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अभ्रात - चाह ,कामना

_______अभ्रात चाह कामना_________

अंभ्रंप अमेंड | अमडीहत (चावल), एन । नज्जाविहीन अभ्रपथ---भज्ञा पुं॰ [स०] १ वायुमंड 1 1 5 गुदरा (को०] । अमगलचार -सज्ञा पुं० [सं० अ+हिं० मगलवार] रुदन ।' विनाप अभ्रपिशाच-सज्ञा पुं० [१०] राहु को०] ।। उ०—करहि अमल चार, कहाँ गए राजा हो-पलटू०, अन्नपुष्प--- संज्ञा पुं० [सं०] १ वैत। २ प्रकाश कुसुम । अम भव बात। भ० ३, पृ० ७४ ।। पानी [को०]।। अमगल्य---वि० संज्ञा पुं० [सं० अमड्गल्य] दे० 'अमग 3' को॰] । अभ्रभेदी-वि० [सं० अभ्रभेदिन्] प्रकाश को भेदनेवा ना । गगन- अमड-वि० [सं० अमण्ड] १ मइनरहिन । मज्जाविहीन । अनलकृत । { चुवी को०] । | २ माँड रहित (चावल)। । अभ्रम-वि० [सं०] जिसे भ्रम न हो । भ्रमरहित (को०)।। अमड-डी० पुं० रेड का वृक्ष । एरड दुम [को०] । अभ्रम--संज्ञा पु० भ्रम का अभाव । स्थिरता । दृढ़ता (को०] । अमडित--वि० [सं० अनण्डित] ग्रन नकृत । दे० 'अमड [को०] । अभ्रमासी--सज्ञा स्त्री० [सं०] जटामासी [को०] । अमत) १--मज्ञा पुं० [सं० अमत्र प्रा० अमन] अमान्य मत। कुमत । अभ्रमातग---सञ्ज्ञा पुं० [० अभ्रमातङ्ग] ऐरावत [को०] ।। अनुचित विचार । उ०—इन अाकर्षे कज्ज विन, किनौ अप्प अभ्रमु-सज्ञा स्त्री० [सं०] पूर्व के दिग्गज की पत्नी । ऐरावत की। अमत--पृ० रा०, ६१४३ पत्नी को०)। | अमत--वि० [सं० अमित] अत्यधिक । उ०—राजन रखिय सब्य अभ्रमुप्रिय-मज्ञा पुं० [स०] ऐरावत बे)। | इह, वाढिय प्रीत अमत -पृ० ० (३०), पृ० २५० अभ्ररोह--सज्ञा पुं० [सं०] वैदूर्य मणि । लाजवर्त (को०] । अमत्र-वि० [सं० अनन्त्र] १ जो वेदमत्रो का अधिकारी नै हो । अभ्रमुवल्लभ-सज्ञा पुं० [सं०] ऐरावत [को०] । जैसे, स्त्री, शूद्र अादि । २ जिम में वैदिक मंत्रों की प्रविश्यकता अभ्रवाटिक--संज्ञा पुं॰ [सं०] अाम्रातक वृक्ष (को०)। न हो (कर्म) । ३ वेदमत्रो को न जाननेवाला । अवेदज्ञ । ४ अभ्रवाटिका–सज्ञा स्त्री॰ [सं०] अमिडे का वृक्ष [] । मत्र विहीन फिी०] । अभ्रात--वि० [स० अभ्रान्त] १ भ्रातिशून्य । भ्रमरहित । २ भ्रम | अमत्रक-वि० [सं० अमन्त्रक] पुं० 'अमत्र' [को०] । | शून्य । स्थिर । व्यवस्थित 1 अमत्रज्ञ---वि० [सं० अन्त्रिज्ञ] वैदिक मंत्रो को न जाननेवाला [को॰] अमद-वि० [ मे० अनन्द ] १ जो धीमा न हो। तेज । २. यौ-अभ्रातबुद्धि = जिसकी बुद्धि यिर हो। उतम् । श्रेष्ठ । स्वच्छ । सुदर। भला । उ॰--पूर० १० । अभ्राति--संज्ञा स्त्री॰ [सं० अन्नान्नि] १ भाति का न होना। स्यिरता। २०३। ३ उद्योगी । कार्यकुशल । चलता पुरजा । चतुर । ४. | अचचाता । २ भ्रम का अभाव । भूल चूक का न होना । कम नहीं 1 बहुत । अधिक को०] । अभ्रित' - वि० [स० अ + भूत] जो भरी न जा सके । अपूरणीय अमद-संज्ञा पुं० एक प्रकार का वृक्ष [को॰] । उ०-~-दूज वर वज्र पैठ जेहा धर। बिल अभ्रित सिंह थाने अम-वि० [सं०1 अपक्व । कच्चा [को॰] । पडि थिर।