पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३५८

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अमरा २६६. अमर्षण अमरा'–सद्या स्त्री॰ [सं०] १ इव । २ गुर्च। निनोय । ३ से हुई। अमरीप ---सज्ञा पु०[हिं०] दे० 'अबरीप' । उ०----दुरवामा अमरीप थूहर । ४ नीली कोयल । बडा नील का पेड़ ।। ५ चमड़े की | सतायौ ।---पोद्दार अभि० ग्र ०, पृ० २४० । भि“ली जिसमें गर्भ का वरचा निपटा रहता है । प्रांवर ! अमरु-मज्ञा पु० [सं०] एक राजा जिसने ‘अमरुशतक' नामक शृ गार जटायु । ६ नाम का नाल जो नवजात बच्चे को लगा रहता का ग्र थ बनाया था। ।। है । ७ इंद्रायण । ८ बरियारा ।बरगद की एक छोटी जगली अमरू-मज्ञा पुं० [अ० अहमर = लाल] एक प्रकार का रेशमी जाति । ९ घीकुमार । १० इंद्रपुरी। कपडा जो काशी मे बुना जाता है । अमरा -संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अमडा' । अमरुत-सज्ञा पु० [फा० अमरूद, तु० मुरूद] एक पेड जिसका घड अमराई---मज्ञा स्त्री०म० आम्रराजि]ग्राम का बाग । ग्राम की बारी। अौर टहनियाँ पतली और पत्तियाँ पाँच या छ अगुले लबी । २ नृपवन । उद्यान । उ०—वह हरी लताग्रो की सदर अम होती है। राई --कानन०, पृ० ३६ ।। विशेष—इसका फल कच्चा रहने पर कसैला प्रौर पकने पर मीठा अमराऊतज्ञा पुं० [हिं०]३० ‘अमराव' । उ०—देखी सद राउन होता है और उसके भीतर छोटे छोटे बीज होते हैं। यह फल | अमराऊ !--जायमी ग्रं॰, पृ०, ११ । - रेचक होता है । पत्ती और छाल रंगने तथा चमडा मिझाने के अमराचार्य----सशा पु० [सं०] देवताग्रो के प्राचार्य या गुरु बृह काम आती है। मदक पीनेवाले इसकी पत्ती को अफीम मे | स्पति [को०)। । मिलाकर मदके बनते हैं। किसी किसी का मत है कि यह पेड अमराद्रि--पंज्ञा पुं॰ [म.] देवता का पर्वत । मुमेरु को०] 1 अमरीका से आया है । पर भारतवर्ष में कई स्थानो पर यह अमराधिप--संज्ञा पुं० [सं०] इद्र (को०) । । जगली होता है । इलाहाबाद और काशी का यह फन | अमरापगा--सज्ञा नी० [म०] देवनदी । गंगा (को०३ ।। प्रसिद्ध है। अमरापति-मज्ञा पुं० [स० अमरपति इदै । उ०-~-अमरापति पर्या०----(मध्य भारत, मध्यप्रदेश तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश) | चरनन वर नोटन --मूर०, १०६.५० । जान । विही । सपड़ो। (राजस्थान) जायफ। (बगाल) अमराय--मज्ञा स्त्री० [हिं०] अमराई । उद्यान । उ०--ग्रास पाम । प्यारा। (दक्षिण) पेरूफन् ।' पेरुक । (नेपाल तराई) रुन्नी । । अमर्यं बरारी । 'जहँ नग फुल निती फुलवारी ।-नद० ग्र० (प्रवच) मफरी । अमरूद । (तिरहुत) लताम् । | पृ० ११ । । । । - । । अमरूद-.-मज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अमरूत'। अमरारि--संज्ञा पुं० [१०] देवता प्रो के, शत्रु । राक्षस (को॰) । अमरेश----मज्ञा पुं० [सं०] देवताग्रो का राजा । इद्र । | " यौ०--अमरारिगुर, अमरारिपूज्यन्त्य गुरु । शुक्र । अमरेश्वर--संज्ञा पुं० [स०] अमरेशः । इद्र । अमरालय-सज्ञा पुं० [सं०] देवता का स्थान । स्वर्ग। इद्रनोक। अमरैया--सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'अमराई । अमराव:-सज्ञा पुं० [सं० स्रराजि] दे० 'अमराई', अमरौती---संज्ञा स्त्री० [हिं०] अमरता। अमरत्व । उ०—जनम हुयी | अमरावती–मना श्री० [म०] देवत। ग्रो की पुरी। इद्रपुदी। सुरपुरी। . है कायर घर तो घर बैठे अमरौती खाय ।—काले०, पृ० २४ । || श्रमरितG--नज्ञा पु० [हिं०] दे० 'अमृत' । उ०—प्रमरित पय नित अमर्य–वि० [स०] जो मत्यं न हो। अविनश्वर । अमर को०] । । त्रवहि वच्छ महि थे मन जावहि |--कपी०, पृ० ७२ । यौ॰—अमर्त्यभुवन = देवलोक । अमत्यपगा=गगा । | अमरी-मज्ञा स्त्री० [म०] १ देब दा की स्त्री । देवकन्या । देवपत्नी। अर्मादत--वि० [सं०] १ जिसका मर्दन न हुआ हो । जो मला न २ एक पेड़ जिससे एक प्रकार का चमकीला गोंद निक नना गया हो । बिना मला दला । जो गिजा मिजा न हो। २ जो |: है। मज । मग । अनन् । रियामाल !! | दवाया या हराया न गया हो। अपराभूत । अपराजित। विशेप---इम गोद को मुगा के लिये जाते हैं। मथाले लोग | अमर्याद-वि० [म०] १ मर्यादाविरुद्ध । अव्यवस्थित । बेकायदा । इमे खाते भी हैं। इसकी छाल से रग बनता है चमडा | २ विना मर्यादा को । अप्रतिष्ठित । ३ सीमारहित । असगत सिझाया जाना है। लकडो मकान, छकडे अौर नाव बनाने तथा | आचरण करनेवाला (को०) । जाने के काम में आती है। इसकी डालियो ने लाही भी अमर्यादा- संज्ञा स्त्री० [सं०] अप्रतिष्ठा । बेइज्जती । मर्यादा या सीमा | निकलती है और पत्तियो पर सिंहभूम अादि स्थानो मे टसर - का न होना । असगत आचरण । रेशम का कीड़ा भी पाला जाता है । अमर्प सज्ञा पुं० [सं०] [वि० अर्मापत, अमर्षी] १ क्रोध । रिस । २. अमरी’ --सज्ञ। ग्न्नी० हठ्यागियो की एक क्रिया । ३०--बजरी। करता वह द्वेष या दु ख जो ऐसे मनुष्य की कोई अपकार न कर सकने अमरी रोपं श्रम करता वाई। भोग करता जे व्यंद राप ते के कारण उत्पन्न होता है जिसने अपने गुणो का तिरस्कार' गोरप को गुर'माई ।----गोरख०, पृ० ४६ । किया हो । ३ असहिष्णुता । अक्षमा । ४ तैतीस सचारी भावो अमरीकन---वि० [हिं०] दे० 'अमेरिकन"। । मे से एक (को०) । अमरीका----सज्ञा पुं० [हिं०] ६० 'अमेरिका' । । अमर्पण--सज्ञा पुं० [म०] कोछ । रिम् । अहिण ता । | अमरीकी---वि० [हिं०] ३० ‘अमेरिकन' । ' अमर्पण’---वि० क्रोधी । असहिष्ण [को०] ।