पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३३५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अभिघातक २७३ अभिधर्षण अभिघातक--वि० [सं०] चोट पहुंचानेवाला [को०] । अभिज्ञ--वि० [सं०] जानकार। परिचित । विज्ञ । २. निपुण अभिघातकी--वि० [म० अभिघातकिन्] दे० 'अभिघातक' ।। कुशल ।। अभिघाती-वि० [म० अभिघातिन्। [वि० स्त्री० अभिघातिनी] दे॰ अभिज्ञता--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ जानकारी । विज्ञता । २ निपुणता। 'अभिघातक' । । कुशलता । अभिचार--सज्ञा पु० [स०] १ सोचना । छिडकाव 1 २ घी की अभिज्ञा--सज्ञा स्त्री० [म० १ पहुचानना । जानना । २ याद करना। | शाहुति । ३ घी से छोकना या बघारना । ४ घी । स्मरण ग्राना। ३ अलौकिक क्षमता या शक्ति । इसके पाँच अभिचर सच्चा पु० [म०] [ी० अभिचारी] दास । नौकर । सेवक । भेद हैं--कोई भी रूप धारण करना, दूर की बात सुननी, दूर- अभिचरण--सज्ञा पु० [सं०] दे० 'अभिचार' । दर्शन, अन्य के विचार और स्थिति को जान लेना [को०] । अभिचरणीय-वि० [म०] 'अमिचरण या अभिचार के योग्य का]। अभिज्ञात--सज्ञा पु० [म०] १ पुराण के अनुसार शाल्मली द्वीप के अभिचार---संज्ञा पुं० [म०] अयर्ववेदोक्त म य यंत्र द्वारा मारण अरि सात वप वा खड़ो में से एके । २ जाना समझा ।। उच्चाटन अादि हिंसा कर्म । पुरश्चरण । २ तत्र के प्रयोग, अभिज्ञातार्थ-सज्ञा पुं० [सं०] न्याय में एक प्रकार का निग्रह स्थान। जो छ प्रकार के होते हैं-मारण, मोहन, स्तंभन विद्वेपण, विवाद या तर्क में वह अवस्था जव वादी अप्रसिद्ध या शिष्ट उच्चाटन और वशीकरण । स्मृति में इन कर्मों का उपपातको | अर्थों के शब्दों द्वारा कोई वात प्रकट करने लगे अथवा इतनी में माना गया है। उ०—उसकी आँखो मे अभिचार का संकेत जल्दी जल्दी बोलने लगे कि कोई समझ न सके और इस कारण है। मुस्कुराहट में बिना की सूचना है ।—स्कद०, पृ० २६ । तके रुक जाय । अभिचारक-मजा पु० [म०] यत्र म प्र आदि द्वारा मारण, उच्चाटन अभिज्ञान--सज्ञा पु० [स०] [वि० अभिज्ञान] १ स्मृति । ख्याल ।२ आदि कर्म । वह चिह्न जिससे कोई वस्तु पहचानी जाय । लक्षण । अभिचारक---वि० यत्र म त्र द्वारा उच्चाटन आदि करनेवाला । पहिचान । ३ वह वस्तु जो किमी बात को स्मरण या विश्वास अभिचारी-वि० [म० अभिचारिन्] [वि० ० अभि वारिणी] दे० दिलाने के लिये उपस्थित की जाए । निशानी । सहिदानी । 'अभिचारक' । परिचायक चिह्न । उ०—सता को अभिज्ञान रूप से देने के अभिज--वि० [म०] चारो शोर होनेवाला (को०)। fये राम ने हनुमान को अपनी अँगूठी दी (शब्द॰) । ४ अभिजन--सज्ञा पु० [म०] १ कुन । व श । २ परिवार । ३. | मुद्रा की छाप मुहर ।। जन्मभम । वह स्थान जहाँ अपना तथा पिता, पितामह अादि अभिज्ञानपत्र--संज्ञा पुं० स० परिचयपत्र । सिफारिशी चिट्ठी [को०] । ज्ञानपत्र का