पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३६०

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| अमलौसमली २६१ अमानत पेड जो हिमान के दक्षिण गढवान से प्रासा न त क होता अमास’--मझा पुं० वह जो मान न हो । माम ने इतर पदार्थ (को०)। है। करमई । गौवटी । अमामक--वि० [सं०] अमाग [को०] ।। अम नीममली -वि० [हिं०] उ टी भीवी । उ० – मनी ममी अमों--प्रव्य० [हिं० ए + फा० मियाँ] मुमतमान में बातचीत में प्रारती । जाई बघेरइ दियो मिलाण ---नी० रामो०, पृ०१२) प्रचलित एक मबोधन । मियाँ । अरे यार । अमलुनियाँ:--सधा पुं० [देश ०] वर पतवार । एक तरह की धाम जो अमा'----मशा स्त्री० [सं०] १ अमावस्या । २ अमावस्था की जा । छतों में अपने ग्राप उग जाती है । स्कदपुराण के अनुसार बद्रमा यी मन्नी कला जिसका अर्य अमलूक -सज्ञा पुं० [सं० अम्ल] एक प्रकार का मेवा अौर उपका पेड। और उदय नहीं होता । ३ उर। ४ मत्वं नोक । हिजोक । ५ विशेप-वह अफगानिस्तान, विलूचिस्तान, हजारा, कशमीर श्रीर नौपायों की अखि पर की वतीरी जो अशुभ गमगी जाती हैं। पजाव के उत्तर हिमालय की पहाडियो पर होता है । इसमें से अमा-वि० मापरहित । अमाप [को०] । वहुत सा रस बहता है जो जमकर गोद की तरह हो जाता है। अमघौन--संज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार का धान जो अगहन में तैयार इपका फन ताजा और सूखा दोनो खाया जाता हैं । मूखा फल | होता है । काबुली लोग लाते हैं। इसे मलूके भी कहते हैं । अमाजुर--संज्ञा स्त्री॰ [म०] अपने पिता के घर पर ही बडी और बूढी | अमलोनी-संज्ञा स्त्री० [सं० अम्ललोणी ] नोनियाँ घास । नोनी ।। | हो जानेवारी अविवाहिता स्त्री [को०] । विशेष—इसकी पतियां बहुत छोटी छोटी, मोटे द7 की और पाने अमातना)---क्रि० स० [सं० श्री मन्त्रण, प्रा० श्रामण] ग्रामनित में खट्टी होती हैं। लोग इसका साग बनाकर खाते हैं जो अग्नि | करना। निमंत्रण देना । न्योता देना। ग्राह्वान करना । वर्धक होता है। कहते हैं कि इनके रम में धतूरे का विप "बुजाना। उ०--ह्यो महरि नो करी चैडाई हम अपने उतर जाता है । यह वडो पतियो का भी होता है जिसे 'यु नफा घर जात । तुमहू करौ भोग मामग्री कुलदेवता प्रमाति । कहते हैं । —सूर (शब्द॰) । अमल्लका--वि० [अ० मुतलक] बिलकुन । पूरा पूरा । ममूना । ज्या अमातृ--वि० [सं०] माताविहीन । बिना माँ का (को०] । को त्यो । अमात्य--संज्ञा पुं० [सं०] मत्री 1 वजीर । अमवा –संज्ञा पुं० [देश०] दे॰ 'ग्राम' । ३०-- चढि अमया की अमात्र'- वि० [सं०] १ मात्रारहित । बेहद । अपरिमित ।२ अपूर्ण। डारि, अकेली धन का रे खडो --धरम० पृ० ४३ ।। अममग्र [को०] । ३ अरमिक (को०) । । । अमस-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. कान। समय । २ रोग । ३ मुखा [को०] । अमात्र’-सज्ञी पु० १ माप या इयत्ता का प्रभाव । वह जो माप नही अमस–वि० निर्वाध । अज्ञानी । हैं । २ परब्रह्म [को०] । । अमचूल-सज्ञा पु० [देश०] एक पतला पेड़ जो नीलगिरि पर बहुतायत अमान'–वि० [सं०] १ जिमका मान या अदाज न हो । अपरिमित । से होता है । परिमाणरहित । इयत्ताशून्य । उ०-गायागुन अनानीत अमाना विशेप-इस वृक्ष की डालियाँ नीचे की ओर झुकी होती है । वेद पुराने भनता ।—मानस, ११६२ । २ बेहद । बहुन । दक्षिण में कोकण, कनारा और कुर्ग के जगलो मे भी यह होता उ०—प्राकाम विमान अमान छये । हा हा मव ही यह शब्द है। इमको फल खाया जाता है और गोवा मे बिंदाव के रये ।--केशव (शब्द॰) । ३ गर्व रहिन । निरभिमान । नाम से विकता है । पर यह, वृक्ष उस तेल के कारण अधिक मीधाराादा । ३०-सदा रामप्रिय होब तुम्ह मुम गुन भवन प्रसिद्ध है जो उसके वीज मे निको ना जाता है और तेल को कम अमान । कामरूप इच्छामरा ज्ञान विराग निधान ।--मानस, का मक्खन कहलाता है। बाजारों में यह तेल जमी हुई सफेद ७i११३ । ४ मानशून्य । अप्रतिदिइन । प्रनादन ! अात्मालबी बत्तियो या टिकियो के रूप में मिलता है जो माधारण भिमानरहित । उ०--(क) अगुन' प्रमान जानि तेहि दीन्ह गर्मी से पिघल जाती हैं । यह वर्धक और सक्रोचक समझा पिता वनवास 1-मानस, ६.३० (क) । (ख) अगुन अमान जाता है तथा सूजन आदि में इसकी मालिश होती है। इससे । मातु पितु होना । उदासीन सब सय छोना । मरहम भी बनाया जाता है । मानस, १५६७ ।। अमसूण-वि० [सं०] जो मसृण न हो । कठोर । कडा (को०]। अमान-सज्ञा पुं० [अ०] १ रक्षा । वचाव। २ शरण । पनाह । | अमहर--सच्चा सौ० [हिं० ग्राम = अम+हर (प्रत्य॰)]छिले हुए कच्चे ३. पाति । ३०--माँगने से अगर मिले हमको बयान जी की शाम को सुखाई हुई फक। यह दाल और तरकारी में पडती । अमान तो माँग' 1--चुभते०, पृ० ५४ ।। है । इसे कूटकर अमचूर भी बनाते हैं । अमानत-सच्चा स्त्री० [अ०] १ अपनी वन्नु को किसी दूसरे के पान || महुल -सा पुं० [सं० = नहीं +१० महत] १ विना घर एक नियत काम्ने तक के लिये रखना २ वह वस्तु जो दूसरे का । अनिकेत । २ जिसके रहने का कोई एक स्थान न हो । के पास किमी नियन पर अनित का न मर के लिये रख दी यापक । उ०+-मंत्ररी व प्रौर मग जनक जल शैद सहमें मुब जाय । थारी । घरोर । उपनिधि 1 ३, 7 नि का काम दे। पाना 1 हैं न गनौं अनंत कोटि नै प्रम इन मा दिवान-। पद (फो०)। ४. शांति । अनेन । फनीर (शब्द॰) । यी० ---सेनानतर्वाता= कोठी, का यह चाता frसने । अमोश-वि० [सं०] १. मासहीन । ३. दुर्ब २ । निर्वं न । समानत की रकन जन की जाती है। अनानता = ३६