पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३९२

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३३३ प्रग - - - - । विशेप--यह शब्द श्रद्धं और अर्व इन दोनो रूप में मस्कृत है। अर्द्ध प्रादेश--मजा पुं० [सं०] वास्तु शास्त्र में प्रनंधित मेनु के मध्य में इससे वनने पाने गवद भी दोनो रूप में प्राप्त होते हैं। उनमें आल वन विदु तक का अनर जहाँ शृखन बँधे रहते हैं। मेनु के । और कोई नर नहीं होता। मध्य में उसके उम म्यान त ६ का अंतर जहाँ वह प्र में या अर्द्ध क'--ज्ञा पुं० [न०] चहानक । घुटने तक का लहँगा या पेटी दीवार पर टिका रहता है । होट [को० ।। अद्ध भागिक----वि० [म०] श्राधे का हिस्सेदार (को०] । अद्ध के--वि० अाघा [को०] । अद्धभास्कर---अधा पुं० [म० अर्धभास्कर] दुपहरी । दुपहरिया । अद्ध कगं --सुज्ञा पुं० [सं०] अर्धग्राम ज्जिा (को०] । मध्याह्न [को॰] । । । अर्द्धकाल-सज्ञा पुं० [म०] शिव का एक नाम [को॰] । अर्द्धमागधी-मज्ञा स्त्री० [सं०] प्राकृत का एक भेद। पटना और प्रई कूट-पझा पुं० [सं०] शिव-(को०] । | मथुरा के बीच के देश की पुरानी मापा । अद्ध केतु-संज्ञा पुं० [सं०] रुद्र [को०] । अर्द्ध माणव-सज्ञा पु० [म०] १.कौटिल्प के अनुसार वह शीर्षकहर अद्धी -सज्ञा स्त्री॰ [म० अर्द्ध गङ्गा] कावे । जिसके बीच में मणि हो । २ दस मोतियो की माला । ३. अद्ध गुच्छ--संज्ञा पुं० [सं० अर्धगुब्छ] वह माती की माला जिसमे यारह लडियावाला एक हार (को०] । । चोवीम नडियाँ हो । वाराहमिहिर के अनुसार इममे वीस अट्ट माणवक-मज्ञा पुं० [सं०] ३० 'अर्द्ध माणव' । | लडि होनी चाहिए । अद्ध मात्रा-सच्चा स्त्री० [सं०] १ ग्राधी मात्रा । २ व्य जन । ३. अद्ध गोल--सज्ञा पुं० [सं०] ‘गो नाधं (को०] । सगीत शास्त्रानुसार चतुर्दश मात्रामो का एक भेद ।। । अद्ध चद्र सञ्चा पुं० [म० अर्द्ध चन्द्र] १ था. चांद । अष्टमी का अद्ध मामभूत--संज्ञा पुं० [सं०] वह मजदूर या नौकर जिमे अर्धनामिक ।। चद्र नीं। २. चर्दिक । मोरपंख पर की प्रख । ३ नक्षत। (१५ दिन पर) वेतन मिनता हो । ।। का एक भेद । ४ एक प्रकार का 'वाण जिसके अग्र भाग पर । | अर्द्धरथ-सज्ञा पुं० [सं० अर्धरथ] वह रथी जो दूसरे मे साये होकर अध द्राकार नोक होती है । ५ मनुनासिक का एक चिह्न । | लडे को०] ।। अर्द्ध विसर्गसंज्ञा पुं० [सं०] क, ख, प, फ, के पहले होनेवाले अाधे चद्रविदु-- ६ एक प्रकार का त्रिपुडे । ७ निकान बाहर। करने के लिये गले में हाथ लगाने की मुद्रा । गरदेनिया। विमर्ग का उच्चारण । विसर्ग का अाधा उच्चारण [को०]। | | अद्ध चद्री--संज्ञा स्त्री० [सं० अर्द्धचन्द्रा] तिधारा था कर्णस्फोट नाम । ।