पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३९५

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अलेकर मैलैकतरी। हैं। अलकार—मज्ञा पुं० [सं० अलार] [वि॰ अलंकृत] १ आभूषण । अलपट- संज्ञा पुं० स्त्रियो का कक्ष ।। शर्त पुर [को॰] । गहना। जेवर । २ अर्थ और शब्द की वह युक्ति जिससे काव्य अलव -सच्चा पु० [स० अलिध] दे० 'लव', । , ,, की शो मा हो । वर्णन करने की वह रीति उसमे प्रभवि और अलवुष---सञ्ज्ञा पुं० [स० अलम्बुषर] १ वमन । उल्टी । के । २ कौरवो. रोचकता आ जाय ।।। । 'का सहायक एक राक्षस जिसे भीम के पृन्न घटोत्कच ने मारा विशेप---इसके तीन भेद हैं—(क) शब्दोलकार, अर्थात् वह था । ३ प्रहस्त नाम का रावण का एक मत्री (को०]-1४. अलकार जिसमे शब्दो का सौंदर्य हो, जैसे अनुप्राम; (ख) । हथेली जिसकी ऊँगलियाँ फैलाई गई हो (को०) । . , अर्यालकार, जिमके अर्थ में चमत्कार हो, जैसे-उपमा अलबुषा--संज्ञा स्त्री॰ [सं ० अलम्बुषा] १ :मुडी । गोरखमुडी , २ स्वर्ग और रूपक और किसी किसी प्राचार्य के मत से (ग) , की एक अप्सरा । ३ दुमरे का प्रवेश रोकने के लिये खींची हुई उभयाल कार जिसमे शब्द और अर्थ दोनो का चमत्कार हो । रेखा । गडारी 1 म डने... - अादि मे भरत मुनि ने चार ही अलकार मानें हैं—उपमा, विशेष--इसका व्यवहार अधिकतर भोजन को छुवाछूत से बचाने के लिये होता है । दीपक, रूपक और यमक । उन्होने अलकारो के धर्म को, '४' लज्जावती। छुई मुई । लजालू पौधा । उ०—नव अलवुपा इन्ही के अतर्गत माना है । अलकार यथार्थ मे वर्णन | की ब्रीडा सी खुल जाती फिर जा मुदती।'कामायनी, करने की शैली है, वणन का विपय नही । पर पीछे । वण नीय विपयो को भी अलकार मान लेने से अलकारो की अलभ)---वि० [सं० अलभ्य]दे० 'अलभ्य' । उ6---सरग का देवताः संख्या और भी बढ़ गई । स्वभावोक्ति और उदात्त आदि अल- अलभ चितोड |--वी० रासो, पृ० ३४ । । । । । कार इसी प्रकार के हैं । । । । । अल-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ बिच्छू का डक २ हरतान।। ३६ विप। ३ वह हाव, भाव या क्रिया आदि जिससे स्त्रियो का सौंदर्य बढ़े। जहर । उ०--अति बल करि करि काली हान्यो । लपट गयो ४ सजावट । मडप[को॰] । ५ अलकार सवधी शास्त्र [को०)।, , सर्व अग अग प्रति, निविप - कियो सकल - अल झार्यो ।--- अलकारक संज्ञा पुं० [स० अलङ्कारक] भूपण । अलकार (को०]। | सूर (शब्द०)। । । .. अलकारमड़प---संज्ञा पुं० [स० अलङ्कारमण्डप सजावट का स्थान । अल-वि० [स०] समर्थ । शक्त । उ०—कारन अविरल प्रलं अपितु प्रसाधन कक्ष। ड्रेसिंग रूम । तुलसी अविद भुलान --- सप्तक, पृ० २६ । । अलकारशास्त्र--सज्ञा पुं० [सं० अलङ्कारशास्त्र] वह शास्त्र जिसमें अल-अलई-- संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] ऐलं नाम की कंटीली लुता जिसकी वाढ कारो का वर्णन और विवेचन हो । प्राय' खेतो में लगाई जाती है । ऊरू । ' अलकित)---वि० [हिं०] दे० 'अलकृत' । । । अलक'--संज्ञा पुं॰ [सं०] १. मस्तक के इधर उधेर लटकते हुए मरोड- अलकिय-वि० [सं० अलङ्कृत, प्रा० प्रलंकिय] दे॰ अलकृत। दार वाल । २ वाले । केश । लेट 1,३ छल्लेदार बान । उ०l- उ०---नील वरन बमुमति य । पहिर भ्रन' अलकिय ।