पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३५२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

|| अभ्यासादनं अँध्रनाग || क्रिया । २ गातार एयः ही विपये का बार वार चिंतन करने अभ्युदित--वि० [नं०] १ उगा हुआ । निपना हु। । इन्पन्न । में.मद या मस्तिष्क की एकाग्रता । प्रादुभूत । २ दिन चढे तक मोनेवासा । ३ सूर्योदय के मैमय || अभ्यासान-मज्ञा पुं० [अ०] शत्रु पर आक्रमण या सामना करना[को०)। उठकर नित्यकर्म न करनेवाला । ४. ममृद्ध । इन्नत ।। अभ्यासित -वि० [न० अभ्यास] दे० 'अभ्यसित' । उ०—ात दिना उत्सव रूप में मनाया हुअा [को०] । |, के मुने किए जे अति उधारित भाव, तिन मी कैसे वचो कहो अभ्युपगत--वि० [२०] १ पाम गया दुप्रा । सामने आया हु । मन कोटिक, करी उपाय |--मारोंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ५३६ । । प्राप्त । २ स्वीकृत 1 अगीकृत । मजूर किया हुअा। ३. ममान । अभ्यासी--वि० [म० अभ्यासिन्] [ी० अभ्यासिनी ] अभ्यास करने तुल्य को०] । | वा ना। नाधक 1. अभ्युपगम---सज्ञा पुं० [न०] [वि॰ अम्युपगत]१ पामें जाना 1 मामने अभ्याहत--वि० [स०] १ पीडित । ताडित । २ बाधित ।३। ग्राना या जाना । प्राप्ति । २ स्वीकार । ग्रगीकार । मजूरी ।३ दोपयुम्न को०) । वादा करना (को०)। ४ न्याय के अनुसार मिद्धात के चार भेद अभ्याहार--मज्ञा पुं० [सं०] १ निकट नाना । २ अपहरण । मे से एक । | चौर्य [को०] । - विशेप--विना परीक्षा किए किसी ऐसी बात को मानकर जिनका अभ्युक्त–वि० [सं०] किमी मदर्भ में कहा हुआ (को०] । खहन करना है, फिर उसकी विशेप परीक्षा करने को अम्युगम अभ्युक्षण-सज्ञा पुं० [न] १ सेचन ।। छिडकाव , मिचन ! २ सिद्धात कहते हैं । जैसे, एक पक्ष का अादमी कहे कि शब्द द्रव्य | मार्जन [को०] । है । इसपर उसका विपक्षी कहे कि अच्छा हुम थोड़ी देर के अभ्युक्षित---वि० [सं०] १ छिडेको हुआ। सिंचित ।। २ जिसपर लिये मान भी लेते हैं कि शब्द द्रव्य है पर यह तो बतलायो | छिडका गया हो। जिसका सिंचन हुआ हो । कि वह नित्य है या अनित्य । इस प्रकार मानना अभ्युपगम अभ्युदय--वि० [सं०] छिड कने योग्य । सिद्धानं हु प्रा। अम्युचित--वि० [सं०] परवरित । प्र वनित । नियमित कि०] । अभ्युपपत्ति-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ सहायता के लिये पहुचना । ३। अम्युच्चय---सज्ञा पुं० [सं०] १ वृद्रि । उत्यान ।