पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३४५

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२८२ अभूत अभूत---वि० [सं०] १ जो हुम्रा न हो । २ वर्तमान । ३ असत्य । का अभेद विना निषेध के कथन किया जाय, जैसे—मुखचद, मिथ्या (को०)। ४ अपूर्व । विलक्षण । अनोखा। उ०—अगिन चरणकमल । उ०-रभन म जरि पुन्छ फिरवत मुच्छ उसीरनि खेलत घुटु रुनि घाए । उपमा एक अभूत भई तव जव जननी पट की फही है । चदन, कुद, गुलाबन, अमिन मीत गुगधन की पीत उठाए । नील जलद पर उडुगन निरखत तजि सुभाव मनु नही है । ताल बटे फणि चक्र प्रवीन जू मित वियोगिनि की तडित छपाए ---सूर (शब्द०)। कही है । अानन ज्वाल गुलाल उडावत व्याल वसन वो अभूतदोष—वि० [म०] दोषरहित । निर्दीप [को०] । जहूरी है --चेनी (शब्द०)। इमको कोई कोई पृथक् लकार अभूतपूर्व--वि० [म०] १ जो पहले न हुआ हो । २ अपूर्व । अनोखा । मी मानते हैं । विलक्षण । अभेद -वि० १ भेदशून्य । एवरूप । ममान । ३०--ब्रह्म जो अभूतशत्रु-वि० [स०] जिसका कोई शत्रु नै हो । अजातशत्रु को०]। व्यापक विरज अग्रज प्रकल अनीह अभेद |--मानस, १ ० अभूताहरण-- सज्ञा पुं० [म०] १ नाट्यशास्त्र के अनुसार किसी प्रकार प्रभेद --वि० [म० अभेद्य] जिमका भेदन छेदन न हो सके । की कपटयुक्त या व्यग्यपूर्ण वचन कहना । गर्भसधि के तेरह जिसके भीतर कोई चम्नु न घुम मके। जिमका विभाग न हो अगों में से एक । २ अयथार्थ बात कहना । छलपूर्ण बात सके। उ०--कवचे अभेद विप्र गुरु पूजा । एहि नम विजय कहना । (को॰) । उपाय न दूजा 1-मानस, ६१७६ । अभूति-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ अस्तित्वहीनता । अविद्यमानता । २ अभेदनीय–वि० [सं०] ३० 'अभेद्य'। अशक्तता । ३ निर्धनता । ४ विपत्ति । बर्बादी । यिनाग[को०)। अभेदवृद्धि–स ग्त्री० [सं०]भेदरहित बुद्धि । एकतर बुद्धि । बुद्धि अभृतोपमा--संज्ञा स्त्री० [सं०] उपभा के दस भेदो में से एक जिसमे | या विचार की वह यिनि जिममें भेदभाव नहीं होता। उत्वप के कारण उपमान का कथन न हो सके। उ०—जौ अभेदवादी-वि० [सं० अभेदादिन् 1[ थि० रम्री० अमेदादिनी ] पटतरिअ तीव्र सम सीयी । जग असि जूवति कहाँ कमनीया । जीवात्मा और परमात्मा में भेद न माननेवाचा । अद्वैतवादी। मानम, १॥२४७ ।। उ०---तेइ अभेदवादी ज्ञानी नर। देखा मैं चरित्र कलिजुग अभूमि- संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ वह जो भूमि न हो। भूमि के अतिरिक्त कर ।—मानस, ७३१०० ।। अन्य पदार्थ । २ अनुपयुक्त स्थान । ३ स्थानाभाव । ४ अभेदाभेद--वि० सं०] एक । एका कार् । उ---कही नरायण नामि पहुच से परे का स्थान [को०] ।। है कही ब्रह्म कहिं वेद । कहि शकर गिरजा कहीं,कहीं चभेदाअभूमिज - वि० [मं०] १ निकृष्ट अथवा अनुपयुक्त स्थान में उत्पन्न । भेद --भक्ति०, पृ० २८५ । | २ जो भूमि में उत्पन्न न हो (को०] । अभेद्य-वि० [सं०] १ जिसका भेदन वा छेदन न हो सके। जिसके अभूमिप्राप्त सैन्य--संज्ञा पुं० [सं०] कौटिल्य के अनुसार वह सेना जो भीतर कोई चीज घुम न सके। जिम हा विभाग न हो सके। | अनुपयुक्त भूमि में पड़ गई हो । ऐसी जगह पडी हुई फौज जहाँ २ जो टूट न सके । अब डनीय । अविभाज्य । से लहना अमभव हो । अभेद्य-संज्ञा पुं० [सं०] हीरा । हीरक । वज्र (को०] । अभूरि-वि० [सं०] स्वल्प | कुछ । थोडा । कतिपय [को॰] । अभेय -तज्ञा पुं० [हिं॰] दे॰ 'अभेव' । अभूष--वि० [सं०] अभूपित [को०]1 अभेरना(५–क्रि० स० [सं० अभिद, प्रा० अभिड] मिलाना । मिथित अभूषन- सज्ञा पुं॰ [स० भूषणदे॰ 'ग्राभूषन' । उ०--हीरन के करना । एक में करना । उ॰—जपहु बुद्धि के दुई तीन फ हैं। अभूपन १ वारो जग ऐन --नद० ग्र०, पृ० ३६५। दही चूर अम हिया अभेरहू ।----जायसी (शब्द॰) । अभूषित- वि० [सं०] विना ग्राभूषण के । अनलकृत । विना सजाया अभेरा--सज्ञा पुं० [म० प्रभि = सामने+रण =लडाई अथवा प्रा० हु । (को०] । अभिड] गड । झगडा । मुठभेड़ । टक्कर । मुविना अभूत--वि॰ [सं०] जिसे पारिश्रमिक न दिया जाता हो (को०] । उ०—(क) उठे शागि दोउ डार अभेरा । कौन साथ नहि अभूतक- वि० [स०] दे॰ 'अमृत' (को०)। वैरी केरा --जायसी (शब्द०)। (ख) विपम कहा मार अभतसैन्य-सज्ञा पुं० [सं०] वह सेना जिसे वेतन या भत्ता न मदमाते चनहि न पाई वटोरा रे । मद त्रिद अभेरा दर इन मिला हो । पाइय दुख झकझोरा रे --तु उसी ग्र०, पृ० ५५३ ।। विशेष-कौटिल्य के अनुसार यह व्याधिज (वीमार) सैन्य से अभेव' ५–सज्ञ पुं० [सं० शभेद] अभेद । अभिन्नता । एकता । उपयोगी है, क्योकि वेतन पा जाने पर जी लगाकर लड अभेव(s)---वि० भेदरहित । प्र नं । एक । उ०—सिप सुन सती है । नाँचा कर हो जाय अलख अभेव |---दरियावानी, पृ० ५। अभृश-वि० [सं०] थोडा । कुछ। चद [को०] । अभ -सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अभय' । उ.-..-मदा सुभाव सुनने अभेडा--संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'भेरा' । । अभेद'--सज्ञा पुं० [सं०] [वि० अभेदनीय, अभेद्य] १ भेद का अभाव। | सुरिन बम, भक्तन अझै दियौ -सूर० १४० । अभैदिड -वि० [सं०] दे० 'अभेद्य' (को०)। अभिन्नता । एकत्व । २ एकरूपता। समानता । ३ रूपक अभेन –वि० [म० दे० 'अभय' । उ०—गर मन मुय हो। अलकार के दो भेदों में से एक जिसमे उपमेय और उपमान | रप्पे --पृ० रा०, १५३१२ ।