-- मुकुट कु छन तिल के, अलक अलिव्रात इवें, भृकुटि द्विज प्रघर पृ० रा ०, २५५ ३५ । बर चारु 'नासा ।—तुलसी ग्र०, पृ० ४६१ । २ हरताने । ३ अलकृत--वि० [स० अलङ्कृत] १ विभूषित । गहना पहनामा हुश्च ।। सफेद अाके । श्वेत मदार । ४ शरीर पर लगाया इभा केसर। २ मजाया हुअा । सँवर हे प्रा । ३ काव्यालकारयुक्त । अग पर लिप्त केसर [को०)। ५ पागल कुत्ता 1 लकं [को॰] । अलकृति-सज्ञा स्त्री० [सं० अलड्कृति]१ अलकार। प्रभूषण ।२ मुजा- अलक -सज्ञा पुं० [म० अलर्वतक] महार्वर । अलिता। वट । ३ उपमा, रूपक अादि अलकार। 3०---प्राखेर अरंथ. अलक --संज्ञा पुं० [स० अलका] अलकापुरी। उ०- -झलक लाक अल कृत नाना । छदं प्रबंध अनेक विधान —मानस, पृ. , । बज्जत विषम-पृ० ० २ १०१ । । । । । । अलग --- सज्ञा पुं० [स ० अल=पूर्ण, बडा+अग= प्रदेश] [हिं० अलकत-सुज्ञा पुं० [अ०] १ अवहेलना । २ नष्ट करना. 1 रद्द करना। अलग] शोर । तरफ । दिशा । उ०—(क) उमर अमीर रहे। ३. काट देना कौ०] । जहँ ताई, सव ही वाँट अलगै पाई ।-जायसी (शब्द०)। (ख) अलकतरा--संज्ञा पुंp [सं०] पत्थर के कोयले को अंग परगलाकर लेन अायो कान्ह कोऊ मथुरा अलग ते । भिखारी . निकाला हु एक गाढf पदार्थ । उ०—-छत 'छतरी वर बद्, ग्र०, भा॰ २ पृ० १०७ ।। 'खभ गेरू रँग राखे । अलकतरे रंग कल ,किवार सित सोहते मुहा०—अलग पर प्राना या होना= घोड़ी का मस्ताना ।।। 'पेखि रत्नाकर १।१२।। अलुघनीय----वि० [स० अलङ्घनीय] १ जो लाँघने योग्य न हो जिसे विशेष—कोयले को विना पानी दिए भभके पर चढाकर जव गैस | फाँद न सके । जिसे पार न कर सके । अलघ्यः। १ अटल । निकाल लेते हैं, तब उसमे दो प्रकार के पदार्थ रह जाते हैं- अलध्य--वि० [स० अलडघ्य] १; जो वाँधने योग्य न हो । जिसे फ़द एक पानी की तरह 'पतला, दूसरा गाढा । यही गाढा कालो न सकें । २. जिसे टाल न सकें। जिसे मानना ही पड़े। जैसे पदार्थ अलकतरा है जो रेंगने के काम में आता है। यह राजा की प्रज्ञा प्राध्य होती है। '। । --, 15. कृमिनाशक है अंत "इसमे रँगी हुई लकडी धुन और दीमक से यौ॰—ग्रनं घ्य शासन । | बहुत दिनो तक बची रहती है। इससे कृमिनशि* 'मौषधियाँ अलजर संज्ञा पुं० [स० अलर मिट्टी का घडा । झझर [को०] । | जैसे----नेप्थलीन कारबोलिक एसिड, फिनाइल आदि--तैयार | - प्रलंपट-वि० [सं० अलम्पट]जो लपट या विषयी न हो। सचरित्र । होती हैं। इससे कई प्रकार के रंग भी बनते हैं।'