मपन्नता 1 उत्कर्ष । दया । अनुग्रह । ३ अनुमोदन | वीकृति। मजूरी ४ । २ एकत्रीकरण (को०] । । । । । सीखना । ढांढस । ५ रक्षा । बचाव । ६ वादा [को॰] । अभ्युच्छय-सज्ञा पुं० [सं०]i• चढाव ! |उठान । २ सगीत में स्वर- अभ्युपाय---सञ्चा मी० [सं०] १' वादा । २ स्व त । ३. उपाय माधन की एक प्रणाली, जो इस प्रकार है-मा ग, रे म, ग प, माधन [को॰] । म घ, प नि, ध सा। अवरोही---माध, नि प,धे सा, प ग, अभ्युपायन-मज्ञा पुं० [सं०] १ भेट । उपहार । २ रिस्वत [को०] । म रे ग म । अभ्युपेत---वि० [सं०] १ पहुचा हुन । प्राया हुप्रा । २ वादा किया अभ्युच्छिन--वि० [म०] उनन । उठा हुम्रा 1 उच्व को०] । हुन । म्वीकृत कौ । अभ्युत्थान-- मज्ञा पुं० [सं०] [वि॰ अभ्युत्थायी, अभ्युत्थिन, अभ्युत्थेय] अम्युषित--वि० [म ०] साथ या फिट रहने । 1 । १ उठना । २ किसी बड़े के आने पर उसके प्रदिर के लिये । अम्युषित-सज्ञा पुं० साथ रहनेवाला [को०] । उठकर खड़ा हो जाना । प्रत्युद्गमन । ३ बढती । समृद्धि । अभ्यूढ-वि० [स०] ममीप लाया हुआ (को०] । उन्नति । गौरव । ४ उठान । र म । उदय । उत्पत्ति । । अम्यूष-ज्ञा पुं॰ [स०] १ एक प्रकार की रोटी । २३ प्रघा पका अभ्युत्थायी--वि० [सं० अभ्युत्थायिन्] [स्त्री० अभ्युत्यायिनी] १ उठफर डा होनेवान।। २ अादर के लिये उठकर खड़ा होने हुप्रा भोजन [को०] । वोगा । ३ उन्नति करनेवाला । ४ वढनेवाला । अम्यूह–सधा पुं० [स०] १ त है। वहम । २ निष्कर्ष । ३ अनुमान । अम्युत्थित--वि० [सं०] १ उठा हुआ। २ अादर के निये उठकर ४ विचार [को०] । खडा हुन्न।। ३ उन्नत । वढा हुा ।। अभ्रकष–वि० [सं० अभ्रष] गगन ६ वी । बडुन ॐवा [को॰] । अभ्युत्थेव -वि० [म०] १ उठने योग्य 1 २ जो ग्रभुत्यान के योग्य अभ्र कप-संज्ञा पुं० १. वायु । हुवा। २ पर्वत [को॰] । हो । जिसे उठकर श्रादर देना उचित हो । ३. उन्नति के योग्य । अन्न लिह'--वि० [सं०] गंगवी (को०] । अभ्युदय--संज्ञा पुं० [म०] [यि० अम्युदित, अम्युदवि F] १ = अदि अभ्र लिह-सच्चा पु० [सं०] हुवा [को॰] । ग्रहो का उदय । २ प्रादुर्भाव । उत्पत्ति । ३ इप्टना में । मनो- अश्र संज्ञा पुं० [सं०] १ मेघ । वादन । २ अरुण । ३ प्रश्न रथ की मिद्वि । ४ विवाह आदि शुभ अवर्मर । ५. वृद्धि । धातु । ४ स्वर्ण । मोना । ५ नागरनोवा 1 ६ गणित में बत। । उनति । तरक्की ६ ' अस्तित्व में आना। अविर्भूत | शून्य । ७ कपूर (को०)। ६ ब्रेन वेत्र (को॰) । होना [को०] ७ घर में सतान के जन्म लेने पर किया जाने अभ्रक----संज्ञा पुं॰ [सं०] अवरक । नोडर । दे० 'अव रक' । वाला नादीमुख श्राद्ध । [को०] । अभ्रकॅसत्व-सज्ञा पुं० [म०] इस्पात [को॰] । अभ्युदाहरण--संज्ञा पुं० [१०] कोटि के अनुसार किमी तथ्य को अन्नकूट---प्रज्ञा पुं० [१०] पर्जना र वाद फी चोटी (को०] । प्रमाणित करने के ये विपरीत तथ्य द्वारा दिया गया। अभ्रगगा--स। 'नी० [सं० अन्नगङ्गा] अाकाशग गई कि०] । उदारण । अन्ननाग-संज्ञा पुं० [स०] ऐरचित [को०] । -