पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३७३

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अयोध्याकांड ३०४ अकना विशेष--वाल्मीकी रामायण के अनुसार इसे सरयू नदी के किनारे जाकरि कनक नना नो पिर प्रीतम जिभ --नायमी वैवस्त मनु ने बनाया था जो ४८ मी न नवा प्रौर १२ ग्रे०, पृ० १७६ ।। मील चौडा वडा नगर था। इसका एक नाम साकेत भी है। अरभना ----कि० म० [५० प्रारम्भण] प्रारम करना । शुरू करना रामचंद्र जी का जन्म यही हुया था । पुराणानुसार यह हिदु प्रो उ०स कुवह जमन विभूपन परमन जा वपु । तेहि सरीर हुर की सप्तपुरियो में से है। हेतु अर भेउ वड तेषु ।---तुगी (शब्द॰) । अयोध्याकाइ-मज्ञा पुं० [सं० अयोध्याकाण्ड] रामायण का आभना-क्रि० प्र० ग्राम होना। शुरू होना । उ०—अनग्यु । द्वितीय काई ।। अवध अर भेउ जव ते । कुनगुन होहि भरत कठ्ठ तव हैं ।-- अयोनि--वि० [सं०]१ जो उत्पन्न न हुआ हो । अजन्मा ।२ नित्य । मानन २॥१५७ । | ३ अवैध रूप से पैदा [को०] । ४ अज्ञात कुनाला [को०] । अर--संज्ञा पु० [म०]१ पहिए की नाभि शौर नेमि के बीच की प्राडो अयोनि-सज्ञा पु० १ योनि से भिन्न । २ ब्रह्मा । ३ शिव । ४ लकडो । प्रागज । २ अरी । ३ जाग 1 Tो । । ४ मेवार। मूमल या नोढा (को०] ।। ५ पित्तपापड़ा । पर्पट (को०] । अयोनिज--वि० [सं०]१ जो योनि से उत्पन्न न हो । जो प्रजनन की अरवि० १ शीघ्र । जर दी । २ छोटा को०] । | साधारण प्रक्रि । ने उत्पन्न न हो । २ स्वप्रभू । ३ अदेह । अर' G-संज्ञा पुं० [हिं० अङ] १ हठ । अङ । जिद । ३०-(क)परि अयोनिज--संज्ञा पुं० १ पिए । २ ब्रह्मा । ३ शिव । ४ अगस्त्य पाकरि यिननी धनी नीमजा ही कोन । अव न नारि अर करि या कुमज पि । सके जदुर परम प्रोन |--- बिहारी (शब्द॰) । अम!निजा--सज्ञा ली० [१०] मीता [को॰] । अरइन'----पि वि० [हिं० अरना, अडना] जो चलने चलते रुक जाय अयोनि सभवा--सज्ञ। ब्री० [सं० अयोतिसम्भा ] दे० 'अयोनिजा' (को०]। अौर ग्रागे न य । शमिल । प्रयोमय--वि० [स०] लोहे के रचित । लोहे का [को॰] । अरइन -सा पुं० [३०] १ एक वृक्ष का नाम । २ प्रयाग में पयोमल--सज्ञा पुं० [म ०] मोरचा 1 जग (०] । वह स्थान जहाँ नTI में यमुना मिलती है। गरेन । उ०—-की अयोमुख-वि० [सं०] जि प का मु३ नोहे का हो । कानिदी विरह मताई। चति पयाग अरइन बिन अाई । अयोहृदय-- वि० [२०] नोहे जै । कठोर हृदय वाला । स गर्दिन । --ज्ञायती ग्र०, पृ० ४६ । निष्ठुर [को०] । अरई-मज्ञा स्त्री॰ [म० = जाता] वैन हाँकने की छडी या पैने के अयौक्तिक-वि० [सं०] युक्तिहीन । असगत [को०)। मिरे पर की लोहे की नुकीनी हीन जिनसे वे न को गोदकर अयौगिक--वि० [सं०] [वि०सी० अयोगिकी] १ रूइ । जो (शब्द) हाँगते हैं । प्रतोद ।। व्याकरणविरुद्ध हो । २ जिसको योग या जोड से सबंध मुहा०—-अरई लगाना= ताकीद करना । प्रेरणा करना। न हो (को०] । अरई--संज्ञा सी० दे० 'अरपी' । अरग---सजा पु० [ म ० अध्यं = पजाद्रव्य अथवा स ० झाप्राण, तुल० अरक-संज्ञा पुं॰ [म १ मेवरि । २ पट्टि का अार । अारागज 'अरघान'] मुग।। महक । उ०—-इप के तर गन के अनि ते । [को०] । ३ दिनपपई (को॰) । सोधे के अरग ले ले तरल तरग उठे पौन की ।--देव अरक-सज्ञा पुं० [अरफ] १ किती पदार्थ का रस जो मनके में खींचने (गब्द०)। में निकने 1 ग्रामव । अर्क । अरगम-मज्ञ पु०[१० अरङ्गन]१ ममीप अागमन या दिवाई पडना । क्रि० प्र०-- उतरा ! खो बा । नि हाल रा । २ महायताथ उपस्थित होना (को०] । २ ।। अरगर---वि० [म ०] १ तुर। म्नुति करनेवाला । २ नहर का बना क्रि० प्र०-..-निचोडना । हुया को०)। ३ पर्मना। अरगी-वि० [स० अरङ्गिन्] रागरहित ! रागविहीन को०] । क्रि० प्र०- ग्राना--निक वैन । अरड)--संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ “एरड, रेड'। मुहा०—-प्ररक अरक हो = पसीने में न जाना । अरवन–संज्ञा पुं० [न० प्ररन्धन] एक प्रकार का व्रत जो निहूसक्राति अरक -सज्ञा पुं० [सं० अर्क] 1 मार। ग्राफ । उ०—। अपि और कन्यामक्राति के दिन पड़ना है। इस दिन 'प्राचारमार्तंड' अरकन मे ख!ि 'कन में भ्रम भरकत में जा३ ।-या- के अनुसार भोजन नही पकाया जाता । कर ग्र०, पृ० २६६ । २ गुय । अर्कगीर---सश। पु० [फा०] न भरे का ब ।। हुपा वह ट हा जिन की अरव्यद(५) सज्ञा पुं० २० र विद' । ३०---बी पग दरम र व्यद | घोड़े की पीठ पर रखकर जीन या चारशामा खी वते हैं । | मान ।—पृ० ० ६१६३६।। प्रेरकटी-सज्ञा पुं० [हिं० 'प्राड+काटता] वह माँझो जो नाव की अरभq--संज्ञा पु० ० 'भार' । उ०--क्रया अरभ करइ मोइ पतवार १९ रना उौर उसे घुमाता है । " चाहा । तेही समय गाउ बगनाहा ।-ना नम, ७।६३ । अरकना (५)---कि० अ० [अन०] अराकर गिरना । ट करना । अरभना'७) ----कि० ग [म० आ+रम्भ = शरद करना] वो नना। उ०—कदै दरिनु अत नुथि पर लुधि अक्किय ।सूदन नाद करना । उ०—रोवत पखि बिमोहे जस कोकिला अर म । (शब्द॰) ।