पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३३३

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भतृक ६७ 8 अर्भाव्य अभर्तृका-वि० स्त्री० [सं०] १ अविवाहिता कुमारी । २ पति- अभाव'—संज्ञा पु० [स०] १ अमता । अनम्तित्व । नेस्ली। अविवा- विहीन । विधवा (को०] । मानता । न होना। २ अाधुनिक नैयायिको के मत के अनुसार अभर्म-- क्रि० वि० [हिं०] दे॰ 'अमरम' । उ०—राम कह्यो जो वैशेपिक शास्त्र में सातवाँ पदार्थ । तुम चह्यो यह दुर्लभ वर पर्म । पै मेरे सतसग ते होइहि सत्य । विशेष—कणादकृत सूत्रग्र थे मे द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष अभर्म ।--- गोल ० (शब्द०)। और समवाय, ये छ पदार्थ ही अभाव' माने गए हैं। अभाव अभल --वि० [स० अ+हि० भल= भला] अश्रेष्ठ । बुरा । खराये । पाँच प्रकार का है, यथा (क) प्रागभाव = जो किसी क्रिया और अभव-सज्ञा पुं० [सं०] १ न होना अस्तित्व । २ नाश । प्रलय। गुण के पहले न हो, जैसे, घड़ा बनने के पहले न था। (ख) ३ निर्वाणि । मोक्ष (को०)। प्रघ्वसाभाव = जो एक बार होकर फिर न रहे, जैसे ‘घडा बने अभव-- -वि० जो उत्पन्न न हो । अजन्मा [को०) । कर टूट गया । (ग अन्योन्याभाव= एक पदार्थ का दूसरा अभव्य----वि॰ [स] १ न होने योग्य । २ विलक्षण । अदमुत । पदार्थ न होना, जैसे, घोडा वैन नही है और वेल घोडा नही है । अनहोनी । ३ माँगलिक । अशुभ । बुरा। अभागा । ४ (घ) अत्यताभाव = जो न कभी था, न है और न होगा, जैसे, अशिष्ट । बेहूदा । भद्दा । भोडा । आकापाकुसुम, वघ्या का पुत्र । अौर (च) ससर्गाभाव= एक अभव्य.---सज्ञा पुं० जैन शास्त्रानुसार जीव, जो कभी मोक्ष नही प्राप्त बस्तु के सबध मे दूसरे का अभाव, जैसे, घर मे घोडा नहीं है। कर सकते ।। २ श्रुटि । टोदा । कमी । घाटा । जैसे, राजा के वर में द्रव्य का अभाऊ----वि० [स० अ + भाव] १ जो न भावें । जो अच्छा न लगे । | कौन अगाव है । उ०—अपने प्रभाव की जडता में वह रह न उ०---भइ प्रज्ञा को भाँट अभाऊ । बाएँ हाथ देई वरम्हाऊ-- सकेगो कभी मग्न -कामायनी, पृ० १५१ । ३. नाश ।। जायसी ग्र ०, पृ० ११४ । २ जो न सोहे। अशोभित । उ०—- मृत्यु [को॰] । लोप । अतरिक्ष । अतधन [को०)। काढहू मुद्रा फटिक अभाऊ । पहिरहु कु डन कनक जडाऊ'--- अभाव-वि० भावरहित । स्नेहरहित । लोप । अतरिक्ष । जायसी (शब्द॰) । | अतर्धान (को०) । प्रभाग-- वि० [स०] १ विना भाग का । विना हिस्से का। २ । अभावq-सज्ञा पुं० [ स० अ = बुरा+भाव ] कुमाव । दुर्भाव । अविभक्त । विरोध । उ०--हम तिनको वहु भाँति खिझावा। उनके कबहूँ अभाग-- सच्चों पु० [हिं०] दे० 'अभाग्य' । उ०—-सपनेहु दोन कलेसु न काहू । मोर अभाग उदधि अवगाहू ----मानस, २५२६० ।। अभाव ने अविा !:--विश्राम (शब्द॰) । अभागा---वि० [सं० अभाग्य] [स्त्री॰ अभागिन्, अभागिनी मदभाग्य । ” !! माया । अभावन'--वि० [सं० आ +भावन] सुदर । रुचिर । रुचिकर । भाग्यहीन । प्रारब्धहीन । बदकिस्मत । उ०---(क) अति खल । | अभावन --वि० [सं० अ = नहीं + भावन] असुदर । अरुचिकर । | अप्रिय ।। जे विषई बेक कागा । एहि सर निकट न जाइ अभागा ।