पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३४३

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अभिसरन २९० अमी' अभिसरन--सज्ञा पुं० [ मन अभिशरण 1 १ शरण । सहाय । अभिस्कंद--सज्ञा पुं० [१० अभिस्कन्द] १ कपम् । धव। २ सहारा । उ०= सतन को ले अमिरन, समुझहि सुगति प्रयन्। शत्र, [को॰] । करम विपरजय वबहू' नहि, सदा राम रस लीन |—तुलसी अभिस्नेह-वि० [न ०] घनिष्ठ न्नेह । चाह कि०) ।। (शब्द॰) । २ दे० 'अभिसरण' ।। अभिस्मरण--संज्ञा पु० [१० अभि+स्नरा] विशेष रूप में की गई अभिसरनाऊ-क्रि० अ० [स० अभिसरण] १ सचरण करना। याद । ध्यान ! म्मुनि । उ०~-स्मृति' मुम्ल वस्तु का प्रkि जाना । १ किसी वाछित स्थान को जाना। ३ नायक या स्मरण हैं ।---पूर्णा० अ० ग्र०, पृ० ३४७ ।। नायिका का अपने प्रिय से मिलने के लिये सकेतस्थल को अभिस्यंद--संज्ञा पु० [सं० अभियन्द] ० 'अप्पिद' (को०)। जाना । उ०—चकित चित्त साहस सहित, 'नील बसन-युत अभिहत--वि० [सं०] १. पीटा ६ प्रा । ताडि । प्रात् । प्राक्रति । गात । कुनटा सध्या अभिसरे, उत्सव तम अधिरात - २ गुणा किया हुया ! जुगिन । ३ पुराजित । परमूने 1४, केशव शब्द॰) । बाधित । निगद्ध (को०] । अभिसार-सज्ञा पुं० [मं०][वि० अभिसारिका, अभिमारी] १ साधन । अभिहति--संज्ञा ही० [१०] १ निगाना न्न गाना । चोट करना। सहाय । सहारा । ब । २ युद्ध । ३ प्रिय में मिलने के लिये | पीटना। २ गुणन क्रिया वि०] । नायिका या नायक का सकेतस्थन में जाना। ४. सकेतस्थल । अभिहर---राझा पुं० [सं०]उठा ले जाना । न मानना । हटा देना[३०] । सहेट (को०] । ५ गक्रमण [को०] । ६ शक्ति । ताकत (को०)। अभिहर-वि० [सं०] उठाईगीर । ने नामनेवाला ।ौ] । ।। ७ सहयोगी । साथी । अनुगत (को०)। ८ श्रीजार । उपकरण अभिहरण--मज्ञा पुं० [सं०] छीन ने जाना । नृटना को०] । ।। सावन (को०)। शुद्ध करने का एक भम्कार (को०)। अभिहर्ता--सज्ञा पुं० मि० अभिह] १ इ । २ अहेरी ता ।। अभिसारना(G)---मि० अ० [सं० अभिसार से नाम०] १ गमन करना । । भागनेवाला फिौ] ।। जाना । घूमना । २ प्रिय मे मिलने के लिये नायिका या नयिक वाटा.जन 44 [11 ० । नायिका यी नायक अभिहार--सज्ञा पुं० [म०] १ अझ मग । हुमना । :०-कंधों का सकेत स्था में जाना। उ०—-समय जोग पट भूपन धारे। पिय अभिसार शाप असार ।- नद० ग्र ०, पृ० १५६ । | पाडूप्तनि को छुफ पड़ याम, कोऊ अभिज्ञा' में नमा अभिसारक(-..-वि० [१०] अमसार करनेवाला । कौ जान लूट्यौ है ।