पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३९४

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- - - - - - ३३५ झेलकर्ता जानवर का बच्चा [को०) । मूर्ख या जड़ व्यक्ति (को०]। ३ नेत्र | चरखी। जिसपर केन काता जाता है। ४ छत । पाटन (को॰] । | वाला । कुश ।। । । । ५ सिहासन । तख्न [को०] । ६. लडाई । झगडा (को०) । अर्म--सज्ञा पुं० १ अाँख की एक रोग । टेंटर । ढंढर। २ पुराना अर्शवर्म--संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की बबासीर जिसमें गुदा के आधा उजडा नगर या गाँव । ३ गतव्य देश वा स्थान [को०] । किनारे ककडी के बीज के समान चिकनी और किंचित् पीडा- । अर्मनी-सच्ची पुं० [हिं०] ६०i ‘अरमा नी । । । | युक्त फुसियों होती हैं । | अर्य-सबा पुं० [सं०] [स्त्री० अर्या, अर्याणी, अय, १ स्वामी । अर्शस–वि० [सं०] बवासीर का रोगी (को॰] । । २ ईश्वर 1 ३ वैश्य । । । ।, अर्शसान-सज्ञा पुं० [सं०] १ आग । २ एक राक्षम [को॰] । अर्य-वि० १ श्रेष्ठ । उत्तम । २ दयालु । अनुकून (को०] । अर्शहर-संज्ञा पुं॰ [सं०] सूरन । ग्रोल । जमीकद ।। अर्यमा--संज्ञा पु० [सं० अर्यमन्] १ 'सूर्य । २ वारहे अदित्यो मे से। अर्शी-वि० [सं० अशन्] अर्श रोगी (को०] । एक । ३ पितर के गणो मे से एक जो सबसे श्रेष्ठ कहे जाते अशुधोर–वि० [सं०] अर्श नामक रोग का नाशक [को०] । हैं । ४, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र । ५ मदार । ६. अतरग मित्र अशंति-सी पुं० [सं०] १ मुरन । प्रोन । जमीकः । २ भिलावां । लंगोटिया यार (को] । ३ सज्जीखार। ४ तेजवल । ५ सफेद सरमो । अर्रव--संज्ञा पुं० [हिं०] अडवड वात । बेकार वति । फिजूल चर्चा । अघ्नी --सज्ञा स्त्री० [सं०] १ ताल मूली। २ भल्लातक [को०] । अ-सज्ञा मु[देश०] १ जगली पेड जो अजून वृक्ष से मिलता जुन्नता | होता है। इसकी लकडी बडी मजबूत होती है और छत पाटने अशहर--सज्ञा पुं० दे० 'अर्शीघ्न' (को०)। - । के काम आती है।' २. अरहर । । अशहित-सज्ञा पुं० [सं०] भल्लातकः (को०] । अलै--संज्ञा पुं० [अं॰] [स्त्री० फौंटेस] इगलैंड के सामतों और बड़े अहित..-वि० अर्शरोग को ठीक करनेवाला (को०] । - भूम्यधिकारियो को वशपरपरा के लिये दी जानेवाली एक अर्हत--संज्ञा पु० [भ० अर्हत] १ जैनियो के पूज्यदेव । जिन । प्रतिष्ठासूचक उपाधि इसका दर्जा माक्विस के नीचे और २ बुद्ध ।। वाइकौंट के ऊपर है । वि० दे० 'ड्य कं' । । ह-वि० [सं०] १ :पूज्य । २ योग्य । उपयुक्त । ३ मूल्य के योग्य अर्वट-संज्ञा पुं० [सं०] भस्म । राख [को०] ।' , मूल्यवान् [को०] । अर्वती-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ घोडी । २. दृती। कुटनी। ३ परी। विशेष—इस शब्द का प्रयोग, अधिकतर यौगिक शब्द बनाने में विद्याधरी (को॰] । - ।। होता है, जैसे--पूजा । मानाहं । दहाई । अर्वा-सज्ञा पुं० [सं० अर्वन्] १. घोडा । २ घोड़े का सवार । असवार । अहसशी अर्ह-सञ्चा मुं० १ ईश्वर। २ इद्र । विष्णु को०] । ४ मूल्य । दाम सवार । ३ चद्रमा के दस घोडो में से एक । ४ इद्र । ५ एक । को०] । ५ ,गति [को०] । ६ उपयुक्तता [को॰] । । प्रकार की दूरी । ६ जाना। दौड ना, ।, घूमना (को०] । अर्हण---सच्ची पुं० [सं०] ६० 'अर्हणा' । अवक--अव्य० [स० प्रवक्] ; पीछे । इधर । २ :निकट समीप । अर्हणा-सज्ञा स्त्री० [सं०] [वि० अर्हणीप्र] पूजा । समाने । । ३ नीचे । अर्हणाय--वि० [सं०] पूजनीय । समाननीय [को०] । यो०----अर्वाक् कालिक = आधुनिक । अवकस्रोता= जिसका अर्हत-वि० [१०] पूजा । वीर्यपात हुअा हो । उद्धरेता का उलटा । । । अर्हत-सबा पुं० जिनदेव । अर्वाग्विल--वि० [सं०] १ अधोमुख । नीचे की तरफ है या छिद्र अर्हता--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] योग्यता । उपयुक्तता (को०] । | बाला [को॰] । ' अर्हन--वि०) संज्ञा पुं॰ [सं०] दे० 'अहंत' । अर्वाग्वसु-वि० [सं०] धनदाता [को०] । अहित--वि० [सं०] यूजित । समानित । दृते । अर्वाग्वसु-संज्ञा पुं० १ वर्षा । २ वादल [को०] । अह्म-वि० [स०] १ पूज्य । मान्य । २ पूजनीय । माननीय । अादर अर्वाचीन----वि० [स०] १ पीछे का । आधुनिक । २ नवीन । नया। । णीय । ३ योग्य । उपयुक्त । अधिकारी [को०] । | ३ उलटा । विपरीत किो] । ४ नम्र । कृपालु [को०] । अल-अव्य० [सं० अलम्] दे० 'अलम्' । अर्वावसु--प्रज्ञा पुं॰ [सं०] देवताग्रो को होता [को०] । । अलकटकटा--संज्ञा स्त्री० [म० अलङ्कटटा] विद्युनुकेश नामक राक्षस ग्रेवु के---संज्ञा पुं० [स०] १ महाभारत में कथित दक्षिण की एक • की पत्नी । सुकेश की माता। जगली जाति जिसे सहदेव ने , विजित किया था। विशेष-वाल्मीकि रामायण के उत्तरका में इम क्षमवश का अर्श-वि० [सं०] १ -पापयुक्त । दुर्भाग्य लानेवाला । • १ • सृष्टि के आदिकाल मै उत्पन्न होना लिखा है । अर्श-सज्ञा पुं॰ [सं० मस्] १ बवासीर ।२ क्षति । हानि [को०] । अलकरण-सज्ञा पुं॰ [स०, अलङ्करण] १. सजावट । ३ शृगार ३. अर्श-सज्ञा पु०-[४०] १' - प्रकाश । उ०—प्रशं तक जाती थी अर्व | आभूपण [को॰] । • लेब तक भी आ सकती नही । रहम पाता है 'ब' अब मुझ को अलकर्ता--वि० [स० प्रति ] सजावट करनेवा . । अलकृत अपनी मार पर ।-शेर॰, भा॰ १. पृ० १७५। २. स्वर्ग । ३. । " करनेवाला (को०) ।।