पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३३

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व्यवहार-कोश' बना था जिसमें मराठी, फारसी और सस्कृत--तीन उद कोश भाषाओं की सहायता ली गई थी। रघुनाथ पडितराव द्वारा ३८४ उन उर्दू के कोशों की चर्चा ऊपर हुई है जिन्हें विदेशियों ने पद्यों का यह दोबद्ध कोश ऐसा विभाषी कोश है जो अपने ढग बनाया। हिदी या हिंदुस्तानी कोशो के साथ या इनका मिश्रित रूप ही का विशेष कोश कहा जा सकता है। संस्कृत और फारसी के भी अर्यपर्यायसुचक ऐसे को सस्कृत भाध्यम से मगल शासनकाल में प्राय रहा । कभी कभी वे अलग भी थे । इनके पूर्व और बाद में बटन से ऐसे कोण भी बने जा फारसी लिपि में निर्मित थे । इनमें फरहगे असबने थे । फिया, तख्मीस्सुल्लुगात, लुगात विसोरी अधिक महत्व के प्रौर प्रसिद्ध आगे चलकर पाश्चात्यो के संपर्क और प्रभाव से 'मराठी इगलिश' के माने जाते हैं । नत्वत इनमे हिदी के शब्दों की संख्या बहुत अनेक कोश वने । चीफ कैप्टन गोल्सवर्थ ने अंग्रेजी-मराठी का एक ज्यादा है। पर लिपिभेद के कारण हिदी माने जानने वाले इनका विशाल कोश १८३१ ई० में बनाया था । थामस कैंडी के सहयोग से उपयोग और प्रयोग नहीं कर पाते । 'फरहगे-ए-इस्लाहात-- इस कोश के संशोधित और परिर्वाधित अनेक संस्करण छपे । मराठी वस्तुत मौ० अब्दुल हक की योजना और प्रेरणा से रचित उर्दू का के हुन कोशो की परपरा १९ची शताब्दी के प्रारंभ से अवतक चली विशाल कोण है। इनके अतिरिक्त भी अमीर मीनाई है। भी रही है । कोश की दृष्टि से मराठी भाषा अत्यंत संपन्न है । अंग्रेजी अमरल लुगात तथा फरीमल लुगात उर्दू कोशों में प्रसिद्ध है। कोशो में केरी, पर्नल केनेडी और गोल्सवर्थ केडी के मराठी इगलिश श्रीरामचंद्र वर्मा, श्रीहरिण कर शर्मा आदि ने नागरी लिपि में को महत्वपूर्ण कृतियां हैं। इनके अतिरिक्त १६वी शती के कुछ भी कोश बनाए । उत्तर प्रदेश सरकार ने महाह द्वारा संपादित उर्दू प्रमुख मराठी कोश है--(१) महाराष्ट्र भाप चा कोश ( इसके प्रथम हिंदी कोश प्रकाशित किया है जिसे अच्छा कोश कहा जाता है। भाग का प्रकाशन १८२६ ई० से प्रारंभ हो गया था ), (२) रघुनाथ । | गुजराती, उडिया, और असमिया में भी अनेक अघुिनिक कोण बन भास्कर गोडबोले का हसकोश ( १८६३ ई० ), ( ३ ) वोडकर का चुके हैं और निरतर बनते जा रहे हैं । नवजीवन प्रकाशन मदिर का रत्नकोश ( १८६६ ई० ) और (४) मराठी भाषा का नवीन कोश सार्थ गुजराती मउणी कोश, तथा शापुरजी दलिजी का गुजराती (१८६० ई० ) । वीसवी सदी के कोशो मे-वा: गो० आप्टे का-- ६ पेजी कोश प्रसिद्ध है। असमिया मे १८३७ ई० मे ब्राउन्सन (अमेरिकी मराठी शब्दरत्नाकर श्रोर विद्याधर का सरस्वती कोश अधिक। मिशनरी) ने असमिया-इलिश डिक्शनरी बनाई थी । हेमचंद्र बरुग्री प्रसिद्ध है। सामान्य शब्दार्थ कोशो के अतिरिक्त मराठी-व्युत्पत्तिकोश द्वारा निर्मित 'असमिया-अग्रेजी कोश', विशेष प्रसिद्ध है। उडिया में भी ( कृष्णाजी