पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३३६

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अभिधा २७३ अभिनिवृति अभिघा--सज्ञा ०.[म०] शब्द की तीम' शक्तियों में से एक। शब्द के अभिनंदनीय--वि० [स० अभिनन्दनीय] वंदनीय । प्रशमा के योग्य । वाच्यार्थ को व्यक्त करने की शक्ति । शब्दो के, उस अभिप्राय ।। उ०—-मैरे हित है हित यही स्पृश्य, अमिनदनीय ।--अपरा, को प्रकट करने की शक्ति जिससे यौगिक या व्युत्पत्ति नभ्य पृ० १८१ । । अर्थ सीधे निकनना हो। मुरुग्रायं। २ शब्द या ध्वनि । ३ अभिनदित-वि०म० अभिनन्दित] बदित । प्रशसिन । १०---नोगों ने नाम (को०)। । । । । ' साधु साधु कहकर उसे अभिनदित किया ।-इद्र०, पृ० १२८ । अभिधान----सज्ञा पुं० [सं०] [वि० अभिधायक, अभिधेय] १ नाम् । अभिनदो- वि० [सं० अभिनन्दिन् ]स मान करनेवाला । अभिनदन- लकव 1,२. कथन । ३ शब्दकोश ! ४. गीत । गान (को०)। कर्ता [को०] । अभिधानक सझा पुं० [म०] आबाज ।, नन्द । ध्वनि (को०), अभिनद्य--वि० [सं० अभिनन्छ] अभिनदेन के योग्य । अभिनंद- अभिधानमाला-- सज्ञा स्त्री० [सं०] शब्दकोश (को०)। नीय [को०] ।। अभिवायक--वि० [स्त्री० अभिवापि का] । अभिधेय अर्थ का वा वक अभिन –वि० [हिं०] दे० 'अभिन्न' । उ०—भिन मिन मिन बाणि (शब्द)। २ नाम रखनेवाला । ३ कहनेवाला । ४ सूचकै ।" मुख भाखि |वेलि०, ६० १९८ । | परिचायक । - • }; अभिनय---मैज्ञा पुं॰ [स० वि० अभिनीति, अभिनेय] दूसरे व्यक्तियों के अभिवावक--वि० [म०] हमला करनेवाला । आक्रमणकारी 1 अक्रा-- - भाषण तथा चेष्टा को कुछ काल के लिये धारण करना । नाटये- मक [को०)।' अभिवावन--सा पुं० [न०] चढाई । ग्रामण (को॰] । | मुद्रा । कानकृत अवस्थाविशेप का अनुकरण । म्वाँग । न ल । अभिधेय-वि० [सं०] १ अभिवई शक्ति में बोध्य (अर्थ) । प्रपाद्य ।। नाटक का खेल । वाच्य । २ जिनका योव नाम लेने से ही हो जाय । ३ नाम ' विगैर--इसके चार विभाग हैं---(क) अगिक, जिममे केवन अग- देने योग्य ।। भी वा शरीर की चेष्टा दिखाई जाय । (प) वाचिक, जिसमे अभिधेय--संज्ञा पुं० १ नाम । अभिधा । १ विषयवस्तु (को०)।...। । केवल वाक्यो द्वारा कार्य किया जाय । (ग) आहार्य, जिसमे ३ भावार्थ [को०] । वेवल वेत्र या भूषण अादि के धारण की ही प्रावकता हो, अभिव्पा–मज्ञा स्त्री॰ [मे०] १ दूसरे की वस्तु या संपत्ति की इच्छा। बोलने चालने का प्रयोजन न हों । जैसे, राजा के आम पास पराई वस्तु की चाह । २ अभि नापा । इच्छा । लोभ । | पगडी आदि वाँध कर चवदार और मुमाहिवो का चुपचाप अभिध्यान--सज्ञा पुं॰ [म०] १ अभिनापा । इच्छा । २ प्राप्ति- खड़ा रहना । (ग) सात्विक, जिसमे, स्त्री, स्वेद, रोमांच और कामना । नोभ ।'