पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३३२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अभी अंभ अभग्ग –वि० [सं० अभग्न] जो बिभक्त या अलग विलग न हो । जो अभयदानी-वि० [सं० अभयदानिन्] अमय देनेवाला । उ०---गाइ टूटा या भग्न नै हो । उ०—त मु विजय सुरराजपति, जादू द्विजराज तियकाज न पुकार नज, भोगवे नरक घोर चोर को कुलह अभग्ग ।--पृ० रा०, २०। १ । अभयदानि 1--राम च ०, पृ० ६२ ।। अभग्न--वि० [सं०] अखड | जो खडित न हुआ हो। समूचा । अभयपत्र-सज्ञा पुं० [सं०] १ सुरक्षा के आश्वासन का लिखित पत्र उ०—जगत्तत्व की खोज मे लग्न जहाँ ऋपियो ने अभग्न किया | या अभिलेख [को० । । श्रम था !-इतिहास, पृ॰ ६०६ । अभयपद—सज्ञा पुं० [सं० अभयपद] निर्मय पद । मोक्ष । मुक्ति । अभद्र'--वि० [सं०] १ अमागनिक । अशुभ । अकल्याणकारी । २ उ०—-पिता वचन खडे सो पापी, मोइ प्रहलादहिं कीन्हौं । अश्रेष्ठ । असाधु । अशिप्ट 1 बेहूदा । कमीना। निकसे खभ वीच ते नरहरि, ताहि अभयपद दीन्ही ।-- अभद्र--संज्ञा पुं० [सं०] १ बुराई । पाप ! दुष्टता । २ शोक [को०] । सूर ० १।१०४ । अभद्रता----सज्ञा स्त्री० [सं०] १ अमागलिकता। अशुभ । २. अशिष्टता। अभयप्रद---वि० [सं०] भय से विमुक्ति का अश्वासन देनेवाला । अमर्य असाधुता । बुराई । खोटाई । बेहूदगी । देनेवाला (को॰) । अभपद--सज्ञा पुं० [हिं०] २० 'अभयपद' । ३०–श्रमपद भुजदड अभयमुद्रा-- सज्ञा स्त्री० [सं०] १ एक तांत्रिक मुद्रा । २ भय से मूल, पीन यस मानुकून, कनक मेखला दुकून दामिनी धरखी विमुक्ति का भाव व्यक्त करनेवाला हाथ का एक सकेत [को०] । री ।—सूर०, १०११३८४ । अभययाचना--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] भय से रक्षा करने की प्रार्थना । | अभय की 'भीख [को॰] । अभयकर---वि० [स० अभयङ्कर] १ जो भयकर न हो। सौम्य । २ । । अमय करनेवाला (को०]। अभयवचन–सहा पु० [सं०] भय से बचाने की प्रतिज्ञा। रक्षा का वचन । ।। अभय-वि० [स०] [स्त्री० अभया] निर्भय । निडर । बेखौफ। क्रि० प्र०—देना ।। उ०—जिन्ह कर भूज वल पाइ दसानन । अमय भए विचरत अभयवन---सज्ञा पुं० [सं०] वह वन जिसे काटने की आज्ञा न हो । मुनि कानन |--मानस, ३।१६। । रक्षित वन ।। मुहा०—अभय देना वा अभय वाँह देना= भय से बचाने का वचन देना । शरण देना । निर्भय करना । उ०—(क) ब्रह्मा रुद्रलोकहू अभयवनपरिग्रह--सज्ञा पुं० [सं०] रक्षित वन सबधी राजनियम का भग या विघात । जैसे, उसमे घुसना, पेड़ काटना, लकडी गयो। उनहू ताहि अभय नहि दयो ।—सूर (शब्द॰) । । तोडना अादि । । (ख) लछिमन अभयवाँह तेहि दीन्हीं।--मानस ४।२०। । अभया'.-वि० [सं०] निर्भया । वेडर की । निडर।। यौ---अभयदान । अभयवचन । अभयवाह । अभया’–समा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की हरीतकी या हड' जिसमे अभय’--मज्ञा पुं० [सं०] १ उशीर । खस । वीरण मूल । २ निर्भयता । पाँच रेखाएँ होती हैं । उ०—अभया सोठ चिरायत कना । ३ परमात्मा । ४ परमात्मविपयक ज्ञान । ५ भौतिक संपत्ति सोचर मिर्च हि चूरन वेना । --इद्रा०, पृ० १५१ । २ दुर्गा का अभाव । सासारिक सपदाविहीनता । ६ अभयसूचक एक । एक स्वरूप (को॰) । मुद्रा । ७ शिव । ६ भय से प्राप्त प्राण । ६ यात्रा सबधी अभर -वि० [सं० = अति + भर= भार} दुर्वहै । न ढोने योग्य । एक योग (को०] । o-भाई रे गैया एक विरचि दियो है भार अभर मी भाई। अभयचारी--सज्ञा पुं० [ म० अभयचारिन् ] वे अमली पशु जिनके । नौ नारी को पानि पियति है तृपा तऊ न बुताई ।—कबीर मारने की आज्ञा न हो।' | (शब्द॰) । अभयडिडिम--सज्ञा पुं० [स० अभयडिण्डिम] १' मुरक्षात्मक भरोसे अभरन --सझा पुं० [सं० आभरण] दे० 'शरण' । उ०----इतनी | की घोषणा । एक युद्व वाद्य [को०] । । सुनत मगन ह्र रानी वोलि लए नैदराई । सूरदाम कवन के अभयद-वि० [सं०] दे॰ 'अमयदाता' [को० ।। | अभरन लै झगरिनि पहिराई ।—सूर० १०।१६।। अभयद.-सया पुं० १ विष्णु का एक नाम । २ जैनी के एक अहुन अभरन --वि० [सं० अ + हि० भरम= मान प्रतिष्ठा] अपमानित। [को०] । दुर्दशाग्न स्त। उ०—उस बात की कसक हमारे मन से नहीं अभयदक्षिणा--संज्ञा स्त्री॰ [ नं० ] सुरक्षा का वचन, आश्वासन या । | जाती जो वलराम ने तुम्हे अभरन किया था ।-लल्लू ०" भरोभा देना । भयभीत को शरण देना । (को०)। (शब्द॰) । अभयदाता--वि० [सं० अभय +दाढ़] अभय देनेवाला । उ०-- अभरम'७--वि० [सं० अ + भ्रम, हि० भैरम] १ भ्रम न करनेवाला । माडवी चित्त चातक नवाबुदवरण सरन तुलसीदास अभय- । अभ्रात । अचूक । २ नि शक । निडर । उ०--कृतवर्मा भट दाता ।---तुलसी ग्र०, पृ० ४७४ ।' चौ अमरमा कचन वरमा !---गोपाल० (शब्द०)। अभयदान- सच्चा पुं० [सं०] भय से बचाने का वचन देना । निर्भय अभरम---क्रि० वि० नि सदेह । विना संशय । निश्चय । करना । शरण देना । रक्षा करना । उ०--नरहरि देखि हर्ष अभरी----संज्ञा स्त्री० [सं० अ+हिं० भरी] परिपूर्णता । उ०.. मन कीन्ही1 अभयदान प्रहलादहि दीन्ह - ० ७॥२ ।। अनरी थावे अाथ सु चित सरसाव चव ।--वहीदात ग्र०, क्रि० प्र०—देना । भा० १, पृ० ५० ।