पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३८२

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। अराल ३१३ अरिष्ट = - - - - - = = = = = = = Pr = । अलि-वि० [सं०] कुटिल 1 टेढा । उ०-भाल पर माग, लाल चॅदी अरित्र'--वि० [सं०] १ शत्रु में रपा करनेवाला । २ अगे बढाने- १ मुहाग, देव भृकुटी अलि अनुराग हुलस्यो परे ।---देव वाला [को०] । (शब्द॰) । यो०-अरित्रमाध= छिछला । यौ----परालकेशी == कुटिल केश या अलकवानी । घुघराले अरिदमन-वि० [१० अरि+इमन =नाश] शत्रु का नाश करने- बालोवाली है वाला। अलि--सज्ञा पुं० १ सर्ज रम । राल । २ मत हाथी । ३,टेढा यी अरिदमन-सज्ञा पु० शत्रुध्न । लक्ष्मण के छोटे भाई का नाम । | टूटा हाय (को०) । ४. एक समुद्र [को०] । | .. रिपुदमन । अाला--प्रज्ञा स्त्री० [सं०] १ अपवित्र नारी । मतीत्वहीन नारी २ अरिनिपात--संज्ञा पुं० [सं०] दुश्मन का हमला (को॰] । अवृष्टा मी० [को०] । अरिनुत---वि० [म०] शत्रु भी जिसकी प्रशसा करें [को॰] । अरावलq--सज्ञा पुं० [हिं] » ‘हवल' । अरिप्रकृति--संज्ञा स्त्री० [सं०] युद्ध में प्रवृत्त राजा के चारो ओर के। अरावली--संज्ञा पु० राजस्थान का एक पहाडे ।। शत्रों की स्थिति ।। अराष्ट्र-मज्ञा पुं० [सं०] राज्यसत्ता का नापा या अभाव [को०] । अरिभद्र–सशा 'पु० [म०] अति शक्तिशाली शत्र, [को०] । । अरिज-मज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का बवूल । सफेद बबूल । अरिमर्द----संज्ञा पुं॰ [सं०] काममदं नाम का पौधा [को०)। विशेप----यह पजाव, राजपूताना, मध्य और दक्षिण भारत तथा । अरिमर्दन"--वि० [म०] शत्रुग्रो का नाश करनेवाला । शत्रुसूदन । बरमा में पाया जाता है। इसका छिलका रेशेदार होता है और अरिमर्दन’---सज्ञा पु० १ केकयनरेश राजा भानुप्रताप का भाई जो इमे मछली पकड़ने का जाल बनाया जाता है। इसमें एक शापवश कुंभकर्ण हुया था । २. अक्रूर का भाई । प्रकार की गोद भी निकरती हैं जो पानी में घोल जाने पर | अरिमेद-सज्ञा पुं० [सं०] १ विट खदिर । २ एक बदबूदार कीडा । पीला रंग पैदा करती है। यह अमृतम्री गोद कह जाती है । गघिय ! ३ एक वृक्ष । इसे बबूल की गोद के साथ भी मिलाकर बेचते हैं। पेड़ की अरिभेदक-सज्ञा पुं० [म०] मन में उत्पन्न होने वाला एक प्रकार का छाल को पीसकर गरब लोग अकाल में बाजरे के झाटे के साथ। कीदो किो०] । खाने के लिये मिलाते हैं। इसमें एक प्रकार का नशा भी होता है और यह मद्य में भी मिनाई जाती है । इसीलिये अरिज को अरिघासला जी० [देश॰] एक प्रकार की छोटी विडियो जो "गर)व का कोवर भी कहते है। प्राय पानी के किनारे रहती हैं। इसे ताक या लेदी भी रद -सक्षा पुं० [अ० अरि + इन्द्र] शत्रु । उ०---तह मारि मारि कहते हैं, अरिद व रछी म गिराए गयन ते 1-पाकर ग्र०, पृ० २० | अरियाना--क्रि० स० [सं० अरे] अरे कहकर बुलाना। तिरस्कार अरिदम--वि० म० अरिन्दम] १. शत्रुनाशक । बैरी का दमन करना । उ०—लकली घरे तजे, वरत अनेक भरे, जनपद | करनेवाला । ३०-कर लिया निश्चित अरिदम ने निपात गहत लहत मत्र मत हैं । ऐसे बल तप परलोकन तें अरियाते अराति का ---कानन०, पृ० ११२ । २. विजयी । कोमनि अचल तते केवरी लगत है । --गुमान (शब्द०)। अरि-संज्ञा पुं० [म०] १ मात्र । वै।। चक्र । ३ काम, क्रोध, लोभ, अरिल्ल- सझा पु० [सं० अरिला ] सोलह माथी का एक छद मोह, मद और मात्सर्य । ४ छह की सख्या । ५ ज्योतिष में। जिसके अंत में दो लघु अथवा एक यगण होता है, परंतु इसमे लग्न से छठा स्थान । ६ विट् खदिर ! दुर्गध खैर। अरिभेद । जगण का निषेध है। भिखारीदास ने इसके अत मे भगण माना ७ स्वामी को०)। ६ रथ का कोई हिस्मा [को०] । ६ वायु । || कोई हिस्मा को०। ६ बाय - हैं । जैसे,ले हरिनाम मुकुद मुरारी। नारायण भगवत (को०)। १०. धार्मिक व्यक्ति [को॰] । खरा (शब्द०)। रिकपंक---सज्ञा पुं० [८] प्रश्नों का कर्पण या पराभव करने- अरिवन--संज्ञा पु० [देश॰] रस्सी का फदा जिसमें फंसाकर' घड; या | वाला कि०] । गगरा कुएँ मे ढलते हैं । उवका । उवक । छोर । फैंसरी ।। श्रीरकुले- सझा पुं० [स०] १ शत्रुसमूह । शत्रु को॰] । अरिष--संज्ञा पुं० [स०] १ लगातार बरसत । २ गुदा का एक अरिकेलि-मज्ञा स्त्री० [सं०] क्रीडा १२ वासनात्मक आनद[को०]। रोग [को०] । अरिकेशी--सज्ञा पुं० [सं० श्री +केश] केवी के शत्रु, कृष्ण। अरिष्ट--मज्ञा पुं॰ [ स० } १ क्लेश । पीडा । २ अापत्ति । रिक्थभाग--वि० सं०1 जिसे पिता के धन की 'मागे न मिल सके। विपत्ति । ३ दुर्भाग्य । अमगल । ४ अपशकुन । अशुभ लक्षण पिता का हिस्मा पाने के अयोग्य । अनश । ५ दृष्ट ग्रहो का योग जिसका फल ज्योतिप शास्त्र के अनुसार अरिघ्न---वि० [म०] गहता [को०] । । । अनिष्ट होता है । मरणकारी योग । ६. लहसुन । ७ नीम् । अरिचिता--सज्ञा स्त्री० [सं०अरिचिन्ता शत्र के विघटन या विनाश के निव । ८ लंका के पास एक पर्वत । है कौवा । काक । १० | लिए सोचना (को०] । कुक । गिद्ध । ११ ॐ का पेड़ । फेनिल । निर्म न । १२ वह रित्र'--मज्ञा पुं० [म०] १ वन्ना जिमसे नाव म्वेने हैं। डाँइ । २ अरक 'जो बहुत सी दवाओं को मीठे में मडाकर बनाया जाय । क्षेपण । निपात ऊ । ३ ज न की थाह लेने की डोरी । ४. एक प्रकार का मद्य जो धूप में पधियो का खमीर उठाकर लगुर। बनता है । १३. काठी । १४, एक ऋषि । १५, एक राक्षस =