पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३६७

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अमोघ कि०] 1. ( ०1 सूर्योद अमेठी २६८ अमौतुक अमेठी-सक्षा स्त्री० [हिं० अमेठ+ई] ऐठ । अकड़ 1 अपमान । गर्व । अमोगाँ- -वि० [म० अमोघ] अत्यधिक । बेहुने (वोल०) । । उ०—-एक अखि शिक्षा की हेठी से देखने लगी उसे अमेठी अमोघ----वि० [म०] १ निप्फन न होनेवाला । वृशा या अन्यथा ने से --वेला, पृ० ५३ । होनेवाला । अपर्थ । अचूक | लक्ष्य पर पहुंचनेन । खाली अमेत –वि० स० अमित] अगणित । अनेक । अमित । उ०—सुक न जानेवाला । २ अनछ । अद्वितीय । उ०-- सन सामंत ममध चढि । विच सुदरी अमोघ - -भृ० /०, २५७८० । समीप मने कूवरि को, लग्यौ वचन के हैत । अति विवित्र अमोघ---संज्ञा पुं० १ व्यर्थ न होने का मात्र । अव्यर्थ । २. शिव । ३, पडित मुग्रा, कथत जु कथा अमेत ।----पृ० १० २०११३ । अमेस्क -वि० [सं०] मेदा रहित । दुब ना पत ना को०)। अमोघकिरण---संज्ञा स्त्री० [म ०] सूर्योदय और सूर्यास्त के समय की अमेघा--वि० [स० अमेघस्]जिम में मेधा न हो । मूर्ख । बुद्धिहीन (को०)। किरण को] । अमेध्य-सधा पुं० [सं०] १ अपवित्र बस्तु । विष्ठा, मूत्र श्रादि ।। अमोघदड----सजा यु० [स० अमोपदण्ड] वह जो दंड देने में न चुके ।। विशेष-स्मृति के अनुसार ये चीजें अमेघ्य हैं--मनुष्य की | """" शिव को०) । हड्डी, घाव, विष्ठा, मूत्र, चरवी, पसीना, असि, पीव, कफ, मघ, अमोर्शी---वि० [म ० अमोघशन्] अचूक दृष्टिबाला [को०] । वीर्य और रज।। अमोघदृष्टि---वि० [स०] ३० ‘अमोघद' ।। २ एक प्रकार का प्रेत । ३ अपशकुन [को०] । : अमोघवाक्---वि० [सं०] जिनकी वाणी की व्यर्थ न होनी हो क्रिो०] । अमेध्य-वि० १ जो वस्तु यज्ञ में काम न आ सके । जैसे, पशुप्रो मे अमोघविक्रम--- वि० [सं०] जिसका पराक्रम की विफन न होता कुत्ता और अन्नो में मसूर, उर्द ग्रादि । २ जो यज्ञ कराने । हो कि०] । योग्य नै हो । ३ अपवित्र । अमोघविक्रम’---सज्ञा पु० शिग्र [को०) अमेय–वि० [सं०] १ अपरिमाण । अमीम इयत्ताशून्य । वैद । अमोघा--धज्ञ री० [म०] १ कश्यप की एक स्त्री जिनमें पक्षी उत्पन्न २ जो जाना न जा सके। अज्ञेय । उ०-~-कय सुदर मुंदर हुए थे । २ हुई । ३ वायविड । '४ पाढर का पेड और नामधे । नमस्ते नमस्ते नमस्ते अमेय ।—सुदर० ग्र०, भा० १, | फूल । ५ शिव की पत्नी [को॰] । ६ एक गम् । शक्ति (को०] । पृ० २७६ । अमोचन-- सज्ञा पुं० [सं०] छुटकारा न होना । न छूटना ।। अमेयात्मा--सज्ञा पुं॰ [ मं० अमेयात्मन् | बिष्ण [को०] । अमोचन -व० न छूटनेवाला । दृढ़ । ३०-मू दि रहे पिय प्यारी अमेयात्मा–वि० महान् ऋत्मिापाला। उदारमना । [को०] । लोचन । अति हित वेनी उर पर नए वेष्टित मुजी अपीचने । अमेरिकन-वि० [अ०] १ अमेरिका की । २ मयुक्त राष्ट्र अमेरिकी सूर०---(शब्द॰) । का निवासी । ३ अमेरिका मवधी 1 अमोचनीय---वि० [सं०1 न छूटने योग्य (को०] । अमेरिका-~-सच्ची पुं० [अ०] पश्चिमी गोलार्ध का एक महादेश । यह अमोद-वि० [सं०] मोद रहित । अनदेशून्य [को०] ।। दो भागो मे बँटा हुआ है--उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी प्रमोद --मज्ञा पु० [सं० श्रमोद] मुगः । ग्रामोद। ३०-से अमेरिका । उ०—तुम नहीं मिले तुमसे हैं मिते हुए नव योरप कमल अमीदह पाइ। ठ ठाँ उठत मधुप अकुलाइ 1----नद० अमेरिका ।—अनामिका, पृ० २१ । ०, पृ० २५६ । अमेरिकी--वि० [हिं०] दे॰ 'अमेरिकन' । अमोनिया---संज्ञा पुं० [अ० एसोनिया ] नौसादर । अमेल-वि० [म० अ + मेल] जिसका किसी से मेल न बैठना हो । जो । अमोर’----वि० [हिं०]न मुडनेवाला । अडिग 1 म्यिर। उ०--ज किसी से मेल न खाय । अनमेल । असवद्ध । पुन पचास झ झै अमौर । व जै जीत के नष्ट नीसनि घोर -- अमेली)---वि० [हिं० अमेल] अनमिन । असवद्ध । अड बङ । उ०-। पृ० ०, २०५६६ ।। अमोर” -वि० [हिं॰] दे॰ 'ग्रमो ।' । उ०- -अत्यनीक नामी कहैं, | खेले फाग अति अनुराग मों उमग ते, वे गावे मन भावे, तहाँ भूपन बुद्धि अमोर ---भूप 7, पृ० २५८ ।। वचन अमेली के ( शब्द॰) । अमोरी--मज़ा ली० [हिं० अम + रो { प्रत्य॰)] १ ग्राम का अमेब)---वि० [हिं०] दे० 'अमेय' ।। बहुत छोटा कच्ची फल । अॅविया । २ ग्राम।। अम्मा । उ० अमेह सज्ञा पुं० [सं०]एक प्रकार का रोग जिसमे पेशाब नहीं उतरती ---फन को नाम वुझावन लागे हरि कहि दिनो अमोरि --- | या रुक रुककर इतनी है ।। मुर ( शब्द०)। अमॅड----वि० दे० 'अगड़े' ।।

