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अमित्रघात अभौत अमित्रघात--संज्ञा पुं० [सं०]भत्री का नाश करना । शत्रुग्रो का हनन । अमिलपट्टी--मजा जी० [हिं० अभिल+पट्टी = लोड ]सि नाई या तुर- अमित्रघाती---वि० [म० अमित्रघातिन्] शत्रुओं का नाश करनेवा न।। पन का एक भेद । चीड तुरन । अमित्रता- --सज्ञा स्त्री॰ [म०] शत्रुत।। विरोध । अमिलातक---मज्ञा पुं० [म०]मनानक ! म नयेत [को॰] । अमित्रविपयातिगानौका--सज्ञा स्त्री० [सं०] वह जहाज जो शत्रु के अमिलित–वि० [सं०] न मिला हुमा । पृथक् । जुदा । । राष्ट्र में जाने वाला हो । अमिलियापाट--सज्ञा पुं० [हिं० प्रमिली = इमली + पाट - रेशन! अमित्रसह----वि० [सं०] शत्रु को बशीभूत करनेवाला इद्र । एक प्रकार का मन या पटसन । अमित्राक्षर-वि० [स० अमिताक्षर] जिसमे अक्षरो की कोई निश्चित अमिली -मज्ञा स्त्री० [म० अम्लिका] १० 'दमन' । उ०- शालूचा - सख्या न हो। जिसमे तुक न हो । गद्यमय । उ०----बहुत पहिले अमिली अॅवहनदी । अल अाँवग्ना यान अफ नदी।मुजान०, | भी अमिताक्षर कविता लिखी गई है।--करुणा, (१०) । पृ० १६१ । अमित्री -वि० [स० अभित्रिन्] वैरी । शत्रु [को०) । अमीली’---सज्ञा स्त्री॰ [स० अ = नहीं+मिलना] मेल या अनुकूनता अमिथ्या -वि० [ अ =उच्चा०+मिथ्या] व्यर्थ । वेकार (उ०- का अभाव । खटाई । कपट । विरोध । मनमुटाव । ३०–जह सतगुरु भक्तिभेद नहि पाए, जीव अमिथ्या दीन्हा ।--घट०, अमिती पाकै हिय महि । तर्ह न भाव नौरंग के छाहाँ ।-- पृ० २६४ । जायसी (शब्द॰) । अमिय:--संज्ञा पुं० [सं० अमृत, प्रा० अमिग्र, अमिय] अमृत ।। अमिश्र--वि [सं०] जो मिश्रित न हो। मिलावटरहित । शुद्ध । उ०--देखि अमिष रम अन्हवरह भएउ नामिका कीर । पौन। खालिस को ।। वास पहुंचावे, अस रम छौड न तीर ।--जायसी ग्र०, पृ०४३। अमिश्रण–सजा पु० [सं०] मिलावट का अभाव । अमियमूरि--सज्ञा झी० [अमृत +मूरि] अमरमूर । अमृतबूटी । अ अमिश्रराशि--सज्ञा स्त्री॰ [म०] गणित में वह राशि जो एक ही सजीवनी जडी। जिलानेवाली बूटी। उ०-~-प्रमिय मूरि मय। | इकाई द्वारा प्रकट की जाती है । इकाई 1१ मे ६ तक की संख्या । चरन चारू। शमन सकन भवन परिवाछ ।—तुलसी (शब्द०)। अमिश्रित–वि० [म ०]१ ने मिन्ना हु मा । जो मिनाया न गया हो। अमिया---सज्ञा स्त्री० [स० अम्रिका, प्रा० अम्मिश्रा ] कच्चे ग्राम ।। । २ जिसमे कोई वस्तु मिनाई न गई हो । वे मिजावट । उ०—बैठी होगी, जामुन अभिया नदी रौस के पेडों पर ।