--- अभावना–सच्चा स्वी० [सं०] १ विवेक या निर्णय का अभाव । २ मानस, ११३८ । (ख) केमे तू अभागा यहाँ पहुचा है मरने ? धार्मिक धारणाओं का अभाव (को॰) । लहर, पृ० ७२ । अभागी --वि० [सं०अभागिन्][वि० स्ली० अभागिनी १ जिसे कुछ भाग अभावनीय–वि० [सं०] १ जो भावना में न आ सके । अचिंतनीय । न मिले । जिसे हिस्सा न मिले। २ 'भाग्यहीन । बदकिस्मन् । २ अशोभनीय । उ०—इसी असामजस्य के कारण वह ऐसे ऐसे उ० --करनु राजु लका सई त्यागी । होइहि जव कर फीट अभावदीय कार्य कर वैठता है ।----मृग० पृ० ५५ । अभागी !-—मानस, ५१५३ । अभावपदार्थ-सज्ञा पु० [सं०] भावशून्य पदार्थ । सत्ताहीन पदार्थ । अभाग्य- वि० [सं०] अभागवाला । माग्यहीन । अभागा [को०)। असत् पदार्य । अभाग्य’- से पृ० [सं०] प्रारब्धहीनता । दुर्दैव । बुरा, दिन् । वद- अभावप्रमाण-सज्ञा पुं० [सं०] न्याय में किसी किसी प्राचार्य के मत किस्मती । उ०---मोर अभाग्य जिम्नावत श्रोही । जेहि हौं हरि से एक प्रमाण जिसमे कारण के न होने से कार्य के न होने का पद कमल विछोही --मानस, ६५६८ ।। ज्ञान हो । गौतम ने इसको प्रमाण में नहीं लिया है । अभाजन---सज्ञा पुं० [सं०] अपात्र । कुपात्र । बुरा, अादमी ।। प्रभावित-वि० [सं०] जिसकी भावना न की गई हो । क्रि० प्र०—रहना । अभाजै--- वि० [सं० अविभाजित] जो विभक्त न हो । अखडित । अभावी--वि० [सं० अभाविन्][वि० सी० प्रभाविनी] १. जिसकी स्थिति समूचा पूर्ण । उ०----अभाजै सी रोटली कागा ले जाइला । की भावना न हो सके । २ न होनेवाला । पूछो म्हारा गुरू नै कहाँ वसि खाइला । ---गोरख०, १० १२६। अभाब्य–वि० [सं०] दे॰ 'अभावी' (को॰] । अभाय५-- "सच्चा पु० [ स० अभाव ] भाबमान्यता । अनस्तित्व । अभाषरा--सा पुं० [सं०] भापण का अभाव । न बोलना । मौन । असत्ता। उ०----त्यो ही 'कछु घूमि भूमि बेसुध गए के हाय, । उ०—-मैं नही हूँ यो अभाषण योग्य ---साकेत, पृ० १८६ । पाय परे उखरि अभाय मुख छायौ है ।-:--रत्नाकर,' भा० अभाषित-वि० [सं०] न कहा हुआ । अकथित [को॰] । १, पृ० ११९ ।। अभाष्य--वि० [सं०] न बोलने योग्य बात या व्यक्ति । उ०—भोग प्रभार)--- वि० [हिं० दे० 'अमर' । ३ ०-दैव दीन्ह सबु मोहि अभफैि। उन्हे अस्पृश्य और भाष्य मान उनसे उपेक्षा ही करते रहे । मोरे नीति न धरम विचारू ----मानस, २।२६८ । --प्रेमघन, भा० ३, १० २४२ ।