--रत्नार, भा--2, पृ० ११९ । २ । अभिसारिका - संज्ञा स्त्री० [सं०] अवम्यानुसार नायिका के दस भेदो,मे । मिश्रण । मिजावट (को०) । ३ लूटपाट । चोरी। हावी । एक । वह स्त्री जो संकेत स्थल में प्रिय से मिलने के लिये स्वय (को०) । ४ प्रयत्न । चेष्टा (को०) । ५ नम्त्रनुज्ज़ होना (को०)। जाय या प्रिय को बुलाए । ६ समीप नाना (को०) । ७ मद्यप रावी (को०) । विशेप-- यह दो प्रकार की है, शुक्न भिसारिका ( जो चाँदनी अभिहारिनि -वि० मी० [म० अभिहारिणी] सामने नै हरण करने रात में गमन करे ) और कृष्णाभिसारिका (जो अँधेरी रात मे वाली । उ०—देखी सुनी ग्वारिनि कितेक ब्रजवारिनि पे राधा मिलने जाय) कोई कोई एक तीसरा भेद दिवामिमारिका । सी न और अमिहारिनि लजाई है । हेरन ही हैरत हुग्यो तो हैं (दिन मे जानेवाली) भी मानते हैं। साहित्य शास्त्र में अभिसार हमारी कटू काह व हिरानी पे न पन जैनाई है ।-रत्नाकर, कै अाठ म्थान कहे गए हैं----(१) स्खेत, (२) उपवने या बगीचा । मा० २, पृ० २२१ ।। (३) मन मदिर, (४) दूती या सहेली का निवासस्थान, (५) | अभिहास-मज्ञा पुं० [न ०]विनोद | होमी । मजाक 1 दिर लगी को०] । । जगल, (६) तीर्थस्थान, (७) श्मशान । (८). नदीतट अभिहित--वि० [सं०] १ उक्त । कथिन । कहा हुआ। २ सुबद्ध । ' या परिसर । - युक्त । ब (को०] । अभिसारिणी--सज्ञा स्त्री० [१०] १ अभिसारिका। २. त्रिष्टुभ् छद का अभिहितमवि-नज्ञा स्त्री० [सं० अभिहितमन्धि] काटिल्य के अनुसार | भेद जो ११ की जगह १२ वर्षों की स्थिति में जगतो छ के | वह मधि जिगकी निखी ढिी न हुई हो । सन्निकट जान पड़ता है किो०)। अभिहितान्वयवाद---मज्ञा पु० । न० ] कुगालि गट्ट प्रभृति पुराने अभिमारी--वि० [सं० अभिसारिन्] [संज्ञा स्त्री० अभिसारिका] १. नैयायिक, सीमास को और ब्रान्नयों या साहित्यिक का साधक । सहायक । २ प्रिया से मिलने के लिये सकेतस्थन में मत कि वाक्य का प्रत्येनः पद अलग इत्र और अनन्वित भय जानेवाला। उ०—-धनि गोपी धनि ग्वाल बन्य'सुरभी वनचारी। रखता है। बाद में म। अयों का समन्वय करने पर समूच धनि यह पावन भूमि जहाँ गोबिद अमसारी -सूर (शब्द०)। वाक्य का अर्थ निज नता है । अन्विताभिधानवाद का उलटा । ३ अक्रामक। हमला करनेवाला (फो०)! ४ भाग जानेवाला । अभिहितीन्वयवादी--संज्ञा पुं॰ [स० अभिहितान्वयवादिन् । ' सामने जानेवाला (को०)। । " तान्वयवाद का अनुयायी या ममर्थक । । । अभिसेख(प) --संज्ञा पु० [हिं०] दे॰ , 'अमिचेक' । उ०—मुनिदेउ नदी अभिहूति- सज्ञा स्त्री० [सं०]१ गावाहन । २ समाघिन । पूजन को०)। न । मिले अभिसेख कीन्ह ।---हम्मरी रा०, पृ० १२ । । अभिसेचना--क्रि० स० [स० अभिषेचन]- सोचना। अभिषिक्त अभिहोम----संज्ञा पु० [सं०] चुन की शाहूति देना । घी से होम करना [को०] । ' करना । उ०----ग्राजु कटु मलि घन उनए । वरनेत बुदन अभी-क्रि वि० [हिं० अ + ही] १ इसी ८१ । एमी नाम १ त ४९ । चम] मगना मुखा बामिनी । वक्त । तुरत । तया न । २ अब तक । ३, अभी ने 1 * मगल करत नए |--भारते ग्र०, 'भा २, पृ० १:१४ । माजकल ! इन दिनों । इस समय । । ।