पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३६१

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अमानतदार | २९२ स्थान जहाँ अमानत में वस्तुएँ रखी जाती हैं । अमानतनाम:= अमानुप-वि० [स०] १ मनु न मार्ग के यार । अतीक है। अमानत रखते समय प्रमाणुस्वरूप लिखा जानेवाला पत्र । उ०—-मरान अमानुप र नृम्हारे । केवग्न फोदि कृपा अमानत में खयानत करना या होना = अमानत में ग्री हुई नुवारे ।-- नग, ११३५० । २.मप्यन्य 17 वे पद । रकम को खा जाना । पाशय । पैगानि ।। अमानतदारसभा पुं० [अ० अमानत + फा० दार] १ जिनके पाग अमानुप- सज्ञा पुं. १ मनुय । fन्न प्रा। ये इन। । ३ कोई चीज अमानत रखी जाय । धरोहर रखनेवाला । २ राइन । | अमीन (को॰) । अमानुपिक-- वि० [ग ०3 में 1 जगाः । वैज्ञानिक [२] । अमानन--सज्ञा पुं० [सं०] २० ‘अमानता' (को०] । अमानी-fi० [न०] १ मा १ प ग f"; 1 पत्र । पैगा- अमानना---सशा जी० [सं०] अनादर । अवज्ञा । तिरस्कार । अपमान चिक 1 ३ मानवी शक्ति वा । '771fr।। । [को०] 1 अमानुषीय--- वि० [२०] » 'मनु' । - अमानव-वि० [सं०] मानवेतर [को०] । अमान्य---वि० [१०] माननीय । - [६०) । अमानस्य–सुझा पु० [सं०] पीडा । दु ख (को०] । अमान्यता---ज्ञा दी० [न०] 1 मानना । । अमानस्य–वि० पीडित । व्यथित । दुखित (को०)। अमाप-वि० [f०] १ दिन में परिभाग अदा न हो म । अमाना'----क्रि० अ० [सं० श्रा-पूरा पूरा + मान = माप] १ पूर । अपरिमिन। ३०--प्रगर के उप उन उ ? ६ नही, उठने । पूरा भरना । समाना। अँटनी । जैसे—इस बरतन में इतना वगूरे व अति ही नाप ।।-भृग ५०, पृ० २१ २ पानी नही अमा सकता (शब्द०)। उ०--मुनि गुनि मन हुनु वेद । वन । ३० --माया नहीं प प धाः भवनि हो । मान के प्रेम उसँग न अमाइ ।--तुलगी प्र०, पृ० ८३ । २ या मुग्ना अमाप दृगनि दे1ि वा. हैं !-2८।०,०१५ । फुनना । उमडना । इतनः । ३०--करि कछ जान नृभिमान अमापनीय-प० [न०] जिरो नाप न गई जा 7 157प{फ०] । जान दे है कौसी मति ठानी। तन, धन जानि जी में जुग छाया अमापित---वि० [१०] नो TT न च । जि: । माग ने दृ भवति कहा अमानी 1-मूर (शब्द॰) । । हो [३०] । अमाना---सज्ञा पु० [सं० अयन] वखार का मुह । मन्ने की कोठरी अमाप्य–वि० [न०] प्रमादय ( ।। | का द्वार । आना। अमाम -वि० [हिं० प्रम पि] वह 7 । ३०-- र प्राम अमानित—वि० [सं०] १ जिसे माना न गया हो। २ जि का मान न उमगे मेना अमाम !---रा० "०, पृ० ७६ । हुआ हो । असमानित । अमामसी–ना जी० [न०] 'प्रमावन्या' [] । अमानितसेना--सज्ञा स्त्री० [सं०] बहु सेना जिम की वीरता के उप- | अमामा-सा पुं० [अ० इमानन प्रमामा- नी । पद पर नि पदर नक्ष्य में उचित प्रदर मान न किया गया हो और जो इ7 टोपी रहती है। उ०—ोई टी टाप उन1 है । वर्षे कारण असंतुष्ट हो। फिर ग्रमामा है।--म० मं०, पृ० २।। विशेष--कौटिल्य ने ऐमी सेनाको विमानिन (जिस की बेइज्जती अमा मसी-सा जी० [२०] दे० 'मावा ' (०] । | की गई हो) मैना से उपयोगी वहा है, क्योकि उचित मान | पाकर यह जी लगाकर नड सकती है। प्रेमाय (0--वि० [न०] १ दे० 'माया । २ अपरिनाम [को०] । अमानिता-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] नम्रर । मान का न होना को०] । अमाय-सी पुं० परब्रह्म यो०]।। अमानित्व----मज्ञा पुं० [सं०] गर्व राहित्य । मानिन । चिो०] । श्रमाया--वि०नि०] मापरिहित । निन्न । २ नि म्याई । निष्क- पट । निश्छन । उ०—ज मोरे मन र म र य । प्रीति अमानिया--सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का पटमन । गम पद का मन अमाया ।—गानन, ६५! ८ ! अमानिशा -सच्ची जी० [सं०] अमावस्या की रात्रि । अधकारयुक्त रात [को०)। अमाया’--सा श्री[स०]निपटना । निश्छता । मानदारीक ०}} अमानी--वि० [स०] निरभिमान । घमइरहित } अह कारशून्य । अमायिक--वि०स०] १ दोगरहित 13 मापारहित । ३ श्टिन । । उ०—मोरे प्रौढ तनयं सम ग्यानी। वाग्नक नुत मम दास निप्पट । ४ सच्चा । । । अमानी ।--मानस, ३1३७ 1 अमायी---[म० अमायिन्] ६० ‘अमायिक' [को०)। अमानी-सच्चा स्त्री॰ [स० आत्मन्] १ वह भूमि जिमझी जमीदार अमार--- सा पुं०[फा० अंबार] ग्रन्न रखने की घेरा । अरहर के सरकार हो और जिसका प्रवध उसकी ओर से जिले का फल सूये डठलो या सरकडो की टट्टी गाई र बनाया है जो घेरा क्टर करे । खास । २ जमीन या कोई कार्य जिमका प्रबध जिसे ऊपर मे छा देते हैं, और जिसमें ऊपर नीचे भुइ देवर अपने ही हाथ में हो, ठीके पर न दिया गया हो। ३ नगान वीच में अनाज रखते हैं । २ राशि । चहुतायत । ढेर । की वसूली जिसमे विगडी हुई फसल का विचार करके कुछ उ०—जर जेवर का मार लगा रहता होगा उसके यहाँ ।--- कमी की जाय । नई०, पृ० ३६ ।। अमानी-संज्ञा स्त्री० [स० अ+हिं० मानना] मनमानी पस्दा। अमार..-सज्ञा पुं० [अ०] अमरण [को०) । अपने मन की कार्रवाई । अधेर । अमीर ---सच्चा पुं० [हिं०] दे० 'अमरी' । ।