पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३५९

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अमपित २९६ अमलौ' अर्मापत--वि० [म०] अमर्षी । क्रोधी [को॰] । अमलदारी--संज्ञा स्त्री० [अ० अमल +फा० दारी] १ अधिकार । अमर्षी--वि० [अ० अर्मापन्] [वि॰ स्त्री० अर्मापणी] क्रोध। असहन दखल । शासन। २ रुहेलखड में एक प्रकार की काश्तकारी | मील 1 जल्दी बुरा माननेवाला ।। जिसमे असामी को पैदावार के अनुसार लगाने देना पड़ता है। अमल--- वि० [म०] १ निर्मन । स्वेच्छ । २ निर्दोष । पापशून्य । कनकूत । । ३ उज्वल । प्रकाशित । चमकीला (को॰) । अमलपट्टा--संज्ञा पुं० [अ० अमल +हिं० पट्टा] वह दस्तावेज या अमल”–सुज्ञा पु० १ गवरक । अभ्रक। २ स्वच्छता । निर्मलता अधिकारपत्र जो किसी प्रतिनिधि या कारिदे को किसी कार्य (को०) । ३ परब्रह्म (को०)। मे नियुक्त करने के लिये दिया जाय ।। अमल---संज्ञा पुं० [अ०] १ रुपबहार। कार्य । आचरण । साधन । अमलपतत्री--सज्ञा पु० [स० अमलपतत्रिन्] अगली हस [को०)। क्रि० प्र० करना --होना। अमलवेत--संज्ञा पुं॰ [स० अम्लवेतस्] १ एक प्रकार की लता जो यौ--अमलदरामद = कार्रवाई । पश्चिम के पहाड़ों में होती है और जिसकी सूखी हुई टहनियाँ २ अधिकार । शासन । हुकूमते । उ०—हम चौधरी डोम । बाजार में बिकती हैं और दवा में पड़ती हैं। २ एक मध्यम सरदार । अमल हमारा दोनो पार -भारतेंदु ग्र०, प्र० भा०) प्रकार का पेड जो बाग लगाया जाता है । पृ० २६२।। विशेष—इसके फूल सफेद और फन गोन, खरबूजे के समान, पकने ' यौ०--अमलदखल । अमलदरामद = जाब्ते की कारवाई । पर पीले और चिकने होते हैं। इस फT की खटाई बडी तीक्ष्ण अमलदारी = राज्थे । हुकमत । अधिकार । अमलप = अधि होती है। इसमे सुई गने जाती है। यह अग्निमदीपक भोर कारपत्र । पाचक होती है, इस कारण चूरण में पड़ता है । यह एक प्रकार ३ नशा । उ०---किई ठाकुर अलग बहुउ, यावत्र अमल का नीबू है। । । । काँह }---ढोला०, ६०, ६२८ | अमलबेद-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अमलवेत' । उ०----चूरन अमलवेद यौ॰—अमलपानी = नशा वगैरह । का भारी ।' जिसको खाते कृष्ण मुरारी ।--मारतेंदु ग्र०, ४ अादत । वान । टेछ । व्यसन । नत । उ०—ानद कद भा० १, पृ० ६६२ । चद मुख निसि दिन अवलोकत यह अमल परयो ।—सूर० अमलबेल-संज्ञा स्त्री० [अमल ? +f० वेल] एक प्रकार की लता । ( शन्द०)। क्रि० प्र०—पडना । उ०—हरिदसन अमल परयो लाजन विशेष--यह भारत के प्राय सभी गरम प्रदेशो में पाई जाती है । लजानी ।—सूर (शब्द॰) । वर्षा ऋतु में इसमें नीलापन लिए हुए सफेद रंग के सुदर फूल ५ प्रभाव । ग्रसर । उ॰---अभी दवा का अमल नहीं हुआ है। लगते हैं। इसकी पत्तयाँ फोडो पर उन्हें पकाने के लिये (शव्व०)। ६ 'भोगकाल । समय । वक्न । उ०--अव चार का बाँधी जाती हैं। अमल है (शब्द०)। अमलमणि-संज्ञा पुं० [सं०] स्फटिक । विल्नौर। अमलकोची--मज्ञा त्री० [देश ०] कने की जाति का एक प्रकार का अमलरत्न--संज्ञा पुं० [सं०] स्फटिक (को॰) । वृक्ष जिसकी फरियो से चमडा सिझाया जाता है । वि० दे० अमला–सद्या स्त्री० [सं०] १ लक्ष्मी २ सात ती वृक्ष । ३ पता कुती'। अविला। अमलगुच्छ---ज्ञा पुं० [भ] पद्मकाष्ठ या पद्म नामक वृक्ष । वि० दे० अमला--मज्ञा पुं० [स० मिलक] अवता । | ‘पदम' । | अमला—सज्ञा पुं० [अ० अमलह] कई वारी । कचहरी या दफ्तर में अमलता-ज्ञा स्त्री० [सं०] १ निर्मलता। स्वच्छता । २ निर्दोपतः । काम करनेवाला । कार्याधिकारी । उ०--फूल न जौ तु ह्व अमलतास---पज्ञा पुं० [म० अम्ल] एक पेड़ जिसमे डेढ दो फुट लवी | " । गयो राजा बाबू अमला जज्ज ।--वारतेंदु ग्र०, ११५५१।। | गोल गो न फनियाँ लगती हैं। || यौ०---- अमलाफला (अमला फैल) :- कचहरी के कर्मचारी । पर्या०--रग्वघ । घनबहेडा । किरयरी ।। | अमलामाजी = कर्मचारियो को न देकर वशीभूत करने विशेष---इमकी पत्तियाँ सिरिम के ममान और फुन सन के भमान । की क्रियः । । पीले रग के होते हैं । फनियो के ऊपर का छिलका कडा और अमला)-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अम 3' । उ०—ाठ पहर अम ।। भीतर का गूदा अफीम की तरह चिपचिपा, खाने में कुछ रा माँता हेली देता डोलौ !--घनान, पृ० ४४५ । मिटम लिए हुए खट्टा और कहा और बहुत दस्तावर होता अमलातक-..-संज्ञा पुं० [सं०] अमनवेल (को०] । है । इसके फूलो का गुलकद बनता है जो गुनाव के गुलकद से अमलानक- सझा पुं० [सं०] अमनुबेत [को०] । अधिक रेचक होता है । इसके बीजो से के कराई जाती है। अमलिन--- वि० [स] १ स्वच्छ । नि मैन । निर्दोष । अमलतासिया-वि० [हिं० अमलतास +इया (प्रत्य०)] अमलताम के अमली.---वि० [अ० अमल +फा० ई (प्रत्य०)] १ अमन मे आने फू त्र के न मान हल्के पीले रग का । हल्का पीला ।, गधकी। वाला व्यावहारिक । २ अम न करनेवाला । कर्मणय । ३ अमलदार-संज्ञा पु० [अ० अमल + फा० दार अधिकारी । शासक । नशेवाज । हुमत करनेवाला । अमली’---सज्ञा स्त्री० [सं० अलिका]१ ,इमली । २ एक झाड़ोदार