पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३५१

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२६४ श्रेभ्यास अन्यनि--वि० [२०] १ जिसमें प्रार्थना की गई है । जिसमे विनय अभ्याकाक्षित--सा पु० १ मिथ्या अभियोग । झूठी नालिश । मुठ । । । । २. जो भा वटव: f 1या गया हो कि०] । दावा । इच्छा। ग्रभिन्नापा को०] । । । प्रन्य-० [३० प्रयन् [वि० पी० अन्र्त्यायनी] अध्ययन करने अभ्याख्यान-संज्ञा पुं० [सं०] मिथ्या अभियोग । झुठा दावा । काठी । । । निवेदन परनेवा । कि०] । नालिश ।। अन्य --२० [सं०] : 'प्रपर्यनीय' । अभ्यागत--वि० [सं०] १ सामने या नमीप अाया हुग्रा । २ प्रतिथि प्रदर्दन- ० [३०] इप्ट पढ़ पाना मात्र । उत्पीडन । [को०]। | रूप में घर अाया हुया । दिन---वि० [३०] जिने पीडा पहुवाई गई हो । पीडित [को०] । अन्य हित को अभ्यागत..- संज्ञा पु० अतिथि । मेहमान । पहुना, जैसे--अभ्यागत की अन्धन र य पुं० [सं० अन्चलङ्कार] मानूपण । मडन (०] । सेवा गृहस्पो का धर्म है (शब्द०)। ।। अन्न न-वि० [सं०अन्यलकृनन्नाभूपित । म डिन । नज्जित (को०] । अभ्यागम--संज्ञा पुं० [सं०] १ सामने माना। उपस्थिति । २ अमीअन्यहंगा- ० [मं०] १ पूजा। ३ अादर । ममान 1 पता । पडोस् । ३ सामना । ४. मुकाबि न । मुठभेइ । युद्ध। भ्रद्धा (०] । ५ विरोध । ६.अभ्युत्थान | अगवानी ! ७ किसी निर्णय पर पहुचना । ६ श्रधात । ६ वध (को०)। १०---शत्रुता (को०) । अन्यवकर्पण --गी पुं० [२०] वह निष्कासन । जाहर निकालना या अभ्यागारिक-वि० [म०] १ कुटव के पालने में तत्सर । न वा नो 7 [] । मे फंसा हुआ । घरवारी । २ कुटुव पालने में व्यग्र । गृहस्थी अन्वन्कद- १० [न० भन्यवफन्द] १ इटकर शत्रु का प्रतिरोध गरना | 5 के विन्दाफ बलपूर्वक आक्रमण करना । २ जा की झझट से हैरान । पचना । पफड नेना । ३ गय को परास्त करने के निये अभ्याघात--संज्ञा पुं॰ [सं०] १ घनि । आक्रमण 1 २ बाधा । रुकाजना पुत्र के प्रकरण करना 1४ अाधान 1 ५ पतन (को०] । वट । (को०)। भन्यवम्कदन–ना पु० [स० अन्यउम्कन्दन] ० 'अन्धम्क' ।। अभ्यात्त--वि० [सं०] १ प्राप्त । मिला हुमी । २ ग्रह्म का विशेषण परिव्याप्त [को०)। अपवहरण-ज्ञा पुं० [न०] १ नीचे फेंकना । २ भोजन करना ।। | ग्राना । गन्ने के नीचे उतारना (को०)। अभ्याधान-मज्ञा पुं॰ [स०] प्रारम । स्थापन [को० । । । अन्यवहार' --वि० [म० 1 भोजनोपयुक्त खाने योग्य को०] । अभ्यापात-पज्ञा पुं॰ [स०] विपत्ति 1 टुग्यि [को०] ! ।। अभ्यामर्द-मज्ञा पु० [स] युद्ध । मघर्प को०]1 । । । । अन्यवहार–ना पुं० १ भोजन करना । २ भोजन [को०] । चौ० -प्रन्पहार मडप= भोजन का स्थान । खाने का मटप । अभ्याग'--वि० [म०] समीपवर्ती । निकट को०]। । । - अम्याग’---सज्ञा पुं० १ सामीप्य । निकटता। पडोस २ परिणाम । अन्यमन-संज्ञा पुं० [न०] अनुशीलन 1 अ-पान (को०)। श्रन्थमनोव--० [न ०] अम्वात मरने योग्य । जिनपर अभ्यास नतीजा । ३ प्राप्तीशः । अभ्युदय को॰] । fया जाय [को॰] । अभ्यास--संज्ञा पुं॰[म०]१ बार बार किसी काम को करना । पूर्णतः, प्राप्त करने के लिये फिर फिर एक ही क्रिया का अवनवन । अनुअन्पमित-- वि० [म०] अभ्यास किया हुप्रा । अम्पन्न । शीलन । माधन । आवृत्ति ! मश्क । उ०-'क) करत करत अन्यमूर्य-वि० [१०] १ क्रोधी । गुम्सन । २ डोही । ईप्लु । अम्याम के जड मूति होत सुजान। रसरी अावत जात ते मिल हेपी [फ० । अन्यसूया-नना नै० [२०] १ क्रोघ । गुम्मा । २ डाह । जलन । पर परत निसान 1 चमा वि० (शब्द)। क्रि० प्र०—करना । होना । २ आदत । रब्त । वान । टेव ।। प [को॰] ।। जैसे—उन्हें नो गाली देने का अभ्यास पड़ गया है (शब्द०)। मम्यस्त -० [३०] १ जिका अम्पमि किया गया हो । चार वार क्रि० प्र०—पड़ना । कि तुम । मश्क किया हुआ । जैसे—वह तो मेरा अभ्यस्त ३ प्राचीनो के अनुसार एक काव्यालकार जिसमें किसी दुष्कर बात दिपय : (द०)। २ जिमने अभ्यास किया हो। जिसने को सिद्ध करनेवाले का कयन हो । उ०-हरि सुमिरन प्रद घनी नन किया हो । दक्ष । निपुण । जैसे-वह इम कार्य में किय, जरयो न अगिन मॅझर गयो गिरायो गिरिडू ते, गयो पम्न हैं (ब्द०) ३ पठिन। प्रवीन (को०] । ४ अादत । न को वार (शब्द०)। कुछ लोग ऐसे कथन में चमत्कार न 74 { { } परका । अादी ०] । मान उमे अलंकार नही मानते । ४ अनुशासन (को०) । ५ प्रम्यन्त--वि० [२०] दे० 'अभ्यसनीय' (को०] । पडोम (को०) । ६ गुणन (को०) । ७ मगीत में एक ही पद अन्योन-० [म ० अन्यन्त] १. रोगी । अातुर । २. घायल । की वार वार प्रवृत्ति ! टेक को०]। म (२०] । अभ्यास’ ---वि० [सं०अन्याश] समीर । निकट ---अनेकार्य ०'। अचान । दुः[न०] पहलवान है। एक दूसरे को ल नकारने में अन्यामकली-सुश पुं० [सं०] योग की उन चारे के नामों में से एक * ; ना ।। जो विविध गांगों के नैन मे बनती है। ग्राम । तौर प्री - पन्याक्षिन-० [म०पन्याकाइक्षित वाहा हुम्रा । “अगि याम का मैन । म है । अभ्यासयोग---सका पुं० [सं०] १. बार बार मनुशीलन करने की