- खालिस । शुद्ध । पृथग्भूत । मिट्टी०, पृ० ६५।। अमिप--सज्ञा पुं० [सं०] १ छन का अमाव । वहाने के न होने का अमिरती-सच्ची स्त्री० [हिं०] दे० 'इमरती' । भाब या स्थिति । २ ० 'अामप'। ३ भागारिक मुख। ऐश अमिरथा-वि० [हिं०] दे० 'अविरया' । उ०--गया मव जनम | ग्राम (को॰) । अभिरथा मोरा ।—चित्रा०, पृ० १३० ।। अभिष’--बि० निश्छन । जो ही नेयाज न हो। अमिरस ---संज्ञा पुं० [हिं०] १ अमृतरस । २ हठयोग के अनुसार अमी --मज्ञा पुं० [हिं०]० 'प्रमिय' । उ०--'दाम' मन भाव की न चंद्रमा से द्रवित होनेवाला रम । उ०पछि म दिमा धुन अन | भावती चनन तेरी अधर अमी के अवलोके मोह रहिए ।--- हद गरज अमिर से करे उपजे ब्रह्मग्यान -भानद०, पृ०१२ भिखारी ग्र०, मा० १, पृ० १३८ । अमिरित -सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अमृत' । उ०-- जो यह । यौ॰—अमीकर । अमीरस । | अमिरित सो पागे। सोऊ9 मर जग भए म भागे !-- चि०, अमो-वि० [सं० अनिन्] रोगी [को०] । पृ० १२ । अमीक-वि० अ०] गहरा । ३०-- पानी का व इॐ चना अमिन –वि० [सं० अ + हिं० मिला] १ न मिलने योग्य । अमीक 1----दक्खि तो०, पृ० ३४५।। अप्राप्य । उ०---निपट अभि ने वह, तुम्हें मिनिबे की जक, कैसे अमीकर--प्रज्ञा पुं० [म० अमृतकर, अभिय+ फर] अमृतांशु । कै मि नाऊँ गति मी पै न विहग की ।—केश। (शब्द॰) । २ चंद्रमा । बेमेल । बेजोड । अनमिल । अस बद्ध । ३ भिन्नवर्गीय । अमीकला--संज्ञा पुं० [प्रा० अनी+कला] वद्रमा । 'उ०-.-मद् मत जो हिला मिला न हो । जो हिले मिले नही । जिससे मेल जोन अमीकला अनिँदने मुजन-जान्ह रतवृष्टि सुइाई | न हो । उ०-इरपि न बोली लखि ले न, निरपि अमिन सँग घनानद, पृ० ५५६ ।। साथ । अखिन ही मे हँसि धरयो, सीस हिए पर हाय --- अमोच----क्रि० वि० [स० अ + मृत्यु प्रा० विद्] मृत्युविहीन । विहारी (शब्द०)। ४ ऊबड़ खाबड । ऊँचा नीचा । उ--- विनी मृत्यु के । अमिल सुमिन सीडी मदन सदन की कि जगमगै पग जुर्ग जेहरि अमीढ--- मंज्ञा पुं० [हिं० ]० 'प्रधौरी' । - जय की ।---केशव (शब्द०)। अमीत'. --संज्ञा पुं० [सं० अनित्र, प्रा० अति ] १ जो न हो । अमिलताई -सच्चा स्त्री० [हिं० अमल +ताई (प्रत्य०)] न मिलने का श, । वैरी । उ०----पावक तुल्य अमीत ने को भयो, मीतने को | मान । कपट । दूर दूर रहना । उ०—नित न कडू भरे रावरे भयो धाम मुध, को ----मूषण ! (शब्द०)। २. अग ।। अमिलताई हिए मैं किए विमान जे विनोइ छन है ।---- विच्छिन्न । उ०-~-प्रान देव की पूजा कीन्ही, गुरु में । रसखान०, १० ६३ । । । शर्माता रे |----ॐवार ०,१० ८ ।। अमिलतास-संज्ञा पुं० [हिं०] ६० 'अमलतास। अमीत---वि० [सं०1 जिले क्षति न पत्री हो । अक्षत (कौ ।