पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३८३

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अरुझाना ३१४ अरिष्ट का नाम जिसे श्रीकृष्ण चद्र ने मारा था । वृषभासुर । १६ विवाह मे इसे वधू को दिदाने न यिधान है। मुश्रुत के अनिष्टसूचया उत्पात, जैसे भूकप अादि । १७ वनि का पुत्र, अनुगार नि गफी मृत्यु मागीप होतो ? उ में नारे Tो देख्न एक दैत्य ! १८ मढ़ा। तक। १९ सौरी । सूतिकागृह । नहीं मरता। ४. नत्र १ अनुगर जि{{। यौ ०-अरु घतीजानि, अधतीनाथ, और प्रतीपति जिन्ड पि । २० कौटिल्य के अनुसार 'एक प्रकार का अमन व्युह जिनमें रथ बीच में, हाथी कक्ष में शौर घोडे पृष्ठ भाग में रहते थे। | अरु घती दर्शन पयि = के गृहम *। गन । वि० अरिष्ट-वि० १ दृढ । अविनाशी । २ शुभ । ३. बुरा । अणुन । ६० 'न्याय' । अरिष्टक--संज्ञा पुं० [सं०] १ रीठा । निर्मनी । २ रीठे का वृक्ष । अरु पिका-ना त्री० [२०] एन अद्र रोग जिनमें पः और मैं अरिष्टगृह सज्ञा पुं॰ [सं०] सीरगृह (को०] 1 विकार या कृमि चैः प्रकोप में माद पर पग भु ? फोहै हो जाते हैं। अरिष्टनेमि--संज्ञा पुं० [१०] १, कश्यप प्रजापति का ए नाग । | अरु---सज्ञा पुं॰ [ 7 अगस् ] १ ३ । २ मदिर। ३. नदार २ हरिवश के अनुसार कश्यप का एक पुत्र जो विनता से उत्पन्न | वृक्ष । ४ मर्मस्थान । । घर। द ग 1 ६ नं । इग्रा था । ३ राजा सगर वे श्वशुर का नाम । ४ सो नहुवे ग्री किो०)। प्रजापति । ५ जैनियो के वाईसवें तीर्थंकर । ६ हरियश के अरु’ --रायो० [हिं०] १. । ३०-गगग ३ दिन अनुसार वृष्णि का एक प्रपौत्र जो चित्रों का पुत्र था । | मीना । र पुरतर दुः पित्र प्रदान! 1-मान, १।३० । अरिष्टमथन-सज्ञा पुं० [सं०] १ विष्णु। २ शिप [को०] । श्रुग्री पं० [१० मानु] एक प्रकारे ही वन 7 ज ११ । अरिष्टसूदन----सज्ञा पुं० [सं०] विष्णु का एक नाम । विशेष- यह वगन, मध्य नर 5गि रन में प्राय अरिष्टा-- संज्ञा स्त्री० [सं०] १ कश्यप ऋषि को मंत्री और दा जगन्नी दशा में पाया जाता है। तो उग्दैन । नगरचा प्रजापति की पुत्री जिमसे गधर्व उत्पन्न हुए थे । २ फुटगी । जाता है। इनमें चैन ये ना7 : 3 : 1गते हैं । इम ३ पट्टी [को०] । छान और पनियाँ पधि के रूप में ग्राम में प्रार्नी हैं हम अरिष्टिका-मज्ञा स्त्री० [सं०] १ रीठी । २ फुट हो । इनकी वफदी ने दोन पर न उन या मी प्रार अरिहत--सज्ञा पुं० [हि] दे० 'अर्हत' । उ०--के पूजे श्रीकत नू, र प्रन्प र नाजे वनाई जाती हैं। के पूजे अरिहत ।--वाकीदाम ग्र॰, भा॰ २, पृ० ६० ।। अई-17 फ्री० [हिं०] दे० 'अरव' । ४०-="f rमरी दई अरिहन--प्रज्ञा पुं० [म० अरिन] शत्रुघ्न । पटाई जेंत पटन जान द्राः।