पाड्रग कुलकर्णी--१९४६ ई० ) अत्यंत प्रसिद्ध व्युत्पत्ति ऐसे अनेक कोण बन चुके हैं। कहने का सारा यह है कि भारत की सभी कोश है । इसमे मराठी भाषा का पूर्ण प्रयोग हुआ है। मराठ) में । प्रमुख भाषामो में अाधुनिक कोशो की प्रेरणा पाश्चात्यों से मिली और विश्वकोश, लोकोक्तिकोश, वाक्सप्रदायकोश, (अनेक) ज्ञानकोश श्रीर भारतीयो ने उस कार्य को निरतर आगे बढ़ाने में योगदान किया। शब्दार्थकोश है। गोविंदराव काले का एक पारिभाषिक शब्दकोश आधुनिक कोश को विधाएँ : भी है जिसमें अग्रेजी सैनिक शब्दों का शव्दार्थ सग्रह मिलता है। मराठी हिदी कोश भी अनेक वने हैं। इनमे कुछ उत्तम कोटि के भी कोश हैं। आधुनिक कोशरचना के विविध प्रकारो की संक्षिप्त चर्चा यहाँ अनावश्यक न होगी । वर्तमान युग ने कोशविद्या को अत्यत व्यापक परिपंजाबी, काश्मोरी, नेपालो वेश में विकसित किया । सामान्य रूप से उसकी दो मोटी मोटी विधाएँ लोदियन मिशन द्वारा १८५४ ई० मे पजावी शब्दकोश बना था। कही जा सकती हैं--(१) शब्दकोश और (२) ज्ञानकोश । शब्दकोश के स्वरूप का बहुमुखी प्रवाह निरमर प्रौढता की मोर बढता लक्षित जिसमे गुरुमुखी और रोमन मे मूल शब्द थे तथा अग्रेजी में अर्थ था। होता रहा है। आज की कोश विद्या का विकसित स्वरूप भापाइसके बाद पजाबी कोशों का सिलसिला चलता है तथा पंजाबी के । विज्ञान, व्याकरणशास्त्र, साहित्य, अर्यविज्ञान, शब्दप्रयोगीय, ऐतिहासिक कोश बनने लगे। विकास, सदर्भसापेक्ष अर्थविकास और नानी शास्त्रों तथा विज्ञान में | इधर ३०वी ती भे भाई विशनदास पुरी के संपादकत्व में प्रकाशित प्रयक्त विशिष्ट अर्थ के बौद्धिक र जागरूक शब्दार्थ संकलन का (१६२२ ई०)ीर पजाब सरकार के भाषा विभाग, पटियाला से प्रकाश्य पूजीकृत परिणाम है। मान पजावी कोश अत्यत महत्व के हैं। द्वितीय कोश कदाचित् पजाबी का सर्वोत्तम कोश है। शब्दकोश काश्मीरी भापा के अपने मैनुअल मे डा० ग्रियर्सन ने हमारी परिचित भाषाग्रो के कोशो में अक्सफोर्ड-इग्लिशध्याकरण बनाया और फेजबुक के साथ साथ शब्दकोश भी संपादित डिक्शनरी के परिशोलन में उपर्युक्त समस्त प्रवृत्तियों का उत्कृष्ट (१९३२ ई०) किया था। इसके मलव र्ती ईश्वर कौल थे और संभवत निदर्शन देखा जा सकता है। उसमें शब्दो के सही उच्चारण का संकेत१८६० ई० के पूर्व इसकी रचना हो चुकी थी। इसके पूर्व भी १८८५ चिह्नो से विशुद्ध और परिनिष्ठित बोध भी कराया है । योरप के उन्नत ई० में इस दिशा फ। कुछ कार्य हो चुका था । टर्नर की नेपाली डिक्श- अौर समृद्ध देशो की प्राय सभी पाओं में विकसित स्तर की कोशविद्या नरी यद्यपि वहुत बाद की है, तथापि उसमे कोशविज्ञान और भापा- के अाधार पर उत्कृष्ट, विशाल, प्रामाणिक और संपन्न कोशो का निमोण विज्ञान का विनियोग जिस महत्ता के साथ हुआ है वह अत्यत हो चुका है और उन देशों में कोशनिर्माण के लिये ऐसे स्थायी सस्थाने प्रशसनीय है। प्रतिष्ठापित किए जा चुके हैं जिनमे अबाध गति से सर्वदा कार्य चलता