पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३६४

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२६५ अमीन अमृतमान्ने अमीन-मज्ञा पुं० [अ०] १ वह उक्ति जो अमानत रखता है। २ यौ०-इहामुत्र तोक परलोक । । विश्वमनीय १३ बह अदारी कर्मचारी जिसके भुपुर्द बाहर का अनुत्रत्य–वि० [म०] भविष्य जीवन या परलोक सबंधी [को०] । | काम हो, जैसे मौके की तहकीकात करना, जमीन नापना, वेंट- अमुद्र–वि० [सं०] १ जिसके पास कही जाने का परवाना या मुहर वारा करना, डिगरी का अमनदरामद कराना इत्यादि । | न हो । जिसके पास मुद्रा या निशानी न हो (को०) । अमीन -सज्ञा पुं० [प] ६० अमी' । उ०---ग्रानंदघन हित पोखि अमूना--क्रि०वि० [म०] ऐसे । इस प्रकार । उ०—प्रमुना विधि के पाले प्रान अमीन ।-धनानद पृ० १८० । जमुनातट अावति ।--नद० अ०, पृ० २६६।। 'अमीपत्र--संज्ञा पुं० [हिं० अमी+पत्र = पात्र अमृतपान । अमृतवट । अमुला--वि० [हिं०] दे० 'अमूल्य' । उ०—नाम तैरो प्रेमुला नाम 'अमीवा- सज्ञा पुं० [०] एक अति मूष्म जीव जिसे मूक्ष्मनिरीक्षक तेरो चदन घमि जयै नाम उचारे ।--सत १०, पृ० १२९ । । यत्र से देखा जा सकता है। अमुष्य--वि० [म०] प्रनिद्ध । विख्यान । मशहर । || अमीमासा- संज्ञा स्त्री० [सं०] भीमासा या विवेचना का भाव ोि]। यौ०- -अनुष्यपुत्र प्रसिद्ध वश में उत्पन्न । कुनीन । अमीर-मज्ञा पुं० [अ०] १ कार्याधिकार रखनेवाला । सरदार । २ अमूक--वि० [सं०] १ जो गूगा नै हो । २ वो ननेवाला। वक्ता। | | धनाढ्य । म पन्ने । दौलत मद । ३ उदार । ४ अफगानिम्तान । ३. चतुर । प्रवीण ।। । के राजा की उपाधि । अमकी+(अमूके )अमूको --वि० [सं० अमुख ]दे० 'अमुक | | अमीरजादा-सज्ञा पुं० [अ० अमीर+फा० जादह][संज्ञा स्त्री॰ अमीर- जैसे, अमूकी ठौर, अमूके वैष्णव, अमूको कुम्हार प्रादि। - - जादी ] अमीर या धनवान का पुत्र । शाहजादा। राजकुमार । अमुझना --क्रि० अ० [ म० अवरुद्व, प्रा० अनरुज्झ, *अवउज्झ, | | अमीरस -सज्ञा पुं० [हिं०] अमृत । उ०—ग्रादि नाम जो अमीरको