-०, १०1१२१३ । अरिहन-- मुज्ञा पुं० [सं० अर्हत] वीतराग । जिन । अरुकटि - ना ही[देन०]एक नर जो ग नटिग की राजधानी है। अरिहन--प्रज्ञा पुं० [सं० रन्धन] रेहन । अरहन । | फट । शारराट। अरिहावि० [सं० प्ररिहन्] शत्रुघ्न । शत्रु का नाश करनेवाला । अरुग्ण-वि० [सं०] नीरोग । रोगरहिन । रिहार--सूज्ञा पुं० लक्ष्मण के छोटे भाई शत्रुघ्न । उ०—(क) वो अचि से ना दी० [न०] १ रुचि का भाव । निन्छ । २। सर्व रघुवण कुटीर की धार में वरन वाजि सरत्यहि । बान | अग्निमा रोग जिनमें भोजन से इन्छा नहीं होती है की वायु उड़ाय क नयन लच्छे फौं अरिहा सगरयहि । ३ पृ। । नफरत । ४ तोप देनेवारी या का राम च ०, पृ० ३५ । (रत्र) जूझ गिरे जवहीं अरिहा रन । प्रभाव को०] । माजि गए तबही मट के गन -राम च०, पृ० १७५ ।। अरुचिकर-वि० [न०] जिनगे मम्च जाय । जो नि । अरी--अव्य० [म० प्रयि] संबोधनार्थक अव्यय जिन का प्रयोग स्त्रियो । जो भन्ना न लगे । के ही लिये होता है । उ०—अरी, खरी भटपट परी, बिनु प्राधे अरुचिर-वि॰ [ स ०] १ अन् रुचिर । जो पछा न लगे । २ मग हेरि । मग लगे मधुपनु लई भागनु गन्नी अँधेरि ।-बिहारी अरुचि कर [फो०] । र०, दो० ४५६ ।। अरुज्-वि० [म] रोग में मुक्त । न गि’e] । अरीझना-क्रि०अ० [हिं०] बझ जाना । रीझना । दे० 'अरुझना' ।। अरुज-वि० [२] नीरोग । रोग-इन । ग्वम् । अरीठा- ज्ञा पुं० [सं० अरिष्टक, प्रा० अरिठ्ठा] रीठः । । अरुज-म) पुं० १ अमनतान। २ केन । ३ निटूर । अरु तुद-वि० [म अरुन्तुद] १ मर्मस्थान को तोदनेबाना । ममं अरुझना--क्रि० प्र०[ में अन्य , प्रा. मोर । 1 १ उF IT ! स्पृ । उ०—अर तुद वाक्य कहतेहो अहो तुम ।-साकैत, | फेसन । उ०—(क) पान fर फिर पः। गो फोटू । उडि पृ० ६२।३ दुखदायी । ३ कठोर वात कहकर चित्त को न सकइ अझइ भइ वटू ।--जायसी (ब्द०)। २ मट- दुखानेवाले परुपमापी । बना। ठहरना । मई ना। ३०.---दुध न र? रवतहि यौ॰—अरु तुदवचन । त्रिलोकत तनु ने रहै रिनु देखें । करत न प्रान पयान मुनहु सपिअरुझ परी यहि लेखे -तुलसी ग्र०, पृ० ३५१ । ३ तहना अरु तुद-भज्ञा पुं० शत्रु । वैरी । भिड ना 1 सघर्षरत होन।।। अरु धती----मज्ञा स्नी० [सं० अरुन्धती]१. चणिज्य मुनि की मनी । २ अरुझाना५'--पि० म० [हिं० अरदाना पा ५ ० ०] 3 ना । दक्ष की एक चान्ग्रा जो धर्म से व्याहो गई थी । ३ एक बहुत पॅराशन । उ०- २२ :न ६ रन । अति विरह तनु छोटा तारा जो सप्तर्षि मडलस्थ वशिप्ट के पास उगता है।

  • ई ध्यानु ने घरन नैकु राहाए ।--सूर०,१०॥६७८ ।