पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३८१

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अंरा अरारोट अरा+-सज्ञा स्त्री० [स० प्रार] पहिए की गडारी और उसके मध्य विशेप--इम शब्द का व्यवहार प्राय पशु तो ही के लिये होता है। माग को मिलाने वाली पतली सलाई । तीली । अरात ---सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अति' [को॰] । अराअरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० अड़ना ] अडअडी । होड स्पर्धा। अराति--सा पुं० [स०] १ शत्रु । उ०—कर लिया निश्चित अरिदम उ०--प्यारी ते को पूतरी काजर हू ते कारी । मानौ है भंवर ने निपात अराति का ।-फानन०, पृ० ११२ । २ फलित उड़े बरावरी । चपे की डारि बैठे कुद अलि लागी है जेब ज्योतिप कुडली का छठा स्थान । ३ काम, क्रोध, लोभ, अरशिरी--हरिदास (शब्द॰) । मोह, मद और मामयं जो मनुष्य के अतरिक शत्रु हैं। ४ छह अराक'-- सज्ञा पु० [अ०] १ एक देश जो अरब मे है । एक । की सख्या । इराक । २ वहाँ का घोडा । उ०--हरतो हरीफ मान तरतौ अराद्धि--संज्ञा स्त्री॰ [स०] १ वैमनस्य । २ दुर्भाग्य । ३ दोप । समुद्ध युद्ध क्रुद्ध ज्वाल जरत अकनि सो अरतौ ।--भूपण पातक [को०)। (शब्द॰) । अराधन--संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अराधन' । अराक -संज्ञा पु० दे० 'अडाऊ' । अराधना(--क्रि०स० [म० अरावन]१ अाराधना करना । उपासना अराकन-सज्ञा पुं॰ [स० अरि= राक्षस +ग्राम, बरमी, कान = देश] करना। उ०—हम अलि गोकुलनाथ अध्यौ । मूर० वरमा देश के एक प्रात का नाम 1 यह बंगाल की खाड़ी के १०/३५३० । २ पूजा करना । अर्चना करना। ३. जपना । किनारे पर है। | ४ ध्यान करना। अराकी --वि० [हिं०] "० ‘इराकी' । अरावी--सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अाराधी'। अराग'-संज्ञा पुं० [सं०] गाभाव । राग का अभाव । रति का अरानापु–कि० म० [हिं०] दे० 'अडाना' । ३०--भौहें अा ने अभाव (को०] । | अरेरति है उर कोर कटान ग्रोर अरारे ।—देव (शब्द॰) । अराग-वि० वासनाविहीन । रागविहीन । रतिविहीन [को०] । अरावा-मज्ञा पुं० [अ०] १ गाडी । रथ । उ०--(क) चामिल पार अगी-वि॰ [ म० अरागिन् ] [ सी० अरागिनी ] रागरहित । भए मव प्रार्छ । तबै अडोन अरावे पाछे ।--‘नान (शब्द०) । वासनाविहीन [को०) ।। (ख) जिती अरावौ नार है सो मब लोन मग । उतरि पार अराचना--- क्रि० स० [म ० अर्चन] अर्चन करना। अदर देना। डेरा दए ठठि पठान मौ जगे ।--मुजान०, पृ० ५१ । २ वह उ०—तिय तजि नाज कहत रति जाचन । को नहि धर्म जो गाडो जिमपर तोप लादी जाय । चरख । उ०-लविदार पुरुप अराचन् ।-हम्मीर रा०, पृ० ४० ।। रखो किए सबै अरावी एहू ! ज्यो हुरीफ अब नजरि अराज'दि० [ स० अ+ राजन् बिना राजा का । उ०—जग अराज तर्व घडाघड देहु ।- मुजान०, पृ० १५1 (ख) दादाघाट हूँ गयौ रिविन तव अति दुख पायौ । लै पृथ्वी को दान वीरपुर वाँध्यौ । रोपि अबै कनहै काँध्यो । लाल ताहि फिरि बनहि पठायो ।--सूर०, ६।१४ । (शब्द०)। ३ जहाज पर तोपो को एक बार एक शोर अराज--सच्चा पु० अराजकता ! शामन विप्नव । हनचन । दागना । सलख । अराजक--वि० [सं०]१ जहां राजा न हो । राजहीन । विना राजा अराम' –सशा पु० [म० श्राराम बाग । उपबन ।--ये नहि का । २ अराजकता फै नानेवाला । विद्रोह या विप्नव ऊरने फून गुलाप के दाहन हिय जु हमार । बिन घनश्याम अराम मे वाला । नागी दुसह दवार ।। अराजकता--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ राजा का न होना । २ शासन अराम--सज्ञा पुं० [फा० श्रारान] ४० आराम । का अमाव । ३ प्रशानि। हनचल । अँधेर।। अरारूट--ज्ञापु० [अ० एरारूट ]एक पौधा जो अमेरिका से हिंदुस्तान यो०--अराजकतावाद = व्यक्तिम्वातत्र्य का समर्थ नकरनेवाला में आया है। तथा शासन की अनावश्यकता मनानेयाला सिद्धात या वाद । विशेष--गरमी के दिनो मे दो दो फुट की दूरी पर इसके कद गाडे अराजन्य-वि० [सं०] क्षत्रियविहीन [को०] ।। जाते हैं। इसके निये अच्छी दोमट श्री व नुई जमीन चाहिए । अराजवोजी--वि० [न ० अराजवी जिन् ] अराजकता फैलानेवाला । यह अगम्न से फूलने नगना है और जन गरी फरवरी में तैयार हो राजविद्रोह का प्रचार करनेवाला । जाता है। जव इसके पत्ते झड़ने लगते हैं । यह पक्का नमः विशेष—कौटिल्य ने ऐसे मनुष्यो को बहाँ भेजने का विधान जाता है और इसकी जड़ खोद ली जाती है । खोदने पर भी बताया है जहाँ उपनिवेश वैमाने में बहुत कठिन या खर्व हो । इम की जड़ रह ही जाती हैं । इमसे, जहाँ यह एक बार लगाया अराजपसन-~-सज्ञा पुं० [सं० ] अराजकता सबधी में कट। गया वहाँ दम का उच्छिन्न करना कठिा होता है। इनकी जई को अजो --सज्ञा स्त्री० [अ० अर्ज का बहुव०] १ भूमि | धरती । पानी में ख़त्र धो कर कूटते हैं और फिर उनका भत निकालते | जमीन । २ वह जमीन जो वेती बारी के काम आती है (को०)। हैं जो स्वच्छ मई की तरह होता है । यह अमेरिका की अराड-सज्ञा पुं० [ म० अट्टाल ] १ राशि । ढेर। अपार । २ टूटी तीबुर है। इसका रग देमी तीबुर के रग से सफेद होता है तथा फूटी तथा रद्दी वस्तु का अवार। जनावन की दुकान । इममे गए और स्वाद नहीं होता। अराइना--कि० अ० [1] गर्भपान में जाता । गर्भ र गिर जाना । २ अराट को प्राटा। सच्चा फेकना । अरारोट-सच्चा पू० [हिं०] दे॰ 'अराट'।