  • अमोल(g)---वि० [अ० अमूल्य] [वि॰ स्त्री० अमोलो] १ अमूर्त ।

अमेडा)---वि० [हिं० अ + मैड = सीमा] मर्यादा या सीमा न मानने- अत्यधिक मूल्य का। मूल्यवे न् । उ०—म सिगार पार के वाला । उ०-~-कोऊ न देख न काहू दिखावन अपनो अनन पात अमोन मनोभव मिधा ---विद्यापनि, पृ० ३५। २ जान अमटे 1-घनानद, पृ॰ ४६ । । जिसका मूल्य न लगाया जा सके । तुत्र नाम अमो न ममरय अमेठना -क्रि० सं० [हिं॰] दे० 'अमेठना' । । । करहु दाया निर्धन }---कवीर सा०, पृ० ५२२।। अमोक्ष'-सज्ञा पुं० [सं०] १ मोक्ष न मिलना । २ बधन (को०] । अमोलक (५)---वि० [हिं० अमोल -+ क (प्रत्य०)] ६० 'अमूल्य'। उ०-~- अमोक्ष--वि० १ जिमका मोक्ष न हुआ हो । प्रमुः। २ जिसका । छाँड़ि काके मनि रतन अमोन कव की फिर गही । मोक्ष न हो सके। ३ बँधा हुया को०] । मूर (शब्द॰) ।