पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३५६

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| গায়ি २८७ अमर लगते हैं जो अचार, चटनी प्रादि के काम में आते हैं। उक्त अमनिया'-सज्ञा स्त्री० [हिं०] भोजन बनाने की क्रिया । रसोई पेड का फन । अमारी। पकाना । (सानु की परि०)। - अमणिव--वि० [सं०] रत्नविहीन [को०)। अमनुष्य-सज्ञा पुं० [सं०] १ जो मनुष्य न हो । अमानव । २ अमत--संज्ञा पुं० [स०] १ मन का अभाव । असमति । २ ।। ३ । राक्षम। दैत्य (को॰] । मृत्यु १४ वाल । समय (को०)। रेण । धुलि (को०)। अमनुष्य--संज्ञा पुं० १ अमानवीय । २ जहाँ मनुष्य अधिक प्राता जिमका अनुभव न हुआ हो या न हो सके। २ अज्ञात - जाता न हो [को०)। || ३ अस्वीकृत [को०] । ... अमनेत--वि० [अ० अमन + हिं० ऐंत (प्रत्य०)] अमन करने || अमति--सज्ञा पु० [म०]१ समय । २ चंद्रमा । ३ प्रकार 1 ढाँचा ।। वाला । शासन करनेवाला । उ०—अपमिह अमनेत इक खल ४ अभाव । ५ वुरा या निकृष्ट युक्ति [को०]। खडन वलवड । सुजान०, पृ० ५।। | अमति-सुज्ञा स्त्री० १ अज्ञान । अचेतना । २. ज्ञान, लक्ष्य या दूर- अमने ---सर्व० [पु० अस्म, प्रा० हुम्म,अम, गुज०मन्ने मुझे] दशिता का अभाव [को०] । १. हम को । मुझको । २ हमने । मैंने । उ०——ाप अप्रछन अमति--वि० १ गरीव । दरिद्र । २ दुष्ट । वदमाश (को०] । अमने देखे, अपिणपो न दिखाडे रे ।-दादू०, पृ० ५३४ । | अमतेपदार्यता-सझा जी० [सं०] साहित्य में एक प्रकार का शब्ददोप अमनैक-सज्ञा पुं॰ [न० आम्नायिक= वंश का श्रेयवा स० अात्मन्, जहाँ दूमस अर्थ प्रकृत के विरुद्ध हो । प्रा० अप्पण, गुज० अमे, अने, असो, हि० अपना, अपने] १ अमत्त---वि० [म०] १ मदरहिन । २ विना घमड का ।।३ घशात । अवध में एक प्रकार के काश्तकार जिन्हें कुलपरपरा के कारण | जिसका मस्तिष्क ठीक हो । • लगान के रावध में कुछ विशेप अधिकार प्राप्त रहते हैं । २. अमत्ति-सुज्ञा स्त्री० [स० अ + मति] अमति । दुर्मति । कुमति । सरदर। हकदार । दावेदार । अधिकारी व्यक्ति । उ०—जेठे हीनमनि । उ०:--अत मत्ति सो गति । अतजा मत्ति प्रम पुत्र सुभट छवि छाए । नाम सार वाहन जे गाए । जानि । चिय 1-पृ० रा०, ३११०१ । । जुद्ध अमर्नेक अढाए । खेनहरि ता समय पठाए ।—लाल ० थमत्सर'-सज्ञा पुं० [सं०] मत्सर का न होना । मात्सर्य का अभाव[को०] । (शब्द॰) । अमत्सर-वि० शत्रुता न रखनेवाला । मात्सर्यहीन [को०] । अमनैक--वि० अधिकार जतानेवाला । ढीठ । साहसी । उ०—(क) अमद-वि० [सं०]१ जिसे मद न हो। मदरहित । अभिमान रहित ।। दौरि दधिदान काज ऐसो अमनैक तहाँ ग्राी वनमाली क्राइ २ दुखी । ३ गभीर [को॰] । बहियाँ गहत है ।