जन्म हुआ हो । ४ वह जो घर में सबसे बड़ा हो । घर। का अगुग्रा । कुन में श्रेष्ठ व्यक्ति । ५ ख्याति । कीति । ६ । | अभिज्ञान शाकू तल--सुज्ञा पुं० [सं० अभिज्ञानशाकुन्तल] महाकवि | कालिदास कृत सात अको का प्रसिद्ध नाटक । .. परिजन ।। अभिज्ञापक--वि० [सं०] जानकारी या सूचना देनेवाला [को०] । अभिजनन—सज्ञा पुं० [न० अभि +जनन] प्रादुर्भाव । उत्पत्ति । । अभित ----अ० [सं०] १ सनिकट । २ चारो ओर से । सर्वत । उ०—विश्व के अधिपति ने अविच्छेद्य समन्वय का अभिजनन किया ।--सपूर्णा० अभि ग्र ०, पृ० १११ । ३ पूर्णत । ४ शीघ्रता से । ५ दोनो ओर से । ६ पहले अभिजय---सज्ञा स्त्री० [सं०] पूर्ण रूप से विजय । पूरी जीत [को०] । और बाद में । ७ श्री ने सामने से (को॰] । । अभिजात'-.--वि० [२०] १ अच्छे कुन में उत्पन्न । कुलीन । उ०-- अभितप्त—वि० [सं०] १ गर्म । जला हुआ । प्रज्वलित । २ पश्चा- अत्याचारियो की नृश मता मे यदुकुल के अभिजात वर्ग ने अज। त्तापयुक्त ।। अनुतप्त [को०)। को सुना कर दिया ----क काल, पृ० १४८ ।, २ बुद्धिमान् ।। अभिताप----सज्ञा पुं० [स०] १ मानसिक या शारीरिक उग्र ताप यो पडिन । ३ योग्य । उपयुक्त । ४ मान्य । पूज्य । ५ सुदर । दाह । २ प्रवन व्यग्रता, क्षोभ या वेदना [को॰] । मनोहर ।। अभिद)---वि० [हिं०] दे॰ 'अभेद्य' । उ०---अभिद अछेद रूप मम अभिजात.---सज्ञा पु० १ उच्चत्र र । कु तीनता । २ जातकर्म को०] । जान । जो सब घट है एक समान । --सूर० ३।१३ । अभिजाति-- सज्ञा स्त्री० [सं०] ॐवे कुन मे जन्म । कु नीनता को॰] । अभिदर्शन--संज्ञा पुं० [म०] १ देखना । ३ दिखाई देना । ३ व्यक्त अभिजित–वि० [सं० अभिजित्[ १ विजयी । २ अभिजित् नक्षत्र या प्रकट होना [को॰] । में उत्पन्न (को॰) । अभिद्रव-संज्ञा पुं० [स] अक्र ण 1 हमला । चढाई (को०] । अभिजि ----मज्ञा पुं॰ [सं०] १ दिन का आठवां मुहर्त । दोपहर अभिद्रवण----सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अभिद्र व’ [को०] । के पौने बारह बजे से लेकर साढे बारह बजे तक का श्राद्ध अभिद्रुत----वि० [सं०] अाक्रात। पददलिन (को॰] । के लिये उपयुक्त समय । २. एक नक्षत्र जिसमें तीन तारे अभिद्रोह----सज्ञा पुं० [१०] १ हानिकारक विरोध । २ उसीह ने । मिलकर मिथडे के प्रकार के होते हैं । ३ उत्तराषाढ नत्र ३ निंदा । कुत्सा । ४ क्रूरता । ५ दु ख [को०] । के अतिम १५ दड तथा श्रवण नक्षत्र के प्र यम चार इ इ । अभिधर्म---सझापु० मि०] बौद्धो के अनुसार परम मत्य । सबल 3 घम । उ--नौमी तिथि मधुमास पुनीता । मुकल पच्छ अभिजित अभिधर्मपिटक--सज्ञा पु० [म०] 'त्रिपिटक' ।।। हरि जीता ।----मान म, ११३१ । ४ विष्ण, (को०)। ५ एक अभिधर्षण—सज्ञा पुं० [सं०] १ भूत प्रेत का अवेश । २ उत्पीडन । यज्ञ (को०) ! ६ एक लग्न का नाम (को०)। ३. किसी के विरुद्ध आघात करना को॰] ।।