पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३३४

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प्रभास २७१ अभिघात यौ ०.-प्रभाष्यमापण = न कहने योग्य बातें कहना था अभाष्य अभिक्राति--संज्ञा स्त्री० [सं० अभिक्रान्ति] दे॰ 'अभिक्रमण' (को०)। व्यक्ति से बातें करना। अभिक्रातीवि० [सं० अभिक्रान्तिन्] १ जो पहुच गया हो। २. प्रभास -सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अाभास' । उ०---कह। हनुमत जिसने आरम कर दिया हो । आरभक (को०] । | सुनहु प्रभु, ससि तुम्हारे प्रिय दास । तव मूरति विधु उर अभिक्रोश--सज्ञा पुं० [सं०] १ निंदा करना। कुवाच्य बोलना । वसति, सोइ स्यामता अभास ।-मानस, ६।१२। । २ चिल्लाना । 'प्रभासना--क्रि० अ० [ सं० प्रभास, हि० अभाप्त से नाम० ] अभिक्रोशक-सज्ञा पुं० [म०] २ जोर से चिल्लाने या अपशब्द कहने- भासना । दिखाई देना । जान पडना । उ०—–ककन, किकिनि 'वाला व्यक्ति । २ आगे आगे जोर से घोषणा करनेवाला भूपन जिते । मोहि श्रीकृष्ण अभासत तिते ।-नद ग्र० अभिक्षिप्त--वि० [सं०] फेका हुन्न । तिरस्कृत [को०] ।। पृ० २६६ । । अभिख्या--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ नाम । यश । कीति । २ शोभा । ३ श्रभितर -कि० वि० [सं० अभ्यन्नर, प्रा० भतर]० 'अभ्यतर' ।। कुख्याति (को०)। ४ महात्म्य । महिमा (को०)। बुद्धि । उ०—उत्तम पुरुष की दशा जौं किममिस दाख। वाहिज धी (को०) । ५ नम (को०)। ६ पुकारना । सवोधन । ७. अभितर विरागी मृदु अग है ।-सु दर ग्रे ०, पृ० १०० । बताना । कहना (को०) । ८ शब्द । पर्याय (को०)। अभि-उप० [सं०] एक उपसर्ग जो शब्दो में लगकर उनमें इन अर्यो व्यक्ति [को०] । की विशेपता उत्पन्न करता है-१ मामने । जैसे, अभ्युत्थान । अभिख्यात–वि० [स०] १ कीतिशाली । २ विख्यात । मशहूर [को०)। अभ्यागत । २ बुरा । जैसे, अभियुक्त । ३ अधिक। जैसे, अभिप्रान--सज्ञा पुं० [सं०] नाम । प्रसिद्धि । यश । कीति [को०] । अभि नाप । ४ ममीप । जैसे, अभि सारिका । ५ वारवार, अभिगम - सच्चा f० [सं०] दे० 'अभिगमन' (को०] 1 अच्छी तरह । जसे, अभ्यास । ६ दूर । जैसे, ग्रेभिहरण । अभिगमन--सज्ञा पुं० [ ०1१ पास जाना । पहचना । २ महबास । ७ ऊपर । जैसे, अभ्युदय । । ,, . स भोग ३ देवताओं के स्थान को झाड, देकर और लीप पोत अभिग्र तर)-- सझा पुं० [हिं०] दे० 'अभ्यतर' । उ०—प्रेम भगति कर साफ करना । ४ समझना ।। जल विनु रघुराई । अभिअतर मल कवतुं न जाई । । अभिगम्य--वि० [स०] १ अभिगमन के योग्य । २ बोधगम्य [को॰] । | मानस, ७४९ ।। अभिगामी--वि० [स० अभिगाभिन्] [स्त्री० अभिगनिनी] १ पास अभिकपन---मज्ञा पुं० [सं० अभिकम्पन ] तीव्र कपन । बुरी तरह । जानेवाला । २ हहवास या सभोग करनेव.ला । जैसे-- | काँपना को० ।। ऋतुकालाभिगामी ।। अभिक-वि० [म०] कामुक । कामी । विपयी। अभिजन--संज्ञा पु० [स० अभि +गुञ्जन] मधुर ध्वनि । रसीना स्वर । अभिक-सज्ञा पुं० कामुक व्यक्ति वा प्रेमी जन [को०)। अभिगुजी--वि० [हिं०] अभिगृजन करनेवाली । उ०—मधुर अभिकरण-सज्ञा पुं० [सं०] १ प्रभाव । २ अाकर्षण । खि वाव [को०] अधर अभिगुजी धरे । कान्हू मुरलिया मुर सम र ।--- अभिकर्पण-सज्ञा पुं० [सं०] कृषि की एक उपकरण । खेती का एक घनानद० प० १८६ ।। | औजार को०)। अभिगुप्ति----सज्ञा स्त्री० [सं०] १ छिपाकर रखना । सँभालकर रखना। अभिकक्षा सञ्चा स्त्री० [सं० अभिकाडक्षा] चाह । इच्छा । अभिलापा २ अात्मसयमन [को०] । [को॰] । अभिगूज---संज्ञा स्त्री॰ [हिं०] ० 'अभिगुजन' । अभिकाक्षी–वि० [सं० अभिकाक्षिन् ] इच्छुक । श्रमिलापी। अभिगोप्ना--वि० [सं० अभिगोप्]] छिपा रखनेवाला । बचा रखने- | मनौरथवाला (को०] । | वाला । सरक्षणकर्ता (को०] । अभिकाम–वि० [सं०] १ इच्छुक । अभिलाषी । २ प्रेमी । ३ । अभिग्रस्त--वि० [म०] शत्रु द्वारा दबाया हुआ । आक्रात [को०] ।। | कामुक (को०] । | अभिग्रह--संज्ञा पुं० [स०] १ लेना । अादान । ग्रहण । स्वीकार । २. अभिकाम-सज्ञा पुं० १ प्रेम । प्यार । २ इच्छा | अभिलापा [को०]} झगडा । पहार । कलह । ३ लूट। डाकः । ४ चढाई । अभिकृति--संज्ञा स्त्री॰ [म.] एक प्रकार का छेद जिसमें १०० वण घावा । ५ चुनौती (को०)। ६ शिकायत (को०)। • अधि हार। या मात्राएँ होती है किो०] । शक्ति [को॰] । अभिक्र द--सज्ञा पु० [१० अभिन्द] चिरलाहट । गर्जन । शोर (को०) अभिग्रहण सज्ञा पुं० [म०] म्वामी की उपस्थिति में उसकी वस्तु का अभिक्रम-सज्ञा पुं० [म.] १ मुविचारित प्राक्रमण । धावा । उ०—- अपहरण । राजनी। लूट (को०)। देखि देखि बिक्रम अभिक्रम अकालिनि के कालि नि के वाद अभिघट---संज्ञा पु० [सं०] प्राचीन काल का एक वाजा जो घड़े के साधुवाद बहू दीन्हे हैं।–रत्नाकर, भा० २ पृ० १६२ । | प्रकार का होता था और जिसके मुद्दे पर चमडा मढा २ प्रारोहण (को०)। ३ प्रारभ । शुरुग्रात (को०) । प्रयत्न । रहता था। चेष्टा (को०) । अभिघात--- सच्चा पु० [म०] [वि॰ अभिघातक, अभिघानी] १ चोट अभिक्रमण--सा पुं० [१०] १ मेना का शत्रु के ममुख जाना । पहूचना । प्रहार । मार । ताडना । पुरुष की बाई शोर और चढाई । घावा । २. दे० 'अभिक्रम । स्त्री की दाई शोर, का मा ।