पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३४२

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अभिषिक्त २७९ अभिसरण अभिषिक्त----वि० [म०][वि० स्त्री० अभिषिक्ता]१ जिमका अभिषेक हुआ अभिसगः--सशी पुं० [स० अभिसङ्ग] दे० 'अभिस ग' [को०] । हो । जिसके ऊपर जल अादि छिडका गया, हो । जो ज़ल अादि अभिसताप-सज्ञा पुं० [म० अभिसन्ताप] १ युद्ध । मर्प । स्पर्धा। | से नहलाया गया हो। २ वाघाशाति के लिये जिसपर मत्र १, २, पीडा कि॰] । पढ़कर दूर्वा और कुश से पानी छिड़का गया हो । ३. जिसपर अभिसदेह-संज्ञा पुं० सि ० अभिसन्देह] १ अदला बदली। विनिमय । विधिपूर्वक जल छिड़ककर किसी अधिकार का भार दिया गया, २ जननेंद्रिय [को०)। हो । राजपद पर निर्वाचित । अभिसदोह–संज्ञा पु० [सं० अभिसदोह] ३० ‘अभिसदेह' [को०) । अभिपत--वि० [सं०] १ निचोडा हुअा। उ०—यह अतीव मधुर सोम, अभिसघ--संज्ञा पुं॰ [ स० अभिसग्ध ] १ ठग । धोखा देनेवाला । तुम्हारे लिये अभिपुत हुआ है —gr० भा० १०, पृ० १३३ । .. वचक । २ निदक [को॰] । २ स्नात । जो स्नान कर चुका हो । (को०) । ' अभिसंधक-सज्ञा पुं० [ स० अभिसन्धक] दे० 'अभिसध' [को०] । अभिषेक-संज्ञा पुं० [सं०] १ जल से सिंचन । छिडकाव । २ ऊपर अभिसधा---सज्ञा स्त्री० [म० अभिसन्धा] १ कहना। बतलाना । २ से जल डालकर स्नान । ३ बाधाणांति या मंगल के लिये मात्र । . वादा । वचन । ३ ' बात का पक्का व्यक्ति । ४ धोखा । पढकर कुश और दूध से जल छिडकना । मार्जन । ४. विधिपूर्वक • छल [को०] । मत्र से जल छिड व कर अधिकार प्रदान । राजपद पर निर्वाचन अभिसंधान-सज्ञा पु० [स० अभिसन्धान] १ वचना। प्रतारणा । ५ यज्ञादि के पीछे शाति के लिये स्नान । ६ शिवलिंग के धोखा 1 जाल । २ फलोद्दश्य । लक्ष्य । उ०—इस कार्य को ऊपर तिपाई के सहारे जल से भरकर एक ऐसा घडा रखना । -- करने में उसका । अभिसघान क्या है यह देखना चाहिए जिसके पेदे मे बारीक छेद, धीरे धीरे पानी टपकने के लिये हो। (शब्द०)। ३ इच्छा या रुचि (को०)। ४ । स्वार्य (को०) । रुद्राभिषेक । अभिसधि--सज्ञा स्त्री० [स० अभिनन्थि] १ प्रतारणा वचना। यौ०-अभिषेकपात्र = अभिषेक का पात्र । अभिषेकाह= अभिषेक धोखा । उ०—'भरत मे अभिसधि का हो गध, तो मुझे निज का दिन । राज्यारोहण का दिन । ' । "राम की सौगघ ।—साकेत, 'पृ० १८७ । २ चुपचाप कोई काम अभिषेकना(५)...क्रि० स० [म० अभिपेफ] अभिषेक करना । उ०-~ करने की कई अदिमियो की सलाह । कुचक्र । पड्यत्र । उ०। अाजु अभिषेकत पिय को प्यारी। धरि दृग ध्यान नवल असुन तक्षशिलाधीश की भी उसमे अभिसधि है ।