पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३७५

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अरघटो अरझा जो हाथ धोने के लिये किसी महापुरुप को उसके आने पर दिया अरचा--सा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'अर्चा' । उ०- त्यो पदमाकर जाय । उ०—अादर अरघ देइ घर आने । सोरह मति पूजि सालिगराम को के अरचा चरनोदक चाखे ।—पद्माकर ग्र०, सनमाने ।--तुलसी ( शब्द०)। ३ वह जल जो बत्ति के पृ० ३४४।। आने पर वहाँ भेजा जाता है । उ०—-गिरिवर पठए वोलि अरचि--संज्ञा स्त्री॰ [म० अधि] ज्योति । दीप्ति । अाभा । प्रकाश । लगन बेरा भई । मगल अरघ पावडे देत चले लई ।---तुलसी | तेज । उ०~-भे चन्नत अकरि करि म मर्पन रचि भुग्घुमड़न गू ० पृ० ३६।४ वह जल जो किसी के आने पर दरवाजे पर अरचिकर :- गोपाल (शब्द॰) । उसके सामने आनदप्रकाशनार्थ ढरकाया जाता है । ढरकावन । अरचित -वि० [हिं०] १० 'अवन'। उ०—गजमुकुता हीरामनि चौक पुराईय हो । देह सु अरघ अरज-सज्ञा स्त्री० [अ० अज] विनय । निवेदन । विनती । उ०- राम कहूं लेइ बैठाइय हो ।—तुलसी ग्र०, पृ० ३ । ५ जल होत रग संगीत गृह प्रतिध्वनि 'उडम अपार । अरज करते का छिडकाव । उ०—नाइ सीस पगनि असीस पाइ प्रमुदित निकरते हुकुम मनी काम दरबार ।-गुमान (शब्द॰) । पावटे अरघ देत दर से प्राने हैं ।—तुलसी (शब्द०)। क्रि० प्र०—करना ।--कहना। क्रि० प्र०—करना । उ०-हरि को मिलन सुदामा अायो । विधि यौ०-अरज गरज ! करि अरघ पावडे दीदे अतर प्रेम बढायो ।—सूर (शब्द॰) । अरज-- सच्ची पुं० [अ० अज] चौडाई । दना । उ०—-हृदय ते नहि टरत उनके श्याम नाम सृहेत । अरज-वि० [सं०] १ जिम में चून न लगी हो । स्वच्छ । २ दाग अश्रु सलिल प्रवाह उर मनो अरघ नैनन देत ।—सूर (शब्द०)। ग्रादि से रहित । ३ जिसे मासिक धर्म न हो []। अरघटी–संज्ञा स्त्री० [सं०] १ वह वोल्टी जो रहट में लगी रहती अरजन -- क्रि० स० [हिं०] दे० 'मर्जन' । उ०---केन लगे जब यो है । २ गहरा कूप कि० ।। अन्याय सहित धन अरज़न ---प्रेमघन॰, मा० १, पृ० ५३ । अरघट्ट-मज्ञा पुं० [सं०] रद्द । अरट । अरजना(७)---कि० अ० [हिं० अरज से नाम०] निवेदन या प्रार्थना अरघट्टकमज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'अरघट्ट' । करना । अरघनी---सजा श्री० [सं० अर्घणिक] आम का वह पत्ता जिसका अरजम--संज्ञा पुं॰ [देश॰] कूवी नाम का एक बड़ा वृक्ष जितको प्रयोग देवविंशेप को जल देने में किया जाता है । लकडी से खेती के औजार और गांडो के शुरे आदि बनाए आते विशेष---कभी कमी पडित अपने यजमान के हाथ में एक ग्राम हैं । वि० दे० 'कुवी'। का पता देते हैं और दैवविशेप के निये जल छुडवाते हैं, अरजलसंज्ञा पुं० [अ० अर्जल] १ वह घोडा जिसके दोनो पिछले तव वह पत्ती अरधनी कहलाता है। पैर और अगला दाहिना पैर सफेद या एक रंग की हो। अरघा–मुज्ञा पुं० [सं० अर्घ १ एक पात्र जिसमें अरघ का जन रख (ऐसा घोडा ऐबी माना जाता है) । उ०—तीन पाँव एक रग कर दिया जाता है । यह ताँबे का थूहर के पत्त के प्रकार का हो एक पवि एक रग । ताको अरञ्जन कहत हैं वरत राज में गावदुम होता है। २ एक पात्र जिसमे शिवलिंग स्यापिन भग । २ नीच जाति को पुरुप ।'. वर्गम कर । किया जाता है । जनधी । वह पाय जिसमें अर्घ रखकर अरजन'--वि० नीच, जमे अरजुन कौम । दिया जाता है। अरजस्क-वि० [सं०] दे॰ 'अरज” । अरघा-सच्ची पुं० [स० अरघट्ट] कुएँ की जगत पर पानी निकलने के अरज--वि० [फा०] सम्ता । कमकीमत [को०] । लिये बनाया गया रास्ता। चैवना। अरजा-संज्ञा स्त्री० [म०] १ भागव दृषि की पुत्री । २ घीकुमार। अरघान संज्ञा पुं० [सं० घ्राण] गध । महक । अव्राण । उ०-- घृतकुमारी । ३ वह कन्या जिगे रजोधर्म न पा हो कि० । (क मर केस वह मानत रानी । बिसहर लुरे लेह अरघानी। अरजा’–दि० [सं०] अजम्वला [को०] । --जायसी ग्र०, पृ० ४१ । (ख) अरघान की फैन, मैली हुई अरजो+--सद्या स्त्री० [अ० अर्ती] १ अावेदनपत्र । निवेदनपत्र । मालिनी की मृदुल शैने -अराधना पृ० ७।। प्रार्थनापत्र । ३०----गजी ह्व दियो उन पान हमें पढ़ि सीवरे अरघानि -सज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'अरघान' । राबरे की अरजी ।--तोय (शब्द०)। २ दे० 'x' । अरचन---सज्ञा पुं॰ [स०अर्चन] पुजः । नव प्रकार की भक्ति में से अरजी0f-[अ० अर्ज + हिं० ई (प्रत्य॰)] प्रार्थी । उ०—अर ज़ एक । उ०---श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादरत, अरचन, वदन दास । सस्य और त्मिमिवेदन, प्रेम लक्षण जोस ।--सूर पिव पिव रटन परबि तब प्रगटत मरजी !-सुधाकरे (शब्द०)। (शब्द०)। अरजुन --संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अजुन' ।। अरचना --क्रि० स० [सं० अर्चन] पूजा करना । उ०--(क) दुख अरज्जु'–वि० [सं०] विना रस्सीवाला (को०] । मे आरत अधम जन पाप करे डर डारि । बलि दै भूतन मारि | अरज्जु”–सज्ञा पु० कारागृह । जे 7 [को०]] पशु अरचे नही मुरारि --दीनदयाल (शब्द॰) । अरझना –क्रि० अ० [हिं०] १० 'अरुझना' । अरचल-सुझा स्त्री० [हिं० अड्चन] अडस । रुकावटे । अडचन । अरझा*---मज्ञा पुं० [३०] छोटी जाति का सन | सनई । ३०-मैं कैसे चनौं भजनीं चल न जाये । उझी है मारी रे अरझा--मज्ञा पुं० [हिं० अरुमा ग] १ उन झते । झमेना । २. बेरिया की झारी रे अरचन र परी ---प्रताप (इन्दि०)। बखेडा । टटा । झगडा । ति, अरचन, र जुन ३०1 विना