पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३४१

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अभिव्यंजनावार्दै ३७६ अभिपिचन अभिव्यजनवाद-सज्ञा पुं॰ [स० अभिव्यञ्जना+वाद, (अ० एकप- अभिशसन सज्ञा पुं० [सं०] [वि० अभिशस्त] सत्य या झ3 आरोप प्रशनिज्म)] योरप में प्रचलित चि कि त्रा, साहित्य आदि की वह अथवा दोप लगाना । २ व्यभिचार का मिथ्या दोप लगाना । सिद्धात जिसमें बाह्य वस्तु या विपय को क का गौण और ।। ३ गा देना । अपमान करना। अपनी या पात्रो की अतिरिक अनुभूतियों के प्रतीकात्मक चित्रण अभिशसा-सा स्त्री० [सं०] दे० 'अमिशसन' ।। को प्रधान अग माना जाता हैं। अभिशपन--सच्चा पुं० [सं०] १. शाप । २ गभीर आरोप । ३. विशेप-इसमे अभिव्यजना ही सर्व कुछ है, जिसकी अमि .. मिथ्यारोप (को॰) । व्य जना की जाती है वह कुछ नहीं। इस मत का प्रधान । यौ॰—अभिशपन ज्वर= शापजन्य पर। प्रवर्तक इटली का क्रोचे है। अभिव्यजनावादियो के अभिशप्त--वि० [सं०] १ शापित । जिसे शाप दिया गया हो । उ०-- अनुसार जिस रूप में अभिव्य जना होती है उससे भिन्न अर्थ । जो जनपद परस तिरस्कृत अभिशप्त कही जाती है ।-प्रमू, श्रादि का विचार केला मे अनावश्यक है । जैसे—-वाल्मीकि | पृ० ७८ । २ जिसपर मिथ्या दोप लगी हो । रामायण की इस उक्ति में 'न स सकुचित : पथा येन वाली अभिशस्त--वि० [सं०] [वि० सी• अभिशस्ता] जिसपर व्यभिचार तो गत', कवि का कथन यही वाक्य है, न कि यह कि जिस फा मिथ्या दोप लगा हो । ३ व्यर्थ कलकित । लाति । प्रकार वाली मारा गया उसी प्रकारतुम भी मारे जा सकते हो । इसी तरह भारत के फुटे भाग्य के टुकहो 1 जुड़ते क्यो । | अभिशस्ति----सज्ञा स्त्री० [सं०] १. अभिशाप । २ निदा । ३ हिसा। ४ विपत्ति । ५ प्रार्थना [को०] । नही ?' में इतना ही कहना है कि 'हे फूट से अलग हुए 'भारतवासियो । एकता क्यों नहीं रखते ? यदि तुम एक हो जाओ अभिशाप--संज्ञा पुं० [सं०] [वि० अभिशापित, अभिशप्त] १ शाप । तो भारत का भाग्योदय हो जाय । सारांश यह, कि इस मत में 'बद दुग्रा । उ०—अभिशाप ताप की ज्वाला में जन रहा आज । ध्वनि या व्यजना की गुंजाइश नही है ।----[चतामणि, मन और अग ।-कामायनी, पृ० १६२ । २ मिथ्या दोपमाग २, पृ॰ ६६ ।। रोपण। झूठमूठ का अपवाद । ३ बुराई । अहित [को०)। अभिव्यजनावदी--वि० [म० अभिव्यञ्जना+वादिन् (अ० एक्स- अभिशापन-सा पुं० [ स० 1 शाप देना । बद प्रा देना । कोमन प्रशनिस्ट)] अभिव्धजनवाद का अनुयायी या समर्थक । को०] । अभिव्यजित--वि० [२० अभिव्यञ्जिन] सुस्पष्ट प्रकटित । व्यक्त । अभिशापित--वि० [सं०] दे० 'अभिशप्त' ।। | अभिव्यक्त । अभिव्यक्त-वि० [सं०] प्रकट किया हुआ । स्पष्ट किया हुअा। जाहिर । अभिश्लेषण-संज्ञा पुं० [सं०] पट्टी [को०] । 