श्री० [स, 1 H ai को नाम अर्द्ध विसर्जनीय---संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अर्द्ध विमर्ग' [को०)। || का पौधा। अद्ध वीक्षण --संज्ञा पुं० [सं०]कनी से देखना । तिरछी चितवन । अद्धचद्रिका--संज्ञा स्त्री० [सं० प्रचद्विका कनफोडा नाम की नता। अद्ध नृत - अङ्खवत--संज्ञा पुं० [सं०] वृत का आधा भाग । वृत्त का वह भाग । अद्ध जल---सञ्ज्ञा पुं० [सं०] श्मशान में शव को स्नान करा के प्राधा । जो व्याम श्रौर परिधि के प्राधे भाग मे घिरा हो । २ पुरे वृत्त । जन्न में अरि अाधा वाहर डाल देने की क्रिया। | की परिधि का प्राधा भोग । । अर्द्ध ज्योतिका--सुज्ञा तशा [सं०] ताल का एक भेद । अर्द्धवृद्ध–सज्ञा पुं० [सं०] प्रौढ । मध्य प्रायु का पक्ति [को०] । | | अद्ध तिक्तममा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की नीम जो नेपाल में अद्ध वृद्धि-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] किराए या भूद का अधि। [ौ । || होती है। अर्द्ध वैनाशिक :संज्ञा पुं० [सं० [कौटिल्प के अनुसार प्रर्थनाश के पक्ष अर्द्धतूर--सा पुं० [सं०] एक प्रकार का वाद्य [को०] । पाती कणाद के अनुयायी जन [को०] । | अ६ वार--सया पु० [सं०] एक ओर घारवाला चाक् । सुश्रुत में अद्ध व्यास-ससा पुं० [सं०] केंद्र से परिधि तक का अतर । त्रिज्या । । वणत २० शल्योपकरणों में से एक [को०] । रेडियस (को०] । || अर्द्ध नटेश्वर--मज्ञा पुं॰ [सं०] शिव का एक रूप को०)।, अर्द्धशफर--सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की मनी (को०)। भ६ नयन-सज्ञा पुं० [सं०] देवताग्रो की तीसरी अखि जो ललाट में अद्ध शब्द-नि० [सं०] घीमी अावाजबाला [को॰] । | अद्ध सम-वि० [सं०] अाधे के बराबरवाला अाधा (को॰] । भ६ नाच-सच्चा ५० [सं०] १ जन प्रशास्त्रानुसार वह हहही जो अस समवृत-सपा पु॰ [सं॰] वह वृत्त जिगका पहला चरण तीसरे मर्कटवध और कीलक पाशो में बँधी होती है। एक प्रकार | चरण के बराबर हो; जैसे, दोहा और सोरठी । । का वाण । अद्ध सीरी---संज्ञा पुं० [सं० अर्घसीरिन्] अपने पारिश्रमिक के बदले में अद्ध नारी--सा पुं० [सं०] अर्धनारीश्वर । शिव [को०] ।। अाधी फसल लेनेवाला । अघिया पर खेत जोतनेवाला प्रर्दनारीश---सी पुं० [म०] शिव (को०] । कृपक (को०]। मदं नारीश्वर--सा पुं० [सं०] १ तत्र में शिव और पार्वती का अद्भु-संज्ञा पुं० [सं०] ६४ मोति य प माला अशा । । समिलित रूप । २. आयुर्वेद में ऐसजन जिसे अब मै लगाने लडियोवलि हार (को०)। से ज्वर उतर जाता है। अद्ध स्व-मज्ञा पुं० [सं०] ह्रस्व स्वर का अधि [को॰] । | अपरावैन----संज्ञा पुं० [मे०] नतः । । अदन--संज्ञा पुं० [२. अर्धाङ्ग] १ अाधा अT । ३०-- T=में नैव परपोल---सरा पु•३० ]एक पौधा जिसकी पत्तियों मोटी होती हैं। | प्रधाँग मैलारमजा, वान नेपाल माला बिराजै ।-नसी ।