--पृ० रा०, ११४७ ।। अम--संज्ञा पुं० १ बीमारी का कारण । २ वोमारी। रोग । ३ अभ्रित- वि० [स०] बाद नो से वैका हुत्रा (को०)।। दाव । भार (को०) । ४ शक्ति । बेन (को०)। ५ भय । हर अभ्रिय- वि० [स०] १ वादनो से सबधित या वादल से उत्पन्न [को०] (को०)। ६ मेवक । नौकर। ७ प्राणवायु (को०) । ८ वह अभ्रिय -भज्ञा पुं० वि नली (को०]। स्थिति या अवस्था जो ग्रमित है। (को॰) । अभ्र--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ फावड़ा। कुदाल । २ नाव साफ करने के अम (१--सर्व [म० अनत्, प्रा० अन्ह] २० 'हम' । उ०—महाराणी लिये लकडी का एक नुकीला औजार [को०] । |, जसराज री या वोली तिवार। प्रथम प्रमा पजाहिए खर्ग अभ्रष-संज्ञा पुं० [स०] उपयुक्तता । भौचित्य कि०] । धाराजल घार । रा० रू०, पृ० ३३ ।। अभ्रोत्य-सज्ञा पुं० [सं०] बन्न [को०] । अम--सज्ञा पु० [म० आम्न, प्रा० अव, अ ।, म]. ग्राम । विशेप--ममम्त पदो में यह पाप पहने प्राता है, जैम, अमचूर, अभ्य--संज्ञा पु० [स०] नगा रहने वाला साधु । दिगरि साधु (को०] । अमरस, अमरती ।। अम्व'---वि० [सं०] १ महत् । विशाल । २ शक्तिशाली. ३. अम्का –सर्व [मं० अमुक ऐसा ऐसा । अमुक । फ नाना। भयकर [को॰] । अभ्व--सज्ञा पुं० १ विशालता । २ भयंकरता । ३. अत्यधिक अमग्ग(G)----सज्ञापु०[सं० प्रनार्ग प्रा० अम्ग] कुप य । कुराह।। कुंभार्ग । अमचुर- सझा पुं० [हिं०] दे॰ 'अमचूर'। शक्ति [को॰] । अमचूर--सज्ञा पुं० [हिं० अम= 'न' + सूर] सुखाए हुए कच्चे म अमखG-सज्ञा पुं० [स० अनिष] ६० 'आमिष' । उ०—वहरी । का चूर्ण । पिसी हुई अमहर। अमख हित पखवल, गहे कुलक असक गत । रा० रू०, १५३ । मुहा०—सूखकर अमचूर होना=बहुत दुबला होना। शरीर में अमग---वि० [हिं० मगन] १ न भागनेवाला । अयाचक । । हाड चाम भरे रह जाना। अमगल-बि०[स० अमङ्गल] १ मगल शून्य । अशुभः।, २ भाग्यहीन। अमज्जक–वि० [सं०] जिसमे मज्जा न हो । मज्जाविहीन (फो०] । म मागा कि०3 ।। अमडा-सहा पु० [ सै० अन्नातक, प्रा० अवार्डप ] एक पेड़ जिसकी अमगल-संज्ञा पुं० १ अकल्याण । अहि । अशुभ । दु ख । २. दुर्भाग्य , ; ; पत्तियां शरीके की पत्तियो से छोटी और सीको मे नग दी हैं। (को०) । ३ रेह को पेउ। रेड | एर, इसमें भी शाम की तरह मौर माता है या छोटे छोटे खट्टे फल