--चद्र०, पृ० ७५'। के मरि भरि उमगे बारी-भारतेंदु ग्र०, भा॰ २, पृ०६१८। ।। '३ विणेप समझौता या सधि । ४ लक्ष्य। उद्देश्य । ५' अंतर्गअभिपेकशाला- सच्चा सी० [सं०] वह स्थान या मडप हाँझf पैक | मित या सन्निहित अ । अभिप्राय । राय । ६ जोड । योग । | हो । राज्याभिषेक मडप [को०] । ७ घोषणा । वादा।। अभिषेक्ता--सज्ञा पुं॰ [सं०] वह व्यक्ति जो अभिषेक करे। 'अमियेक | करनेवाला व्यक्ति [को०] । अभिसधिकृत-क्रि० वि० [म० अभिसन्यिकृत] जानबूझ कर किया अभिपेक्य-वि० [सं०] दे॰ 'अभिपेचनीय' किो०] ।' | " हुआ [को०) । अभिप्चन-- सज्ञा पुं० [सं०] विधिपूर्वक मत्र से जल छिडक कर अधि- अभिसधिता--सज्ञा स्त्री० [स० अभिसन्धिता] कलहातरिती नायिका । कार प्रदान । राजपद पर निर्वाचन । उ०—इसके बाद शक्ति, • • स्वयत्रिय का अपमान कर पश्चात्ताप करनेवाली स्त्री। प्रभुता और प्रार्थना के मश्र पढ़ते पढते पुरोहित जलो से असिपेचन करते थे ।-हिंदु० सभ्यता, पृ० ११४ । ... ' अभिसपात--मज्ञा पुं० [स० अभिसम्पात ] १ सम्मिलन । मगम । २ युद्ध । सघर्प । ३ बटुआ । शाप । ४ पतन [को०]। अभिपेचनीय- वि० [सं०] १ अभिषेक योग्य । २ राज्यारोहण । अभिसबध-सज्ञा पुं० [स० अभिसम्बन्ध] १ घनिष्ठ संबध । २ | योग्य । ३ अमिपेक सवधी कि]। - अभिपेच्य---वि० [म०] दे० 'अमिपेचनीय' [को०] ।। समागम । संभोग (को॰] । अभिपणन-सज्ञा पुं० [सं०] शत्रु के विरुद्ध बढाव या चढाई [को०)।. अभिसयोग-सज्ञा पुं० [सं०] घनिष्ठ सवध । बहुत नजदीक का | सवध [को॰] । अभिपोता-संज्ञा पुं० [सं० अभिषोतृ] दे० 'अभिपावक' (को०] । अभिष्य द- सज्ञा पुं० [सं० अभिप्यन्द] १ बहाव । स्राव। २ अखि अभिसश्रेय--संज्ञा पुं॰ [सं०] शरण । प्राश्रय 1 श्राण । पनाह कौ० । का एक रोग जिसमे सुई के छेदने के समान पीडा अौर किर- अभिसंस्कार--सज्ञा पुं० [सं०] १ सूझ । विचार । कल्पना । २ व्यर्थ किराहट होती है, अखि लाल हो जाती हैं और उनसे पानी । " या निष्फल कार्य । ३ विकास । परिप्कोर। उ से न कर अौर कीचड निकलता है। अखि ग्राना। | ! स्वभाव चित्त का प्रमिसस्कार करना है ।—मपूर्णा० म ० अभिष्यदरभण-सक्षा पुं० [सं० अभिष्यन्दिरमण उपनगर। वहे ग्र०, पृ० ३४६ । नगर से लगा हुआ छोटा नगर । शाखा, नगर (को०]। ' अभिसमत--वि० [म० अभि पम्मत] माननी । अादरणीय । नमान्य अभिष्यदो---वि० [सं० अभिष्यदिन्] १ रसने, बहने या चूनेवाला। (को०)। " २ रेचक । दस्ताव । ३ जलापसारक (को०)। " अभिसर-सज्ञा पुं॰ [स०] १ सगी । माथी । २ नहायक । मददगार । अभिष्वग-सया पुं० [सं० अभिष्वङ्ग] घनिष्ठ मवघ । प्रेम ! अनुराग। ३ सेवक । अनुचर [फो०] । ३०---ग्रामस्नेह यह अात्मप्रेम है जो प्रात्मा में अभिष्म अभिसरण----सज्ञा पुं॰ [सं०] १ आगे जाना। २ नमीर गमन । ३ उत्पन्न करता है ।सपूर्णा० अमि० ग्र०, पृ० ३६६॥ प्रिय से मिलने के लिये जाना । भुता र राजपद पपूर्वक मत्र