' ।। बाँधते हैं जिसमें कभी कम घुधरू या घटी भी वाघ लेते हैं । अलकावलि- सज्ञा ब्री० [सं०] के शो का समूह । वानो की नटें । ये लोग भिक्षा के लिये प्राय दरियाई नारियल का खप्पर लेकर । . उ०-कोमल, नील कुटिल अलकावन्नि, रेखा राजति ,भाल - जोर जोर से 'अलख अल ख’ पुकारते हैं जिससे उनका अभिप्राय सूर०, -१०)२६५६ । - - अलक्ष्य परमात्मा का स्मरण करना वा कराना होता है। इन अल स -सज्ञा० पु० [म.अलकेश]-कुवेर, ३०-अकवकात अल लोगो में एक विशेषता यह है कि ये कहीं मिक्षाके लिये अधिक

केम अखडा [-पद्माकर ग्र०, पृ० १० ।।

। । अड़ते नहीं। । । । । ग्रुलक्तसजा, पुं० [सं०]' दे० 'अलक्तक' । ' । ' ' अलखितषु---वि० [हिं०] दे० 'अलक्षित' । उ० ---कवि अलखित अलक्तक-सज्ञा पुं० [म०] १ लाही जो पेडो में लगती है। लाख । गति वेषु बिरागी [----मानम् २ । ११० । चपडा । २ नाह का बना हुआ रग जिसे स्त्रियाँ पैर में लगाती अलखिया-सज्ञ'पु० [हिं०] ६० 'अलखनामी' । हैं। महावर । अलग -वि० [सं० अलग्न प्रा० अलग्न ] १. जुदा । पृथक् । न्यारा। ...यौ॰—अलक्तरप्त = महावर, अलक्तक राग = महावर की.लाती.. । मिन्न । अलहदा । उ०—सपति सकल जगत की स्वासा सम अलक्षण-संज्ञा पुं० [म०] १ विह्न यो सकेत का न होना । २ ठीक नहि हो । सो स्वासा तजि राम पद तुलसी अलग न खोइ । १. ठीक गुण धर्म का, अनिर्वाचन । ३ बुरा लक्षण । कुलक्षण । | ! ---स० सम्मक, पृ०।४। । | अशुभ चिह्नः ! क्रि० प्र० --- करना । रखना [---होना। अलक्षण ----बि० जो लक्षणही न हो।, बुरे लक्षणवाला [को॰] । मुहा०+-अलग करना= (१) जुदा करना । दूर करना । हटाना । अलक्षित---वि० [स] १ अप्रकट.1.अज्ञात 1,२ :अदृश्य ! गायब । ३ 'खसकाना । जैसे--इसे हमारे सामने से अलग करो। (२) । अचिह्नित । 1 । । ,, छुडान। बरखास्त करनी, जैसे--- मैंने उस नौकर को अनग अलक्ष्मी--सज्ञा स्त्री० [भ]. १ धनाभाव । बिर्धनता । दरिद्रती । २ ।। कर दिया। (३) चुनना । छाँटना । (४) बेच डालना , १ बुरः भाग्य । विपरीत भाग्यः । ३ अशुभ लक्षणीवानी स्त्री ४, जैसे----उगने उस घोडे को अलग कर दिया । (५) निपटाना। । भाग्य की देवी ! दरिद्रता देवी को । । । । समाप्त करना। जैसे---योड़ा सा बचा है। पीपीयर अलग करो। । - - -