पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३७०

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मैयतिथी ३०१ अँस्कस | अयथातथ–वि० [स०] अयनार्थ । विरुद्ध । विपरीत । यथायोग्य अयनवृत्त-संज्ञा पुं० [सं०] १ सूर्य के गमन में बननेवाला वृत्त । २' नहीं । ग्रहण की रेखा को॰] । अयथातथ’- सझा पु० विपरीत या अयोग्य कार्य कि०] ।। अयनसक्रम----मन्ना श्री० [म० प्रपनमक्रम १ मकर और कर्क की ' अयथातथ्य-सज्ञा पुं० [सं०] अयोग्यता । अनुपयुक्तता । व्यर्थता अय सक्राति । अयन मक्रोति । २ प्रत्येक सक्राति से २० दिन थार्थता (को॰] । पहले का काल । अयथाद्योतन- संज्ञा पुं० [सं० अप्रत्याशित घटना घटित होना को॰] । नसक्राति सवा श्री० [सं० थय महा1ि अफर प्रौ अयथापूर्व-वि० [सं० [जो पूर्ववत् न हो। जो पहले जैसा न हो। सक्राति । अयनसक्रम । अयथामुखीन--- वि० [१०]जिसका व्यवहार पहले जैसा न हो। जिसने अयनसपात---सज्ञा पुं० [म० श्रयनरम्पति] अयनाश का योग ।। | मुह फेर लिया हो कि०] ।। अयनसमात--संज्ञा पुं० [म० अयनसमात] १ रात और दिन दोनों अयथावृत्त--वि॰ [२०] अनुचित या गलत ढंग से काम करनेवाला । का बरावर होना । दिपुवन रेखा पर उन दो विदुग्रो में से एक, अयथास्थित-वि० [सं०] जो बेगेपन से रखा गया । अव्यय जिनपर मे होकर सूर्य का क्रा तवृत्त (सूर्य का मार्ग) विद्युत् म्यित (को०) । रेखा को वर्ष में दो बार (छह छह महीने पर) काटता है। जब 'अयथार्थ- वि० [सं०] १ जो यथार्थ न हो। मिथ्या । अमत्य । २ जो किसी एक बिंदु पर सूर्य आता है, तब रति अौर दिन दोनों ठीक न हो । अनुचित । अनुपयुक्त । धररावर होते है । इसी को अयननमान कहते हैं । २ उक्त यौ०-:-अयथार्थज्ञान = मिथ्या ज्ञान ! झूठा ज्ञान । श्रम । दोनो विदु । अयथावत्---वि० [सं०] अनुचिन ढग या गलत तरीके से को॰] । अयनात-सज्ञा पु० [पु० प्रयनान्त] अयन की समाप्नि। बहु पधि कान अयथेष्ट--वि० [म०] १ जो यथेष्ट या मनोपजनक न ह । २ इच्छा के । जहाँ एक अयन ममाप्त हो र दुन प्रयन आर में । । विपरीत हो [को०] । भयनाश--मज्ञा पुं० [१०] १ सूर्य की गनिविणे के का7 फी माग | अयथोचित--वि० [सं०]१ जो समुचित या मुनासिव न हो । ३ । २ विपुवत् रेखा पर के वे दो जिंदु जिनपर से होकर मूर्य का | अयोग्य को] । क्रांतिवृत्त (गमन का मार्ग) वर्ष में दो बार (व्ह छह महीने पर) अयन---संज्ञा पुं० [स०]१ गति । चान्न । २ सूर्य या चंद्रमा की दक्षिण काटता है और जिनपर मूर्य के आने पर रात और दिन दोनो से उत्तर या उत्तर में दक्षिण की गति या प्रवृत्ति जिमको बराबर होते है । उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं । वाग्है रशिचक्र का अयमदिन--सेवा पु० [म०] ६० घडी का वह् एक ही रात दिन घा । जिमम दो तिथियो का अवमान हो जाय । विशेप--मकर मे मियन तक छह राशियों को उत्तरायण कहते है । क्योकि इनमें स्थित मूर्य या चंद्र पूर्व से पश्चिम वो जाने विशेप-कहा गया है कि ऐसे दिन में स्नान घोर द"नादि के अतिरिक्त ग्रौर कोई शु। कर्म नहीं करना चाहिए । हुए भी क्रम से कुछ कुछ उत्तर को झुकते जाते हैं । ऐसे ही कर्क से धनु की सक्राति तक जब सूर्य या चंद्र की गति दक्षिण की । अयमिन-वि० [३०] १ जिसे नियमित न किया जाय । २ जो काट छाँटकर दुरुस्त न किया गया हो । अमजित [को०)। शोर झुकी हुई दिखाई देती है व दक्षिणायन होता है । ३ । राशिचक्र की गति । । अयम्--मर्व० [सं०] यह ।। विशेप-ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह राशिचक्र प्रतिवर्ष ५४ अर्यव'–मज्ञा पु० [सं०] १ पुरीप का एक कीड़ा जो पब में छोटा विकता, प्रतिमास ४ विकला, ३० अनुकना और प्रतिदिन है। होता है । कद्दूदान।। २ पितृ कर्म, कथा कि इस कृत् । में यव अनुकना विमझता है । ६३ वर्ष ६ महीने में राशिचक्र त्रिपुवत् । नही काम प्रातः । ३ शत्रु । ४ कृष्ण पक्ष । रेखा पर पूरा एक फेरा लगता है । यह दो में विभक्त श्रेयवेव १ जिसमें यय का प्रयोग नै हो । ३ अनावयुक्त। हैं--प्रायन और पश्चादयन् ।। अपूर्ण (को०] । ४, ग्रह तारादि की गति का ज्ञान जिम शास्त्र में हो। ज्योतिपयश-मज्ञा पुं० [म० अयशस्] १ अपयश | अपकनि । ३ निदा । मात्र । ५ सेना की गति । एक प्रकार का सैनानिवेश अयशस्कर--वि० [सं०] अपयश का कारण । जिसके करने से (कवायद) जिसके अनुसार यूह में प्रवेश करते हैं। ६ मार्ग । वदनामी हो । है । ७ प्रधभ । ६ स्थान । ६ घर । १० कान । समय । अयशस्य--वि० [सं०] जिनसे वदनामी हो । वदनाम करनेवाला। ११ अश । १२ एक प्रकार की यज्ञ जो अयन के प्रारभ अयशस्वी---वि० [सं० अयशस्विन्] १ जिमे यश न मिले । शीत- में होता था । १३ गाय या मैस के थन के ऊपर का वह मान् । वदताम् । भाग जिसमें दूध भरा रहता है। उ०प्रतर अयन अयन भेल, अयशी--वि० [स० अयशस्वी, हि० अयशी, अजसी] बदनाम है। थन फल, वच्छ वेद विस्वास ।—तुलसी ग्र २, पृ० ४६४ | अयश्चूर्ण ---सज्ञा पुं० [सं०] लोहे की चूरा [को० । अयनकाल–सना पुं० [सं०] १ बहू काल जी एक प्रयन में लगे ।२। अयस--सज्ञा पुं० [स० अयस्] लोहा ।। छह महीने का थाल । विशेष---समासात में प्रयुक्त, जैसे पायेस. कालचम अादि । अयनभाग---सा पुं० [सं०] अयन अप वा हिस्सा । अयस्कंस-सज्ञा पुं॰ [स] लोहे का प्यालानुमा पात्र (फो] । - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -