पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३६२

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अमर ३९३ अमित्रखर्च अमार ७+---पर्व० [हिं०; तुन० दे० प्रनार, ने० हाम्रा, हाम्रो, ] अमिग्र --संज्ञा पुं० [सं० अंनृत, प्रा० अमिअ, अप० अनिमें, मै०, हमारा। मेरा । ३०–कइवा देवल पुतनी 1 ईसीय छ। अमित्र ] दे० 'अमिय'। उ०—-अमिग्र मूरि , मय चूरन प्रभु जी अमारडी नार --वी० रामो, पृ० १० । चारू। समन सफल ‘भव रुज परिवारू ।--मानस ११ ।। अमार --सज्ञा यु० [हिं०] दे० 'अमार्ग' । श्रमि --सज्ञा पु० [हिं०] दे० 'अमृत' । उ०--- कण समाइश अमारी-संज्ञा स्त्री० [अ०] हाथी को छायादार या मइयुक्त हौदा। अमिब रस बुज्झ कहते कन 1--कीति ०, पृ० ५६ ।। अमारी-सज्ञा स्त्री० [हिं० मड़ा था अनडा] अमडा नामक वृक्ष या अभिव -सज्ञा पु० [हिं०] दे॰ 'अभिप' । । उसका फल ।। अभिट--वि० सं० अ +हि मिटना, अथवी अ- नहीं + भयं = मरने- अमार्ग---सज्ञा पुं० [म०] १ कुमार्ग । कुराह। २ बद व ननी। बुरी वाला] १ जो न मिटे । जो नष्ट न हो । नाशहीन । स्थायी । चालु | दुराचरणे । २ जो न टले । अटल । जो निश्चय हो । अव भाव।। अमार्ग- मार्गरहित ! मार्गविहीन । [को०] । अमित--वि० [म०] १ जिसका परिमाण न हो । अपरिमित । 'बेहद । | अमाजित---वि० [सं०] १. जो धोकर शुद्ध न' किया गया हो । श्रमीम । २ वहुत । अधिक । ३. तिरस्कृत । उपेक्षित (को॰) । | अम्वच्छ । २. जिसका मम्कार न हुआ हो । विना ४ अज्ञान । अनजाना (को०)। ५ अमस्कृत। सम्कारहीन शोधा हुआ । (को०)। ६ केशव के अनुसार वह अर्थालंकार जिसमे साधन ही || अमाय ----वि० [म०] १ जिमको स्वच्छ न किया जा सके । २' साधक की सिद्धि का फन भोगे । जैसे---‘दूती नायक के पास जिसका मस्कार या शोधन करना स भव न हो । नायिका का सँदेमा लेकर जाय, परतु वय उससे प्रीति कर अमाल(G)--सज्ञा पुं० [अ० अमलअमल रखनेवाला। हाकिम । ले ।' उ०——ानन सीकर सीक कहा ? हिय ती हित ते अति शामक । उ०—पैज प्रतिपात, भूमि भार को हमाल, चहु चक्क अातुर आई । फीको भयो मुख ही मुख राग क्यों ? तेरे पिया को अमाल, 'मयो द डक जहान को --- भूपण (शब्द०)। वहू वार बेकाई। प्रीतने को पट क्यो पलटयो ? अनि केवल अमालनामा-सञ्ज्ञा पुं० [अ० अमाल +फा० नानह] १ वह पुस्तक या । तेरी प्रतीति को रयाई । केशब नीके ही नायक सो रमि नायिका | रजिस्टर जिसमें कर्मचारियो को भली या बुरी कार्रवाइयाँ बीतन ही वहाई t-- केशव (शब्द॰) । दर्ज की जाती हैं । २ कर्मपुस्तक । कर्मपत्र । मुसलमानी मत के यौ०—-अमितऋतु । अमिताशन । अमिततेजा। अमितीजा । अनुसार वह पुस्तक जिसमे - प्राणियों के शुभ और अशुभ अमितद्युति। अमितविक्रम । कर्म कयामत में पेश करने के लिये नित्य दर्ज किए जाते हैं । अमितऋतु-वि० [सं०] असीम बुद्धि या साहसवाला (को०)। अमाली--संज्ञा स्त्री० [अ० अमल] १ जाँच । २. लेखाजोखा । अमितता--सज्ञा स्त्री० [म०] अमित होना । आधिक्य । उ०—घरनी सान्न व माल अमाली, जमा खरच यहि पाई ।--- अमिततेजा--वि० [सं० अमिततेजस्] अमीम कानिमान् [को०]!' धरनी०, पृ० ३ ।। अमितद्युति--वि० [म.] अत्यधिक प्रकाशवा ना [को॰] । अमावट-संज्ञा पुं० [सं० आम्र हि० प्रान+सं० श्रावर्त, प्रा० वट्ट] । अमितविक्रम---वि० [सं०]१ अत्यत वनवा ।। २ विष्णु का विणेपण आम के मुखाए हुए रम के पर्त या तह । [को०] 1 विशेष—इसे बनाने के ये पके ग्राम को निचोड कर उसका रस अमितवोर्यं---वि० [म०] अत्यत मक्तिशाली [को०] । कपड़े या किसी और चीज पर फैज़ाकर मुरवाते हैं। जब ग्स अमिताई)--- संज्ञा स्त्री० [हिं०] अधिकता। अमीमता [को०)। की तह सूख जाती है तब उसे लपेटकर अब लेते हैं । अमावट-सज्ञा स्त्री॰ [देश ०] पहिना जाति की एक मछली । अमिताभ-वि० [सं०] अत्यत तेजस्वी [को०] । अमावड-वि० [ स० अ +प्रा० मात्र (माप्) + डि० ड (प्रय०) ] | अमिताभ-सशा पु० महात्मा बुद्ध का एक नाम । शक्तिशाली । जोरावर । अमिताशन'-.-वि० [स०] १ जो मव कुछ खाय । सर्वभक्षी । २ अमविना---क्रि० अ० [हिं०] दे० 'अमाना' ।' जिसके खाने का ठिकाना नै हो । अमावस- सज्ञा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'अमावस्या' । उ॰---मीन अमावस अमिताशन–सद्या पुं० १. अग्नि । अाग । २ परमेश्वर विष्णु (को॰) । मूल विन रोहिनि विन अखतीज 1---वाघ०, १८१ । अमिति--संज्ञा स्त्री० [स०] अनतता । असमता [को॰] । अमावसी-सज्ञा स्त्री० [सं०] अमावस्या [को०] । अमितौजा--वि० [सं० अमितौजस्] अत्यधिक शक्तिशाली । सर्व- शक्तिमान [को॰] । अमावस्या-सज्ञा - [सं०] १ कृष्णपक्ष की अतिम तिथि । वह ऋमित्र--वि०म०] १ जो मित्र न हो । शत्रु । वैरी। २. वि ना मित्र तिथि जिममे सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि के हो । २ हट्योग की एक क्रिया ।। का जिसका कोई दोस्त न हो। अमित्रक । ३ अतुकात अमावास्य-वि० [सं०] १ जो अमावस्या के दिन हुआ हो। [वग०]। उ०--अपनी अमित्र कविता की तरह अपने गीतों के अमावास्या--सज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'अमावस्या' । लिये भी मैं इधर उधर सुन चुका था --गीतिका (५०), अमाह--सज्ञा पुं० [सं० अमास] [वि० अमाही] नेत्ररोग विशेप ! अखि पृ० १२।। के डेले मे नि । हुआ लाल मन । नाखूना । अमित्रक-वि० [सं०] दे० 'अमित्र' । प्रमाही----वि० [हिं० अमाह] अमाह रोग संबंधी । अमाह रोगवाता। अमित्रखाद---सझा पुं० [स०] इंद्र (को॰) ।