पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३९३

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अद्धगिनी ३२४ अर्भक व । । ग्र० पृ० ४५८ । २ एक रोग जिसमे आधा अंग चेष्टाहीन अौर अर्न-सज्ञा पुं॰ [सं० प्रण] जले । पानी । ३०---यभ स्नेह रोमांच वैकाम हो जाता है । लकवा । फालिज । पक्षाघात । ३ शिव ।। स्वर भग कप बैबर्न । सवही के अनुभाव ये मात्विक औरो श्रद्धांगिनी---सा स्त्री० [स० अर्धाङ्गिनी] पत्नी । भार्या । अर्न । भिखारी गु०, भा० २, पृ० २७ । अगी संज्ञा पुं० [स० अर्धाङ्गिन् ] शिव । । अर्पण--संज्ञा पुं० [सं०] [वि० अपित] किसी वस्तु पर मे अपना अगो-वि० अद्धग रोगग्रस्त । स्वत्व हटाकर दूसरे का भ्यापित करना । देना । दान। २. अर्द्धशी---वि० [स० अर्धा शिन्] अर्द्धभाग का अधिकारी [को०] । नजर । मॅट । अर्द्ध--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] ऐसे २५ मोतियो का गुच्छा जिस की तीन यौ०-कृष्णार्पण। ब्रह्मार्पण । ३२ रत्ती हो । ३ स्थापन । रखना जैसे, पदार्प ण करना । ४ वापस करना । विशेष-बाराहमिहिर के समय एक अंध का दाम १३० कपण लौटाना कि) 1 ५ छेदन [को॰] । था । उस समय कषपण में दस मासे चाँदी होनी थी और वह अपणप्रतिभू-ससा पुं० [सं०] यह प्रतिभू ( जामिन ) जो किसी की सोलह मोटे (गोरखपुरी) पैसो के बरावर होता था । | इस प्रकार जमानत करे कि यदि यह ऋण का धन देगा, तो अली–सज्ञा स्त्री॰ [स०: अर्घालि] वह चौपाई जिसमे दो ही चरण | मैं हूँगा ।। हो । आधी चौपाई, जैसे--राम भजन बिनु सुनह खगेसा । भिट अपतपणु-मन्ना पुं० [हिं॰] दे॰ 'उर। तरप' । उ०-गाइन अति ने जीवन केर कलेमा । । 'माइत भरति अपं तर्प की तान । अर्प दर्प कदई जनु कीनी सर सधान ।---स० सप्तक, पृ० ३८३ । अर्द्धविभेदक--ज्ञा पुं० [सं०] १ अधकपारी । आवासोस । २. अर्पना --सच्चा पु० [सं० अर्पण] ६० अर्पण' । उ०—सिव सर अर्धाग (को०] । हमको फन दीन्ही । पुडुप, पान, नाना फन, मेवा, पटरस अर्पन अद्धशन--सज्ञा [स०] १ अाधा भोजन (को॰] । कीन्हीं ।—सूर०, १०/७६६ ।। अद्धासन--संज्ञा पुं॰ [सं०] १ आधा असिन । २ अतिशय स मान का अपना--क्र० स० [हिं०] ३० अर्ना ' । उ०—प नहि 'मोग स्थान । ३ वरावरी की जगह (को०] । लगावन पावै । करि करि पाक 73 प्रति हैं, तेही तप छ। अद्धिक?--सज्ञा पुं० [स०] १ अर्वधीमी । २. वैश्य स्त्री और ब्राह्मण श्रावै ।—सूर०, १०।२४९। पिता से उत्पन्न मतान जिसका सस्कार हुआ हो। अर्पित-वि० [म०] अर्पण कि हुआ । उ०-देवो को अर्पित भयु- अधिक-वि० अधिया पर काम करनेवाला [को०] ! मिथित सोम अधर से छुनो।--कामायनी, पृ० १२८। २ अद्धकरण--संज्ञा पुं॰ [सं०] १ आधा करना । २ मजूषा काढना। उकी [को०] । ३ चित्रित [को०] । , वैठाना । जब एक कडो दूसरी कहो पर (होकर) रखी जाती अपिस--संज्ञा पुं० [म ०] हृदय । हृदय का माम [को०)। ३ न म न करके लीक के लिये पर्वदर्व--सज्ञा पुं० [सं० प्रवुद+व्रव्य] धन । से पति । धनदौलत । सधिस्थल को अाधा अाधा छील देते है। वास्तुशास्त्र में यह उ०--अर्वदर्ज सव देई वहाई । के सव जाव न जाय पियाई । --जायसी (शब्द॰) । अर्धीकरण कहलाता है। अर्बुद-संज्ञा पुं० [सं०] १ गणित मे नवें स्थान की संख्या १ दस अधुक--वि० [सं०] उत्कर्षशीन । उन्नतिशी न [को॰] । कोदि। दस करोड । २ एक पर्वत जो राजपूताने की अद्ध दु—संज्ञा पुं० [स० अद्धन्दु] १ अर्धचन्द्र । २ अर्धचंद्राका मरुभूमि में है। अरावली । अवूि जो जैनो पवित्र स्थान है। । नखक्षत । दे० 'अर्द्धचंद्र' [को०] । ३ एक असुर का नाम । ४ कद् का पुत्र एक सर्प विशेष अद्ध दुमौलि संज्ञा पुं० [स० श्रद्धेन्दु मौलि] शिछ । एक नरक का नाम [को०] । ५ मेघ । वादल । ६ दो मास का अद्धदकस ० पुं० [सं०] आधे शरीर तक भिगोता हुआ पानी । २। गर्भ । एक रोग जिसमें शरीर में एक प्रकार की गाँठ पड जानी मृत घारीर को नहलाकर अाधा जल में और प्राधा बाहर है । बतौरी। रखने की क्रिया [को०] । विशेष—इसमें पीड़ा तो नही होती पर कभी कभी यह पक भी अर्होदय-सज्ञा पुं० [सं०] एक पर्व जो उस दिन होता है जिस दिन । माघ की अमावस्या रविवार को होती है तथा उसी दिन जाती है । इसके कई भेद हैं जिनमे से मुख्य रक्ताबु'द और मासाबूद हैं। श्रवण नक्षत्र और व्यती रात योग पडता है। इस दिन स्नान । अर्व दी--वि० [सं० अवु दिन्] अबु द नामक रोग से ग्रसित [को०] । - करने से सूर्यग्रहण में स्नान करने का फल होता है । अर्भ-सज्ञाः पुं० [सं०] १ बालक। २ शिशि ऋतु । ३ शिष्य । अर्ध गो-सझा पु० [हिं०] दे० 'अद्धगि'। छात्र ।४ सागपात । ५ नेवाला । ६ कुशा ।। अर्ध गो -सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अद्धगी' ! अर्भ.--वि० १ मलिन । धुधला ।'३ लघु । छोटा [को । अर्थंगी --संज्ञा स्त्री० [हिं०1 अधेि अगवाली स्त्री । अर्धांगिनी अर्भक-वि० पु० [सं०] १. छोटा । अल्प २ मूर्ख । ३. 'दुबला ! उ० • अर्घगी पूछति मोहन सौं, केमे हितू तुम्हारे ।—सूर ०, पत ना ४ तुल्य । समान [को०]। ।। |१०|४२३० । अर्भक---संज्ञा पुं॰ [स०]१ बालक । 'लड का। उ०—गर्मन्ह के अर्भक अर्ध--वि० [सं०] दे॰ 'मर्द' । दलन परसु मोर प्रति घोर 1-मानस, १२७२ । ३. किसी भी