—पद्माकर, (शब्द०) । (ख) जाति हाँ गोरस अमद’---सज्ञा पुं० [अ०] विचार । सकल्प [को०१ । । वेचन को ब्रज वीथिन धूम मची चहुधा ते । वाल गोपान सवै अमदन्--क्रि० वि० [अ०] जानबूझकर । इच्छापूर्वक । । अमनैक हैं फागुन में वचिहौं री कहाँ ते ।--बेनी (शब्द०)। अमदान- सज्ञा पु० [सं०] | अमनेकी-सज्ञा स्त्री० [हिं० अननैक मनमाना ग्राचरण । ढीठ अमधुर-वि० [सं०] १ जो मधुर न हो कटु । अरुचिकर ।। व्यवहार । अमनैकपन। उ०--चचल चोखे चाल अति नही अमधुर-- संज्ञा पु० सगीतशास्त्र के अनुसार वाँसुरी के सुर के छह देत पर्ल चैन । कमनैती मीखी नई श्रमनैकी इन नैन |--स० दोपों में से एक । सप्तक, पृ॰ ३५८ । अमन'- संज्ञा पुं० [अ० अम्न] १ शाति । चैन । आराम ! इतमीनान । अमनोज्ञ----वि० [सं०] १ २ रक्षा। चाव। । 'अवकर [को॰] । यौ०---अमनअ मान = शाति । सुरक्षा । मुव्यवस्था । प्रेमन चन= अंमनोनिवेश-सज्ञा पुं० [सं० अ +मन+निवेश] 'मनोनिवेश का | सुख । श्राराम् । शाति । अमनपसद - ग्रामपंसद । शातिप्रिय। | न होना । असावधानी । उ०---किंतु ऐसा उनके अमनोनिवेश अमन--संज्ञा पुं० [म० अमनस्] १ अनुभूति का न होना। अनुभूति से हुआ है ।--ॐठ० उपो) पृ०६ । का अगाव । २ ज्ञानाभाव [को०] । अमनोरथ---वि० [सं०] मनोरथशून्य । इच्छारहित । उ०—-अब त के अमनस्क- वि० [स०] १ मन या इच्छा से रहित । उदासीन । २ मैं उक्त कार्य की पूति से अमनोरथ रहा हैं।-ठेठ० (उपो०), उदास । अनमना 1 अन्यमनस्क। दे० 'अमना' । पृ०, १। अमना--वि० [सं० अमनस] १ मन या इच्छारहित । उदासीन। अमम'-वि० [म०] १ ममतारहित । अहकारशून्य । २ अर्थअन्यमनस्क । २ उदास । ३ स्नेहरहिन । ४ वेफिक्र । ५ विहीन । अलिप्त । मोहरहित (को॰] । । विंटन अनमना । ६ मन पर नियंत्रण न रखनेबीना T ७ नाममझ असम-सज्ञा पुं॰ बारहवें भावी जैन तीर्थंकर कौ०1। मूर्ख । (को०)। अमर"--वि० [स०] १ जो मरे नही । चिरजीवी । २ शाश्वत । शुमना--सज्ञा पुं० परब्रह्म [को०] ।। अविनाशी ।। अमनाक्--ग्रव्य ० थोडा नही । बहूत । अधिक [को०] । अमर-सज्ञा पुं० [स०] [स्त्री॰ अमरा, अमरी] १ देवता । • पारा। अमनिया--- वि० [सं० श+मल अथवा कमनीय ?] शुद्ध । पवित्र । ३ हुडजोड का पेड। 4 गमरकोश । ५ निगानुशासन नामक अछूना । उ०--कवहि अमनिया हलुवा खावे । प्रसिद्ध कोश के कर्ता अमराह जो विक्रमादित्य के नवरत्नो पलटू०, पृ० ११०। मे से एक थे। ६ मरुद्गणो मे से एक । उनचास पवनों में से