पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३८७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अर्कपत्र अर्धसंस्थापन अर्कपत्रा--सच्चा स्त्री॰ [नं०] १ मुनंद! ३ एक लता जो विष की । नभम गुर्ग या पश्चिम दिशा में दिया श्री जिनमें शोषधि है । अर्कमून। कर वृर्य का उदय मा प्रम् ।। । । ६ ।।। 5 एक अर्कपर्ण-सज्ञा पुं० [मं०] १ मदार का वृक्ष । २ गदर का पत्ता । 7 (०) ' अर्कपुष्पी--सझा पुं० [सं०] सूर्यमुखी ।। अर्गना- मादी० [/०] १ "न । । । २. दृ। । ?, अर्कप्रिया--सज्ञा सी० [सं०] जवा । जप । अडहुन । गुडहर । बि 1 रुर । निटन। । १ ज ३२ जिनमें 74 चवी अर्कवधु-सज्ञा पुं० [सं०] १ गौतम बुद्धे । २ १६ ।। जाता है। 1ि:। } } "नीय [3ग हा दुर्गानन धादि अर्कभ-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह नत्र जो सूर्य द्वारा प्राथान हो । में पाट मारते हैं। मरम्प 1 । ६ अदभ्र । ७ वावर ! जिस नक्षत्र में सूर्य हो वह नक्षत्र । २ मिह रणि । ३ अवरोध | 13ट ३३नवाना । उत्तरा फाल्गुनी । अर्गनिका- रा] [२०] अन् । गा ! ८ । छ: प्रग]ि अर्कभक्ती-सज्ञा स्त्री० [सं०] हुरहूर का पौधा । इङ हुई ।। | अर्गनित--वि० [सं०] टिपिनी या अर्गन ने वैः । या तुम स०] । अर्कमूल---संज्ञा पु० [सं०] इमरमून नता । रुहिमूत्र । ग्रहिगधे । । अर्गली-मा पी० [१०] ० 'गं ' १०] । विशेष -इसकी जडे साँप के काटने में दी जाती है । विच्छ है । अर्गली...- ० [२०] भेnि ना 77 जानि जो मित्र, शाम डक मारने में भी उपयोगी होती है। यह विराई श्रौर ऊपर अादि । म होती है । लगाई जाती है । स्त्रियो के मासिक धर्म को खोलने के लिये भी । अर्गवनी–वि० [हिं०] Pe 'पगं उन' । ३० -- हिरे अगंपनी में यह दी जाती है । कालीमिर्च के साथ हैजा प्रतीसार अादि गेट के पर्दे पर ऊनी का नोटिई नियन, नान और ग मार के रोगो मे पिलाई जाती है। पत्त का रस कुछ मादा होता नदी या ।--जिरे, १० ६ । है । छिनका पेट की बीमारियों में दिया जाता है । रम की अर्गवानी -- fi० [फा०] 17 नमक फैन के 7 Tr । मृi fo) । माझा ३० से १०० चू द तक है ।। अर्घ सम्रा पुं० [मं०] १ पोटगोवाः म ने इT । नत्र 27 गेनार्य, अर्क वर्ष-स: पु० [सं०] सौर वर्ष की०]} द, २, नन और 17 ! भि न)- 7/ Tो पंण अर्क वल्लभ-संज्ञा पुं० [सं०]१ वधु जीव । दुपहरिया । २ गमको०] र न । २ भ६ देने का पदयं । ३ ३ दान । मागने अर्कवल्लभा--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ बधुजीव । दुहरियः । २ | भिर राना । ४ ५ धेने में 14 ज ज दिया जाय । ५ हाय ' कमल को॰] । धोने के ये जन देना । ६.नून्य । दाम । ३ वह मोती जो अर्कविवाह--संज्ञा पुं० [मं०]मदार के वक्ष में किया जानेपाना पिताह । एके धर दौर में २५ नो । ६ ट। ६ 34 में मानार्थ विशेष--तगरे विवाह के पूर्व मदार के माथे विवाह गरने का नीना। १० मधु । श६ । ११ । । । । विधान है। तीसरी पत्नी या तीमरा विवाह जुम नही माना क्रि० प्र०---देना। करना । गया है । अत मदार के साथ विवाह कर के उस विवाह को यौ०-अर्धपधि = 7 पैर :ने के fyfमन दिया जाने वा जन । चौ या मान लिया जाता है । अर्घटसंज्ञा पुं० [स] भन्म । राछ । अर्क वेध–सज्ञा पुं० [सं०] तालीशपत्र । अर्घपतन---नशा पुं० [भ] नाव के गिना । मान की *नत बाजार अर्कव्रत- सज्ञा स्त्री० [सं०] १ एक व्रत जो माघ शुक्ला सप्तमी को मे कम होना । पडता है । ३ राजा की प्रजा की वृद्धि के लिये उनमें कर अघपात्रता पु० [म०] नाब हा एक वर्नन जो ज्ञ7 के पार को लेना । जैसे सूर्य बारह महीने अपनी किरणो में जन खीचता होती हैं और जिनमें मुयं दि देवता . को अघ दिया जाना है और चार महीने में प्रजा ग वृद्धि के 1िये वरमात है, है या पितरों की तरंग किया जाता है । अर्घा । उसी प्रकार राजा का प्रज्ञा से कर लेकर उनकी वृद्धि में | अर्घवलावल----सी पुं० [सं०] १ चिन मूल्य । २ भस्ना या महंगा उसे लगाना । दाम ! कीमत का चढ़ाव उतार (फो०) । अर्घवण तर--कृपा पुं० [सं० मघवर्णान्तर] प्र मात्र में घटिया अर्कसुत--संज्ञा पुं० [सं०] यम । उ ०--अर्कमुत की घास माही कृष्न | रामह काम |--ब्रज निधि ०, १० १६० । माल मिलाकर अच्छे लन के दाम पर वेंचना । अर्क सोदर--सज्ञा पु० सूर्य का भाई । ऐरावत [को०)। विशेष- ऐसा करनेवाले को चद्रगुप्त के समय में ६०० पण अकश्मा ---सया पुं० [सं०] १ एक प्रकार का छोट नगीना 1 अरुणो । तक जुर्माना होता था। | पल । चुन्नी । २ सूर्यकात मणि ।। अर्धवर्धन-सा पुं० [सं०] कीमत घढाना । अकॉपल---संज्ञा पुं० [सं०] सूर्यकांत मणि । लाल पुराग । विशेप--कौटिल्य ने इसे अपराध माना है और इसे प्रेरै दाम अगेजा--सज्ञा पुं० [हिं०] ४० 'अरगजा' । चढ़ानेवाले व्यापारी पर २०० पण तक जुर्माना लिया है। अर्गल-सज्ञा पुं० [सं०] वह लकडी जिसे किवाड़ बर्द करके पीछे से अर्घवृद्धि–संज्ञा स्त्री० [सं०] माल की दर बढना। बाजार में किसी आyी लगा देते हैं जिससे किंवाटे बाहर से ने खुले । अरगल । माल की कीमत चढ़ना।

अगरी । व्यो । २ किवाड । ३ अवरोध । ४ क नोले । अर्घसंस्थेपन--संज्ञा पुं० [सं०] वस्तु नो वा मूल्य निश्चित करना ।

लहुर । ५, ३ रगबिग बादल जो सूर्योदय या सूर्यास्त के मूल्यनियत्रण (को॰) ।