३ निदा । ४ ध्यान मग्नता । । । | कप अादि अवस्थाओं का अनुकरण हो । अभिनतु-वि० [सं० अभिनन्य] अभिनन योग्य । उ०—को क्रि० प्र०—करना ।—होना । । - अभिनतु रहै रन पग्ग --पृ० ० । - - अभिनद--वि० [सं० अभिनन्द] प्रसन्न या अनदित करने राना [को०)। मुहा०—अभिनय करना = नाचना कूदना । यौ॰—अभिनयाचार्य = नृत्यका का शिक्षक । नृत्यकलाविद् । अभिनद--संज्ञा पुं० १ * अनद। ३ स्तुति । प्रशम । ३ बधाई । || 'अभिनयविद्या=नृत्यकला । नाट्य कला । १. । ४ अमलापा । ५ स्वल्प मुख । ६ प्रोत्साहून । बढ़ावा । ७:" परमात्मा का नाम (को॰] । अभिनव-वि० [नं०] १ नया । नवीन । उ०—केहरि किशोर ने अभिनदत--सज्ञा पुं० [सं० अभिनन्दन][वि० अभिनदनीय, अभिनदिन] अभिनव अवयव प्रस्फुटित हुए थे |--कामायनी, पृ० २७७ । १ अनद । २ सतोप ३ उत्तेजना- । प्रोत्साहन । ४ २ ताजा। ३ अनुभवहीन । अतिनूतन (को०] । अाकासा । इच्छा । ५ विनीन प्रार्थना। उ०--गुरु के वचन अभिनवगुप्त--सज्ञा पुं॰ [सं०] ध्वनिशास्त्र के एक प्रथित व्याख्याकार। सचिव अमिदन । सुने भरत हिय हित जनु चदने —मानस, | "ध्यान्यालोक को टीका लोचन के लेखक ।। २१ ७६ । ६ प्रशमा । प्रतिष्ठा । आदर ! ३०--पह अवमर । अभिनन---संज्ञा पुं० [म०] एक पट्टी जो अखिो पर बाँधी जाती है । हमने उनके अभिनंदन के लिये उपयुक्त समझा ।----सनू० २ अँधौटी 1 अनवट । ३ अञ्च । दृष्टिहीन व्यक्ति (को०] । अभि० ग्र०, पृ० (ग) । अभिनामी -वि० [हिं०] ३० ‘अविनाशी' । उ०—हस तो अभि- यौ०--अभिनदेन ग्र थे वह ऋ थ जो किसी व्यक्ति के महत्वपूर्ण ।। नासी, कान तो ह नाहन, सुन्य तो परम सुन्य !--रामानद०, कार्यों के प्रति अादर प्रकट करने के लिये उसके जीवन की पृ० २६ । पचासवी या माठ्वी या किसी भी जन्मतिथि पर दिया जाता अभिनिधन--वि० [सं०] मरणासन्न । जिसका अत निकट हो किने । है । अभिनद नपत्र-—वह अादर यी प्रतिष्ठासूचक पत्र जो किसी अभिनिधन--संज्ञा पुं० सामवेद की वे ऋचाएँ जिनका मरणासन्न के महान् पुरप के आगमन पर हर्प और मतोप प्रकट करने के * -; निकट गान होता है। लिये सुनाया र अर्पण किया जाता है । (अ०} ऐड़ स7' अमिनियोग-पझा पुं० [सं०] कार्य मे मनोयोगपूर्वक मनग्नता । ७ जैन लोगों के चौथे तीर्थंकर का नाम । ८ प्राम। । दत्तचित्तता [को०)।। अभिनदना--क्रि० स० अभिनन्दन में हि० नाम०] सत्कृत करना । अभिनिर्माणसझा पुं० [सं०] १ प्रस्थान । कूव । ३ अक्रमण ।। । मान देना ! नमानित करना । । :- शबू के विरुद्ध वढाव या चढाई को०)। अभिनिवृति--सा मी० [म०] कार्यपूति । कार्यसपन्नता।