  • अमउज्झ ] १ उनझन । हँसना । उ०--कठिन करम की

। चामे -कवीर सा०, पृ० ८७० ।। परत मापसी मनहिं अमूझत है रे ।—सुदर० प्र०, पृ० ८४२ । अमीराना–वि० [अ० अमीर+फा० शाह (प्रत्य०)] अमीरो के अमूझा--वि० [हिं० अमूझना वा उलश ना] अस्पष्ट । जो खुलासा | ढग का । जिममै अमीरी प्रकट हो । धनिकोचित । न हो। उ०----प्रपम अमूक्ष्यो अरथ मवदपिग विण हित अमीरी-संज्ञा स्त्री० [ अ० अमीर+ई (प्रत्य०) ] १ धनाढ्यता। साजै ।—रघु० रू०, पृ० १४ । २ गर्मी से सतप्त होना । दौलतमदी । उ०—जो सुख पावा नाम भजन मे सो मुख नाहि अमू--वि० [सं० अनुढ] १ जो मूल न हो । चतुर । २ विद्वान् । । अमीरी मे --कबीर० श०, १० ७० । २ उदारता । पटित ।। ।। अमीरी-वि० अमीर का मा । अमीरों के योग्य । जैसे, अमीरी ठाठ।। | अमूढ-संज्ञा पुं० पचतन्मात्र में से एक। इनके नाम ये हैं----अविणेप, अमीरुलवहर---वि० [अ०] नौवलाध्यक्ष । नौसेनापति [को॰] । | महाभूत, अर्थात, अधीर और अमूढ । | | अमीव--सज्ञा पुं० [सं०] १ पाप । २ दुःख । ३ रोग । ४ दुश्मन । अमूमन्--प्रव्य ० [स] अनुमानत । सामान्यतया । प्रयि । ।। (को०) । ५ हानि 1 क्षति (को०)। अमूर-सज्ञा पुं० [अ०] बात । चर्चा । उ०—-मेरे खत के दीगर प्रमूर । अमु द्ध -वि० [सं० अ + मुग्ध] मुग्छ । मूर्ख । मूढ । उ०----कोन का जवाब अपने कुछ न दिया।-प्रेम० और गोर्की, पृ० ६१ । | मुजाबन जुध करे । नुनि कमज्ज अमु द्ध-पृ० ०२५७७४ अमूरत -वि० [हिं०] दे० 'अमूर्त' । उ०—अलख अमूरत सिर्जन अमुक-वि० [नं०] फन । ऐसा ऐसा ।। हारा।--इद्रा०, पृ० १६७ । विशेप-इम शब्द का प्रयोग किमी नाम के स्थान पर करते हैं। | अमूरति —वि० [हिं०] दे० 'अमृत' । उ०---चमकत सो निरवान जब किनी वर्ग के किमी एक भी व्यक्ति या वस्तु को निर्दिष्ट अमूरति छकित भयो मन वेधि उमग ।-जगः श०, किए बिना काम नहीं चल सकता, तत्र किमी का नाम न लेकर भा॰ २, पृ० ८१ ।। इम शब्द को लाने हैं। जैसे, 'यह नही करना चाहिए कि अमुक व्यक्ति ने ऐसा किया तो हमें मी ऐसा करे । अमूर्त-वि० [सं०] मूतिरहिन । निराकार । अवयवशून्य । निरवयव । उ०-कुछ भावो के विषय तो 'अमूर्त' तक होने लगे, जैसे कति | | अमुक्त-वि० [१०] १ जो मुक्त या वधनरहित न हो। बद्ध । २ जिसे की नालमा !--म०, पृ० १६५ । छुटकारा न मिला हो। जो फैमा हो । ३. जिमका मोक्ष न हुअा हो । ४ शस्त्र (छुरा, कटारी अादि) जो हाथ में पकड़ कर अमूत’---मझो पु० १ परमेश्वर । २ अात्मा । ३ जीव । ४ काल । बनाया जाय (को॰] । | ५ दिशा । ६ अाकाश । ७ वायु । ८. शिव (को०)। . || अमुक्तहस्त–वि० [सं०] १ देने में जिसके हाथ दवे हो। कजूम । यौ०..--अमूर्तगुण-धर्म अधर्म अादि गुण जो अमूर्त माने जाते है। कृपण । २ कमर्च । अल्प व्यय करनेवाला (को० ।। अमूत--- वि० [स०] मूतिरहित । निराकार । अमुख-वि० [सं०] मुम्वविहीन । अब उहीन [को०] । अमूत’-- संज्ञा पुं० विग्ण कौ०] । । अमुख्य–वि० [सं०] जो मुख्य न हो । प्रधान । गौण । निम्न । अमू -सज्ञा स्त्री० आकारहीनता। निराकारता [को०] । । अमुग्ध-वि० [सं०] १ जो मुग्ध या मोहित न हो। २ जितेंद्रिय । अमृतमान----वि० [म ० अमूमनत्] १ निररको । मू निरहित । २ विरक्त । अनामक्त । ३ चतुर । अप्रत्यक्ष | अगोचर ।। । प्रमुत्र--संज्ञा पुं० [सं०] वह लोक । परलोक । जन्मातर। अमृतिमान्’---मज्ञा पु० विष्णु (को०] ।