'किया हुया । अभिषग--संज्ञा पुं० [सं०अभिपङ्ग] १ पूर्ण सवध या मिलन (को०)। अभिव्यक्ति---सज्ञा स्त्री० [सं०] प्रकाशन । स्पष्टीकरण । साक्षात्कार। २ दृढ मिलाप । शालिगन । ३ सभोग । ४. पराजय । हार । प्रकट होना । २ उम वस्तु का प्रत्यक्ष होना जो पहले किसी , ५ निदा । अाक्रोश । कोसना । ६ शपथ । कमम् । ७ मिथ्याकारण से अप्रत्यक्ष हो, जैसे--अँधेरे में रखी चीज का उजाले में पवाद । झूठा दोषारोपण। ८ भूत प्रेत का प्रवेश। है शोक ! 'साफ साफ दीख पड़ 1r । ३ न्याय के अनुसार भूक्ष्म और अप्र त्यक्ष कारण का प्रत्यक्ष कार्य में अविर्भाव, जैसे, बीज से अकुर यौ०--अभिषगज्वर= भूत प्रेत अादि के अावेश या प्रभाव से 3 का निकलना । उत्पन्न ज्वर । अभिव्यक्तिवाद--सज्ञा पुं० [सं० अभिव्यक्ति+वाद] जगत् को ब्रह्म अभिपगा-- संज्ञा स्त्री० [सं० अभिषङ्गन] वेद की एक ऋचा । की अभिव्यक्ति मानने का सिद्ध ति । । अभिषगी--वि० [सं०अभिषड्न्] अभिपग से युक्त । अभिप गवली । अभिव्यक्तिवादी--वि० [सं० अभिव्यक्तिवादिन] अभिव्यक्तिवाद का अनुयायी या समर्थक । अभिषजन-सञ्ज्ञा पुं० [स० अभिषञ्जन] ६० 'अभिषग' (को०] । अभिब्यक्तीकरण-संज्ञा पुं० [सं० अभि +व्यक्तीकरण] प्राकट्य ।। अभिषव--सच्ची पुं० [सं०] १ यज्ञ में स्नान। २ मद्य खीचना परराव ' सामने आ जाना। अभिव्यजना । चुवाना। ३. सोमलता को कुचलकर गारना या निचोड 17 ! अभिव्यपिक-वि० [सं०] [स्त्री० अभिव्यापिका] पूर्ण रूप से है वने- ', ४ सोमरम पनि ५. यज्ञ । ६ कॉजी । ७ | वाला । अच्छी तरह प्रचलित होनेवाला। पूर्ण रूप से व्याप्त । | (को०) । ८. राज्यारोहण । ६ अधिकारप्राप्ति [को०] । [ रहनेवाला । । अभूिषवण--सभा पुं० [सं०] १ स्नान । २.सोमरस निकालने या अभिव्यापक-सझा पु० [सं०] ईश्वर । ' निचोड़ने का साधन कौ०) । यौ--अभिव्यापक प्राधार = व्याकरण में वह अाधार जिसके हर अभिषवणी-सच्चा सौ० [ १० ] सोमरस निकालने का साधन या एक अंश मे घेय हो, जैसे 'तिल' में तेल' । । । । अभिब्यापी--वि०, सज्ञा पुं० [सं० अभिव्यापिन] दे॰ 'अभिव्यापक' । अभिषावक--संज्ञा पुं० [सं०] सोमरस निचोड़नेवाला पुरोहित !!" अभिव्याप्ति-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ सन्निवेश। समावेश । '२.सर्व- अभिषिचन–सा पुं० [सं० अभिविन] जल छिड़कना। ३० व्यापकता को०] । अभिषिचने ब्राह्मण (अध्वयु), क्षत्रिय और वैश्य मिलक अभिशका-सा स्त्री० [सं० अभिश] [वि॰ अभिशैक्षित] १, ' ।। केरते थे जो कि राष्ट्र की तीन इकाइयाँ थी !--[इ० सभ्यता भाका सदेह । चितः । २, भय । यसतर (को०]।' १२ १३ ।